अठ्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति का भयावह चेहरा दिल्ली की लूट के रूप में सामने आया। दिल्ली के गुण्डों और अपराधियों ने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर दिल्ली के सेठों को लूट लिया तथा अंग्रेज परिवार की औरतों को कत्ल कर दिया। तिलंगों ने जेनिंग्स की खूबसूरत बेटी के टुकड़े कर दिए!
जब दिल्ली की सिविल लाइन्स से लेकर मुख्य गार्ड तथा मैगजीन के अंग्रेज अधिकारी एवं उनके परिवार या तो मारे गए या अपने घरों से भागकर इधर-उधर छिप गए तब तिलंगों अर्थात् मेरठ से आए पुरबिया सैनिकों ने दिल्ली के कश्मीरी बाजार की तरफ प्रस्थान किया। उन्हें देखते ही कश्मीरी बाजार में भगदड़ मच गई। अंग्रेज अधिकारी अपनी जान बचाने के लिए सड़कों एवं गलियों में बेतहाशा भागने लगे और जहाँ-तहाँ छिपने का प्रयास करने लगे।
बहुत से अंग्रेज अधिकारी हाथों में नंगी तलवारें लेकर भाग रहे थे और तिलंगे हाथों में बंदूकें लिए उनका पीछा कर रहे थे। शहर के उत्पाती लोग भी इन तिलंगों के साथ हो गए और वे भी अंग्रेज अधिकारियों एवं उनके स्त्री-बच्चों पर ईंटें, पत्थर, डण्डे और लोहे के सरियों से वार करने लगे।
कुछ अंग्रेज अधिकारी एवं उनके परिवार फखरुल मस्जिद में जाकर छिप गए। इस पर क्रांतिकारी सैनिकों ने मस्जिद को घेर लिया तथा मस्जिद में छिपे हुए अंग्रेजों को मस्जिद से बाहर घसीट लिया। मौत के भय से कांपते हुए तथा अपने प्राणों की भीख मांगते हुए उन समस्त अंग्रेज स्त्री-पुरुषों को मौत के घाट उतार दिया गया।
इसके बाद क्रांतिकारी सैनिकों ने कॉलिन्स साहब की हवेली तथा सेंट जेम्स चर्च घेर लिया। तिलंगों ने उन्हें भी बरबाद कर दिया। क्रांतिकारी सैनिकों ने छोटे-छोटे जत्थे बना लिया और वे दिल्ली की गलियों में बिखर गए। वे हर किसी से पूछते थे कि अंग्रेज कहां छिपे हुए हैं? जैसे ही किसी अंग्रेज के बारे में जानकारी मिलती थी, तिलंगे उस अंग्रेज को सड़क पर घसीटकर मार डालते थे। दोपहर होते-होते दिल्ली की सड़कों पर अंग्रेजों की लाशों के ढेर लग गए। तिलंगों ने प्रत्येक कोठी और बंगले में घुसकर अंग्रेजों को मार दिया।
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दिल्ली का रेजीडेंट साइमन फ्रेजर, फ्रेजर का सहायक थॉमस कॉलिन्स, दिल्ली बैंक की चांदनी चौक शाखा का मुख्य अधिकारी ब्रैसफोर्ड, टेलिग्राफ ऑफिस का मुख्य अधिकारी चार्ल्स टॉड तथा कॉलिन्स के परिवार के तेबीस सदस्य मार डाले गए।
रेजीडेंट साइमन फ्रेजर के सहायक अधिकारी थॉमस कॉलिन्स के परिवार के समस्त सदस्य मार दिए गए। सेंट जेम्स चर्च में 23 लोगों को मार डाला गया। फादर जेनिंग्स, दिल्ली बैंक के बेरेसफोर्ड परिवार और हाल ही में ईसाई बने डॉ. चमनलाल को भी मार दिया गया। कचहरी में भी जबर्दस्त लूटमार मची।
मरने वालों में फादर जेनिंग्स की एक खूबसूरत बेटी भी शामिल थी। अभी उसने यौवन की देहरी पर पैर ही रखा था कि बेरहम मौत ने उसे बिना किसी अपराध के आकर जकड़ लिया। जब दिल्ली के अंग्रेजों को मार दिया गया तब दिल्ली के अमीर हिन्दुओं एवं मुसलमानों की बारी आई। बहुत से लुटेरे भी खाली बोरियां लेकर दिल्ली की सड़कों पर निकल आए और बड़े-बड़े घरों एवं हवेलियों में घुसकर लूटमार करने लगे।
स्कॉटिश लेखक विलियम डेलरिम्पल ने ‘द लास्ट मुगल’ में लिखा है कि लुटेरों ने क्रांतिकारी सैनिकों का मार्गदर्शन करना आरम्भ कर दिया। वे किसी भी बड़ी हवेली की तरफ संकेत करके कहते कि इस हवेली में गोरी मेम छिपी हुई है। यह सुनकर क्रांतिकारी सैनिक उस हवेली पर हमला बोल देते और ये गुण्डे तथा लुटेरे उनके साथ हवेली में घुसकर उसे लूट लेते। मौलवी मुहम्मद बाकर ने ‘देहली उर्दू अखबार’ में लिखा है कि जब मेरी नजर दिल्ली कॉलेज की तरफ पड़ी तो मैंने देखा कि उसका सारा सामान, तस्वीरें, उपकरण, नक्शे, किताबें, दवाइयां लूटे जा चुके थे।
लोग इतने जोश में थे कि उन्होंने जमीनों पर लगे पत्थरों और दरवाजों के कब्जों तक को उखाड़ लिया। हर तरफ से बंदूकें चलने की आवाजें सुनाई दे रही थीं। बहुत से लोग सिर्फ इसलिए लूटे गए क्योंकि वे अमीर थे। सबसे पहले दिल्ली के अमीर एवं अलोकप्रिय जैन और मारवाड़ी साहूकारों की बारी आई। लुटेरों ने बैंक के पार्टनरों सालिगराम और मथुरादास को निशाना बनाया। जब क्रांतिकारी सैनिक सालिगराम की हवेली के दरवाजे नहीं तोड़ सके तब आधी रात के समय स्थानीय मुसलमान युवकों के सहयोग से दरवाजों के पेच खोल दिए गए और हवेली में घुसकर सारा धन लूट लिया गया।
दिल्ली के मुस्लिम युवक, सालिगराम और मथुरादास से इसलिए नाराज थे क्योंकि कुछ दिन पहले इन दोनों ने अंग्रेजों से शिकायत करके शहजादे मिर्जा शाहरुख को गिरफ्तार करवाया था। सालिगराम संभवतः दिन में ही अपनी हवेली से बाहर निकल गया था। उसने रात होने पर बादशाह जफर के सामने घुटनों पर गिरकर पुकार लगाई कि आपके इस सेवक का सब-कुछ लुट गया है। मेरी तमाम हुंडियां और बहियां नष्ट कर दी गई हैं। घर में रोजमर्रा का सामान भी नहीं बचा है।
सालिगराम अब भी बादशाह को बादशाह समझ रहा था क्योंकि उसने सुना था कि यह क्रांति बहादुरशाह के निर्देश पर हो रही है किंतु वह यह नहीं जानता था कि इस समय बादशाह बहादुरशाह जफर सालिगराम की कोई सहायता नहीं कर सकता था! वह तो खुद उन समाचारों को सुनकर हैरान था जो दिल्ली की गलियों से निकल-निकल कर बादशाह तक पहुंच रहे थे!
दिल्ली के एक तत्कालीन पुलिस अधिकारी सईद मुबारक शाह ने लिखा है- ‘जब शहर में चारों तरफ गुण्डे-बदमाश लूटमार कर रहे थे तब एक सराय में ठहरे हुए आठ मुसलमान राजपूतों ने जिन्हें रंघोरिए कहा जाता था, कुछ डाकुओं और बदमाशों को एकत्रित करके शहर के एक हिस्से में आग लगा दी और फिर अपने ऊंटों पर सोने की मोहरें, जेवरात और दूसरी कीमती चीजें लादकर अपने गांव की ओर चल दिए। यह लूटमार पूरे दिन और रात भर जारी रही।’
बहादुरशाह जफर के खास खिदमतगार जहीर देहलवी ने लिखा है-
‘मैं हिम्मत करके घर से बाहर निकला तो मैंने देखा कि पीपल के एक पेड़ के नीचे बहुत से हिन्दू जमा थे और वे दिल्ली में घुस आए बागी सैनिकों को पूरियां और मिठाई खिला रहे थे। कोतवाली के सामने बदमाशों का एक गिरोह जमा था। रास्ते की सारी दुकानें लूटी जा रहीं थीं। शहर के सब बदमाश इन गुंडों और मुजरिमों के साथ हो गए।
लालच ओर जोश के मारे वे बैंक के दरवाजे पर आ गए और वहाँ बेरेसफोर्ड परिवार के लोगों को मार डाला जिनमें औरतें और बच्चे भी शािमल थे। लुटेरों ने बैंक की तिजारियों को तोड़कर सब नोट लूट लिए। बलवा करने वाले लोग कुछ तो बागी सिपाही थे, कुछ जेल से निकले मुजरिम। पहलवान, चोर, उचक्के तथा निम्न तबके के लोग भी इनमें शामिल हो गए थे। शरीफ घर का एक भी आदमी इस लूटमार में शामिल नहीं था।
महज एक घण्टे में चौदह लाख रुपए लूटे गए। बहुत से लोग इन गुण्डों से जान बचाने के लिए भाग रहे थे और सड़कों पर खून ही खून बिखरा पड़ा था। जब मैं किले के दरवाजे पर पहुंचा तो मैंने देखा कि पचास लोग लाइन लगाए अंदर जाने के रास्ते की निगरानी कर रहे थे। वहाँ जोर की हवा चल रही थी और उसमें एक फटी हुई अंग्रेजी किताब के पन्ने किले की दिशा में उड़ रहे थे।’
क्रांतिकारी सैनिकों द्वारा बहुत से मुगल अमीरजादों एवं दिल्ली के महत्वपूर्ण लोगों के साथ बदसलूकी की गई और उनके घर लूटे गए। इनमें दिल्ली का शिया लीडर हामिद अली खाँ भी शामिल था। उस पर अंग्रेजों को छिपाने का इल्जाम लगाया गया। तिलंगों ने हामिद अली खाँ को पकड़कर बादशाह के सामने पेश किया। बादशाह ने किसी तरह बीच-बचाव करके हामिद अली की जान बचाई।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता