Wednesday, April 16, 2025
spot_img

खान की उपाधि तुर्कों ने छीन ली मंगोलों से (3)

मंगोल-कबीलों के मुखिया अपने नाम के साथ खाँ और खान की उपाधि लगाते थे। आगे चलकर खाँ अथवा खान सुल्तान एवं बादशाह का पर्याय बन गया। तुर्कों ने मंगोलों को हराकर उनसे उनकी उपाधि छीन ली।

जिस समय हूण मंगोलिया से निकलकर बाल्हीक देश की तरफ जाने आरम्भ हुए थे, उस समय उनके पड़ौस में उनके ही जैसी एक और घुमक्कड़ तथा पशुपालक जाति निवास करती थी जिन्हें ‘ मंगोल ‘ कहा जाता था। आधुनिक काल के इतिहासकारों के अनुसार ‘मंगोल’, चीन के उत्तर में स्थित ‘गोबी के रेगिस्तान’ में रहने वाली घुमंतू एवं अर्द्धसभ्य जाति थी।

हूणों की तरह मंगोलों की जनसंख्या भी बहुत विशाल थी। मंगोलों के नाम पर यह क्षेत्र मंगोलिया कहलाता था। हूणों के मंगोलिया से निकलकर मध्य-एशिया में फैल जाने के सैंकड़ों साल बाद भी मंगोल जाति के लोग पशु चराने वाले घुमक्कड़ कबीलों के रूप में रहते रहे। जंगली पशुओं का शिकार करना और भेड़ें तथा घोड़े पालना इस समुदाय के मुख्य व्यवसाय थे। इनकी कोई स्थाई बस्तियां नहीं थीं।

मंगोल जाति के लोग बहुत गंदे रहते थे और सभी प्रकार के पशुओं का मांस खाते थे। एक मंगोल निरंतर 40 घण्टे तक घोड़े की पीठ पर बैठकर यात्रा कर सकता था। मंगोलों में स्त्री सम्बन्धी नैतिकता का सर्वथा अभाव था किंतु वे माँ का सम्मान करते थे।

मंगोल जाति विभिन्न कबीलों में बंटी हुई थी जिनमें परस्पर शत्रुता रहती थी। बारहवीं शताब्दी ईस्वी में उन्हीं कबीलों में से एक कबीले का सरदार ‘येसूगाई’ था जिसने एक अन्य कबीले के सरदार की औरत को छीन लिया। मंगोल सरदार को खान तथा उसकी औरतों को खातून कहा जाता था। येसूगाई की खातून के पेट से ई.1163 में एक लड़के का जन्म हुआ जिसका नाम तेमूचीन रखा गया।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

चीन में प्रचलित कुछ दंतकथाओं के अनुसार तेमूचीन का जन्म ओमन नदी के तट पर स्थित ‘दिलम बोल्डक’ नामक शहर में हुआ था। जन्म के समय इस बालक की हथेली पर घने बाल थे और उसकी मुट्ठी में रक्त तथा मांस का पिण्ड था। इन दंतकथाओं के अनुसार यह बालक जन्म के समय रोया नहीं था, अपितु उसने भयानक चीत्कार किया था जिसे सुनकर प्रसव कराने वाली दाइयां डर गईं। इस कारण लोगों में यह धारणा बन गई कि खातून के पेट से शैतान ने जन्म लिया है। जब येसूगाई खान मर गया तब उसकी खातून एवं बच्चों को शत्रुओं के भय से कबीला छोड़ना पड़ा और अपनी पहचान छिपाकर मेहनत-मजदूरी करके अपना पेट भरना पड़ा किंतु जब येसूगाई का पुत्र तेमूचिन बड़ा हुआ तो वह अद्भुत लड़ाका सिद्ध हुआ। उसमें युद्ध करने एवं अपने साथियों का नेतृत्व करने की अद्भुत क्षमता थी। विश्व इतिहास में ‘तेमूचीन’ को ‘ चंगेज खाँ ‘ के नाम से जाना जाता है। जब चंगेज खाँ का पहला विवाह हुआ तो उसकी पत्नी बोर्टे का, विवाह के तुरंत बाद एक शत्रु कबीले के सरदार ने अपहरण कर लिया। चंगेज खाँ की पत्नी कई महीनों तक शत्रु कबीले के सरदार के पास रही। इसके बाद बाद चंगेज खाँ अपनी पत्नी को छुड़ाकर ले आया।

कुछ समय बाद चंगेज खाँ की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम ‘जोच्चि’ रखा गया। चंगेज खाँ को जोच्चि के वास्तविक पिता के सम्बन्ध में संदेह था किंतु फिर भी चंगेज खाँ ने जोच्चि को अपने पुत्र के रूप में पाला। जोच्चि भी बड़ा होकर चंगेज खाँ की तरह वीर योद्धा हुआ तथा उसने विभिन्न युद्धों में अपने पिता चंगेज खाँ की बड़ी सहायता की।

चंगेज खाँ ने मंगोलों के विभिन्न कबीलों को संगठित करके एक विशाल सेना का गठन किया तथा मंगोलों को विश्व की सबसे बड़ी सैनिक-शक्ति में बदल दिया। चंगेज खाँ की चौदह पत्नियों एवं उपपत्नियों के नाम मिलते हैं जबकि वास्तविक संख्या और भी अधिक हो सकती है। इन पत्नियों एवं उपपत्नियों से चंगेज खाँ के ढेरों बेटे-बेटी हुए। चंगेज खान ने अपने साम्राज्य को विभिन्न ‘खानेटों’ में विभक्त किया, प्रत्येक खानेट को चंगेज खाँ के एक पुत्र द्वारा शासित किया गया।

जिस प्रकार छठी शताब्दी ईस्वी के मध्य में बूमिन ने तुर्कों का शक्तिशाली संगठन स्थापित किया और उसके वंशजों ने लगभग सम्पूर्ण मध्य-एशिया पर अधिकार कर लिया, उसी प्रकार चंगेज खाँ ने बारहवीं शताब्दी के अंत में मंगोलों को आधे से अधिक संसार पर अधिकार करने के लिए तैयार कर लिया।

मंगोलों की सेना एक रात्रि में 20 मील से अधिक का मार्ग तय कर लेती थी। मंगोल सैनिक तेजी से दौड़ते हुए घोड़े की पीठ पर बैठकर अपने शत्रुओं को तीरों से मार डालते थे। मंगोल सैनिक जितने मजबूत लड़ाके थे, उतने ही अधिक क्रूर एवं हिंसक थे। वे जहाँ-कहीं भी गये, उन्होंने वहाँ की सभ्यता के समस्त चिह्नों को नष्ट कर दिया। बारहवीं शताब्दी से लेकर सोलहवीं शताब्दी तक सम्पूर्ण एशिया एवं यूरोप में मंगोल आक्रमणों का भय एवं आतंक व्याप्त रहा।

इस काल में मंगोल मूर्ति-पूजक थे तथा विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं की पूजा किया करते थे। चंगेज खाँ के नाम में लगे ‘खाँ’ शब्द से यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि वह मुसलमान था। मंगोल-कबीलों के मुखियों को आदिकाल से ही ‘खाँ’ या ‘खान’ कहा जाता था। मंगोल शासक खान की उपाधि बड़े गर्व से धारण करते थे।

एक बार तुर्क सरदार बूमिन ने मंगोलों के किसी बड़े नेता को पराजित किया था, तब तुर्कों ने भी खान की उपाधि धारण की और तब से तुर्क मुखिया भी अपने नाम में ‘खाँ’ अथवा ‘खान’ लगाने लगे जिसका भावनात्मक अर्थ राजा अथवा मुखिया होने से था।

जब तुर्कों ने भारत में सल्तनत स्थापित की तब प्रत्येक मुसमान खान की उपाधि लगाने लगा। आज भारत, बांगलादेश एवं पाकिस्तान में अधिकांश लोग ‘खाँ’ शब्द का अर्थ मुसलमान होने से मानते हैं किंतु मंगोल एवं तुर्क सरदार उस समय से अपने नाम में ‘खाँ’ लगाते थे, जब इस्लाम का उदय भी नहीं हुआ था।

चूंकि कालांतर में मध्य-एशिया के तुर्कों एवं मंगोलों ने इस्लाम अंगीकार कर लिया, इसलिए मध्य-एशिया एवं दक्षिण-एशिया के लोगों में यह धारणा बन गई कि ‘खाँ’ होने का अर्थ मुसलमान होना है। दुनिया में ऐसे बहुत से देश हैं, जहाँ के मुसलमान अपने नाम में ‘खाँ’ नहीं लगाते। इसका कारण यह है कि उन देशों के लोग मुसलमान बनने से पहले तुर्क अथवा मंगोल नहीं थे।

बारहवीं शताब्दी के अंत एवं तेरहवीं शताब्दी के आरम्भ में उत्तरी चीन में ‘किन-वंश’ के चीनी सम्राटों का शासन था। चंगेज खाँ के नेतृत्व में मंगोलों ने ‘किन-साम्राज्य’ के विरुद्ध विद्रोह करके स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया तथा ‘किन-सम्राट’ को परास्त करके उसकी राजधानी पेकिन पर अधिकार कर लिया। इसे अब पेकिंग एवं बीजिंग कहते हैं।

उत्तरी चीन के पश्चिम में उस समय तुर्क जाति का एक शक्तिशाली साम्राज्य विद्यमान था जिसकी राजधानी ‘खीवा’ थी। चंगेज खाँ की सेनाओं ने इस तुर्क साम्राज्य पर भी आक्रमण किया। तुर्क जाति के लड़ाके मंगोल जाति के लड़ाकों के समक्ष नहीं टिक सके और खीवा का तुर्क साम्राज्य चंगेज खाँ के अधीन हो गया। अब चंगेज खाँ पेकिंग तथा खीवा के दो विशाल साम्राज्यों का स्वामी था।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source