भारत में अत्यंत प्राचीन काल से रोम को दुनिया की नाभि कहा जाता है। यह तो तय है कि रोम धरती के मध्य में नहीं है, तो फिर रोम को दुनिया की नाभि क्यों कहा जाता है! निश्चित रूप से रोम ने यूरोप को ज्ञान-विज्ञान, धर्म और दर्शन दिया। कानून और नियम दिए, भोजन एवं परिधान शैली दी। एक समय था जब यूरोप एवं भू-मध्य-सागरीय देशों की राजनीति रोम से संचालित होती थी। संभवतः इन्हीं सब कारणों से रोम को दुनिया की नाभि कहा जाता होगा।
हम वर्ष 2017 में इण्डोनेशिया के बाली एवं जावा द्वीपों का भ्रमण कर चुके थे तथा इस बार यूरोप के किसी देश को देखना चाहते थे। इसलिए हमने ‘दुनिया की नाभि’ अर्थात् ‘रोम’ को देखने का निर्णय लिया। उसके साथ ही इटली के पीसा, फ्लोरेंस तथा वेनेजिया नामक नगरों के भ्रमण का भी कार्यक्रम बनाया। आज 17 मई थी, आज ही हमें दुनिया की नाभि के लिए प्रस्थान करना था।
इस बार भी हमारे समूह में वर्ष 2017 में इण्डोनेशिया की यात्रा करने वाले सदस्य ही थे। अर्थात् पिताजी श्री गिरिराज प्रसाद गुप्ता, मैं, मेरी पत्नी मधुबाला, पुत्र विजय, पुत्रवधू भानुप्रिया और पौत्री दीपा! चार साल की दीपा, शैतानियां जिसके दिमाग से निकलकर दुनिया में पनाह पाती हैं। वह भी अपने छोटे से बैग के साथ तैयार थी, जिसमें उसके बिस्किट और पानी की बोतल थी।
दीपा का पासपोर्ट
हम सबने अपना-अपना पासपोर्ट अपने-अपने बैग या जेब में रखा तो लघु यायावर दीपा ने भी विजय और भानु से अपना पासपोर्ट मांगा, किंतु यह देखकर उसकी निराशा का पार नहीं था कि उसके मम्मी-पाना ने उसे पासपोर्ट देने से मना कर दिया। बड़ी कठिनाई से उसे समझाया गया कि उसका पासपोर्ट मम्मी के पास ही होना जरूरी है अन्यथा प्लेन में नहीं घुसने दिया जाएगा।
इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा
हमारी फ्लाइट दिल्ली के इंदिरागांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से दोपहर 12.15 बजे की थी। इसलिए हम विजय के नोएडा स्थित घर से प्रातः 8.30 बजे ही घर से निकल गए। टैक्सी ने हमें 10.05 पर एयरपोर्ट छोड़ दिया। प्रातः काल में डेढ़ घण्टे की यात्रा के बाद सबसे पहले टॉयलेट ढूंढना स्वाभाविक बात है किंतु एयरपोर्ट के टर्मिलन-3 पर टॉयलेट इतनी दूर बना हुआ है कि वृद्ध व्यक्ति को वहाँ तक जाने और वापस आने में 20-25 मिनट लग जाते हैं।
हम जब तक टॉयलेट से मुक्त होकर वापस आए, तब तक 10.25 हो गए। 10.30 पर हमने एयरपोर्ट के भीतर सिक्योरिटी जोन पार किया और सुरक्षा जांच के बाद 10.45 पर हम इमीग्रेशन काउंटर तक जाने वाली क्यू में लग गए। यह एयर इण्डिया की फ्लाइट थी। दुनिया भर के लिए एयर इण्डिया की फ्लाइट इसी समय दोपहर में उड़ती हैं। इसलिए इमीग्रेशन काउण्टर पर लम्बी-लम्बी कतारें लगी हुई थीं।
हमारी फ्लाइट 12.50 बजे थी इसलिए इमीग्रेशन पॉइंट को ठीक 11.50 पर बंद हो जाना था किंतु जिस गति से ‘क्यू’ आगे सरक रही थी, तब तक हमारे लिए काउंटर पर पहुँचना कठिना हो गया। पिताजी ने एयर इण्डिया के कर्मचारी से बार-बार अनुरोध किया कि हमारी फ्लाइट छूट जाएगी, आप हमें आगे जाने दीजिए किंतु वह कर्मचारी यह कहकर टालता रहा कि- ‘जल्दी मत कीजिए सर, आपका नम्बर आ जाएगा।’
हमें एक-एक क्षण भारी लग रहा था। यदि यह फ्लाइट छूट गई तो हमारे आगे के सारे कार्यक्रम एवं बुकिंग बिगड़ जाएंगी। अंत में काफी देर बाद उस कर्मचारी की जगह नया कर्मचारी आया। पिताजी ने उससे भी, आगे जाने देने के लिए अनुरोध किया। इस पर वह कर्मचारी बोला- ‘आप जल्दी कीजिए सर, आगे जाइए। आपकी फ्लाइट का टाइम हो रहा है।’
उस कर्मचारी के सहयोग से हम ‘क्यू’ से बाहर निकलकर काउंटर पर पहुँचे। तब तक 11.45 हो चुके थे। इमीग्रेशन अधिकारी ने हमें टोका कि इतनी लेट क्यों आए हो? हम कुछ जवाब दे पाते उससे पहले ही एक यात्री ‘काउण्टर’ पर बैठे अधिकारी से लड़ने लगा कि वह उसे विण्डो के पास वाली सीट एलॉट करे। अधिकारी ने बताया कि ऐसा करना उसके अधिकार में नहीं है।
सभी सीटें बुक हैं तथा सभी यात्रियों ने अपनी मर्जी से अपनी सीटें तय की हैं, यहाँ तक कि आपने भी अपनी मर्जी से यह सीट चुनी थी। अब मैं इसे बदल नहीं सकता किंतु वह यात्री बहुत जिद्दी था। वह मान ही नहीं रहा था और हमें विलम्बर हुआ जा रहा था। हमें लग रहा था कि आज हमें एक ऐसी गलती की सजा मिलने वाली है जो हमने नहीं की थी।
भागते-दौड़ते पहुँचे विमान में
किसी तरह इमीग्रेशन अधिकारी ने हमारा सामान लिया और हमें भीतर जाने के लिए संकेत कर दिया। तब 12.20 हो चुके थे। वहाँ से भी काफी लम्बा चलना पड़ता है और टी-3 पर 26 गेट बने हुए हैं। हमें 17 नम्बर गेट पर जाना था जो लगभग अंत में पड़ता था। वहाँ तक पहुँचते-पहुँचते 12.40 हो गए। सीट तक पहुँचते-पहुँचते 12.45 हो गए।
सीट पर बैठते ही खाना
हम प्रातः आठ बजे नाश्ता करके घर से निकले थे, उसके बाद कुछ खाने का समय ही नहीं मिला था। पिताजी को तथा मुझे डाइबिटीज की बीमारी है। अब तक तो चिंता के कारण शरीर सहयोग कर रहा था किंतु हवाई जहाज में सीट पर बैठते ही लगा कि रक्त में ‘शुगर लेवल लो’ हो रहा है। अभी सामान भी ढंग से नहीं जमा पाया था कि मैंने बैग में से निकालकर खाना शुरु कर दिया। पिताजी को बहुत कम मामलों में ‘शुगर लो’ होती है। इस मामले में उनकी सहन शक्ति मुझसे अधिक है। इसलिए वे कुछ देर और प्रतीक्षा कर सकते थे।
पहाड़, जंगल और समुद्र का सिलसिला
शाम साढ़े पाँच बजे (इटली का समय) ऊंचे पहाड़ों का सिलसिला आरम्भ हुआ जिन पर बर्फ जमी हुई थी और उनके बीच-बीच में झीलें और घने जंगल दिखाई दे रहे थे। इतनी ऊंचाई से देखने पर नीचे के पहाड़ गोल दिखाई दे रहे थे जिनसे अनुमान होता था कि इन पहाड़ों पर पिछले सैंकड़ों सालों से बरसात हो रही है। पहाड़ों का सिलसिला हरे-भरे मैदानों में जाकर समाप्त हुआ जहाँ करीने से खेतों की कतारें सजी हुई थीं।
इनके बीच-बीच में मानव बस्तियां हैं जिनके घरों की छतें मिट्टी के केलू से बनी हैं और झौंपड़ीनुमा आकृति में निर्मित हैं। शीघ्र ही खेतों का सिलसिला समाप्त हो गया और समुद्र शुरु हो गया। काफी देर तक समुद्र के किनारे-किनारे उड़ते रहने के बाद विमान काफी नीचे हो गया और फिर रोम की ऐतिहासिक भूमि को स्पर्श कर गया।