दिल्ली और आगरा के किलों में संचित खजाने तथा भेरा से लेकर बिहार तक के हरे-भरे मैदान अधिकार में आने के साथ ही बाबर का जीवन भर का सपना पूरा हो गया था किंतु अब वह भारत में रहकर, भारत पर शासन करना चाहता था।
बाबर वापस काबुल या कांधार जाकर जीवन भर की निर्धनता नहीं भोगना चाहता था किंतु बाबर के कई विश्वस्त सेनापतियों एवं मंत्रियों ने आगरा की गर्मी से परेशान होकर भारत में रहने से मना कर दिया तथा वे बाबर को छोड़कर गजनी, काबुल एवं कांधार लौट गए।
बाबर ने सम्भल, बयाना तथा धौलपुर के तुर्की एवं अफगान अमीरों को संदेश भिजवाए कि वे बाबर की अधीनता स्वीकार कर लें। इन तीनों स्थानों पर इब्राहीम लोदी के अमीरों का शासन था। उन तीनों ने ही बाबर का आदेश मानने से मना कर दिया।
बाबर ने उस्ताद अली कुली से कहा कि वह बड़ी-बड़ी तोपें ढाले जो बाबर के दुश्मनों पर काफी दूर से गोलों की बरसात कर सकें। उस्ताद अली ने आगरा में बड़ी-बड़ी आठ भट्टियां लगवाईं। इन भट्टियों में पिघला हुए लोहा पानी की तरह बहता हुआ बाहर निकलता था और नालियों से होता हुआ सांचों में भर जाता था। जब इन सांचों के ठण्डा होने पर उन्हें हटाया जाता था तो तोपें तैयार हो जाती थीं।
उस्ताद अली अपने काम में बड़ा निष्णात था, वह अपने काम को इतने समर्पण भाव से करता था कि बाबर ने उसे कई बार सम्मानित किया ताकि वह पूरे जोश से अपने काम में लगा रहे। जब ये बड़ी तोपें ढल गईं तथा उनके लिए बारूद के पर्याप्त गोले बन गए तब बाबर ने संभल, बयाना, धौलपुर तथा रापरी के लिए एक-एक सेना भिजवाई।
इस समय आगरा और कन्नौज के बीच सत्ता-च्युत अफगानों ने एक सैनिक-शिविर लगा रखा था। इनका उल्लेख करते हुए बाबर ने लिखा है- ‘हुमायूँ को एक सेना के साथ कन्नौज की तरफ भेजा गया जिसके रास्ते में 30-40 हजार अफगान सैनिक जमा हो रखे थे। जब उन्होंने सुना कि हुमायूँ आ रहा है, तब वे लोग भाग खड़े हुए।’
उपरोक्त विवरण को पढ़कर कोई भी व्यक्ति बड़ी आसानी से समझ सकता है कि बाबर ने अपनी सेना की वास्तविक संख्या के बारे में आरम्भ से लेकर अंत तक झूठ लिखा है। बाबर ने लिखा है कि- ‘पानीपत के मैदान में मेरे पास केवल 12 हजार सैनिक थे, जिनमें से आधे बावर्ची, खानसामा, भिश्ती और कुली थे।’
इस प्रकार बाबर ने अपने वास्तविक सैनिकों की संख्या 6 हजार ही बताई है। इन 6 हजार सैनिकों में से दो-चार हजार सैनिक पानीपत के युद्ध में मारे भी गए होंगे। कुछ हजार सैनिक इटावा, धौलपुर, बयाना तथा रापरी के अभियानों पर भेजे जा चुके होंगे और कुछ हजार सैनिकों को गजनी का गवर्नर ख्वाजा कलां और हजारा का गवर्नर सुल्तान मसऊदी भी अपने साथ ले गए होंगे। कुछ सैनिकों को आगरा और दिल्ली की सुरक्षा में भी नियुक्त किया गया होगा! ऐसीस्थिति में हुमायूँ को अपने साथ ले जाने के लिए 2-4 हजार सैनिक भी नहीं मिलने चाहिए थे! अतः हुमायूँ के आगमन का समाचार सुनकर ही 30-40 हजार अफगान सैनिक कैसे भाग सकते थे!
स्पष्ट है कि बाबर झूठ बोल रहा था, पानीपत से लेकर महाराणा सांगा के विरुद्ध किए गए अभियान तक बाबर के पास सैनिकों की संख्या 40-50 हजार से लेकर एक लाख से कम नहीं रही होगी! पाठकों को स्मरण होगा कि हमने दिल्ली की दर्दभरी दास्तान में आजम हुमायूँ नामक एक तुर्की अमीर का इतिहास बताया था। वह दिल्ली सल्तनत में बड़ा शक्तिशाली माना जाता था और दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी का बड़ा विरोधी था। जब सिकंदर लोदी का पुत्र इब्राहीम लोदी दिल्ली का सुल्तान बना तो इब्राहीम लोदी ने आजम हुमायूँ को ग्वालियर के तोमरों के विरुद्ध अभियान करने भेजा था।
इब्राहीम लोदी का अनुमान था कि इस अभियान से या तो इब्राहीम लोदी को तोमरों पर विजय मिल जाएगी या फिर आजम हुमायूँ मारा जाएगा और उससे छुटकारा मिल जाएगा। जब चार साल की घेरेबंदी के बाद आजम हुमायूँ ग्वालियर दुर्ग पर विजय प्राप्त करने वाला ही था, तब इब्राहीम लोदी ने आजम हुमायूँ को दिल्ली में बुलाकर कैद कर लिया था और कैद में ही उसकी हत्या करवा दी थी। इस कारण आजम हुमायूँ के पुत्र इब्राहीम लोदी के शत्रु हो गए थे।
उसी आजम हुमायूँ का बड़ा पुत्र फतेह खाँ सरवानी रायबरेली के निकट दलमऊ में बाबर के पुत्र मिर्जा हुमायूँ की सेवा में उपस्थित हुआ। मिर्जा हुमायूँ ने फतेह खाँ सरवानी का बड़ा सम्मान किया तथा उसे महदी ख्वाजा और मुहम्मद सुल्तान मिर्जा के साथ अपने पिता बाबर की सेवा में भेज दिया।
बाबर ने फतेह खाँ को उसके पिता आजम हुमायूँ के अधिकार वाले परगने तथा कुछ अन्य परगने प्रदान किए जिनसे प्रतिवर्ष 1 करोड़ 60 लाख रुपए का भूराजस्व प्राप्त होता था। फतेह खाँ के पिता को आजम हुमायूँ की उपाधि प्राप्त थी किंतु बाबर ने फतेह खाँ को यह उपाधि इसलिए प्रदान नहीं की क्योंकि बाबर के बड़े पुत्र का नाम भी हुमायूँ था। बाबर ने फतेह खाँ को खानेजहाँ की उपाधि प्रदान की। तभी से मुगल दरबार में खाने जहाँ बहुत बड़ी उपाधि मानी जाने लगी जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- ‘संसार का राजा।’
बयाना पर उन दिनों निजाम खाँ नामक अफगानी अमीर का अधिकार था। उसका बड़ा भाई आलम खाँ निजाम खाँ को हटाकर स्वयं किले पर अधिकार करना चाहता था। इसलिए उसने बाबर से सम्पर्क करके बाबर को आश्वासन दिया कि यदि बाबर की सेना बयाना पर हमला करेगी तो मैं बाबर की सहायता करूंगा।
इस पर बाबर ने बयाना के लिए एक सेना रवाना की। बयाना के शासक निजाम खाँ ने बाबर की सेना को परास्त कर दिया। बाबर और अधिक सेना भेजने की स्थिति में नहीं था। इसलिए बाबर ने निजाम खाँ से संधि कर ली तथा उसे 20 लाख रुपए वार्षिक आय की जागीर देकर अपनी सेवा में रख लिया। निजाम खाँ की जगह महदी ख्वाजा को बयाना का गवर्नर नियुक्त किया गया। उसके अधीन 70 लाख रुपए वार्षिक आय वाली जागीर रखी गई।
इस समय तातार खाँ सारंगखानी ग्वालियर पर शासन करता था। वह भी इब्राहीम लोदी का अमीर था किंतु जब इब्राहीम लोदी मारा गया तो तातार खाँ के शत्रुओं ने ग्वालियर का किला घेर लिया। इस पर तातार खाँ ने बाबर से सहायता मांगी।
बाबर ने लिखा है कि इस समय मेरे अधिकांश बेग या तो हुमायूँ के साथ थे या अन्य अभियानों पर गए थे, इसलिए मैंने भेरा के अमीर रहीम दाद को आदेश दिया कि वह ग्वालियर जाकर दुर्ग पर अधिकार कर ले। जब रहीम दाद ग्वालियर के निकट पहुंचा तो किले में रह रहे एक दरवेश ने रहीम दाद को सूचना भेजी कि तू किले में मत आना, तातार खाँ दगा करेगा।
इस पर रहीम दाद ने तातार खाँ को संदेश भिजवाया कि मैं काफिरों से घिर गया हूँ, इसलिए मुझे थोड़े से सैनिकों के साथ किले में आने दिया जाए। तातार खाँ ने उसकी बात का विश्वास करके उसे थोड़े से सैनिकों सहित किले के भीतर ले लिया।
रात में तातार खाँ के आदमियों ने किले के दरवाजे भीतर से खोल दिए और रहीम दाद की सेना ग्वालियर के किले में घुस गई। इन लोगों ने तातार खाँ को किले से निकाल दिया। जब तातार खाँ बाबर की शरण में आगरा पहुंचा तो बाबर ने उसे भी 20 लाख रुपए आय की जागीर प्रदान करके अपनी सेवा में रख लिया।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता