सरदार वल्लभ भाई पटेल के पिता का नाम झबेरभाई और माता का नाम लाड़बाई था। अपने माता-पिता की कई संतानों में से एक होने के कारण मिठाई के लिये सबसे अंत में याद किये जाते थे वल्लभभाई और विट्ठलभाई।
झबेरभाई की पहली पत्नी की मृत्यु होने पर उनका दूसरा विवाह हुआ। दूसरी पत्नी लाड़बाई उनसे आयु में 18 वर्ष छोटी थी। झबेरभाई को पहली पत्नी से कोई संतान नहीं थी किंतु दूसरी पत्नी से पांच पुत्र और एक कन्या का जन्म हुआ। सोमाभाई, नरसीभाई, विट्ठलभाई, वल्लभभाई, काशीभाई तथा डाहीबा।
इस प्रकार वल्लभभाई पटेल, अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। माता लाड़बाई धार्मिक विचारों की सुघड़ एवं संस्कारवान महिला थीं। पति की कम आय में भी उन्होंने बड़ी समझदारी से गृहस्थी चलाई तथा बच्चों को प्रायः अभाव अनुभव नहीं होने दिया। माता-पिता के इन संस्कारों और वंश-परम्परा ने बच्चों के व्यक्तित्व विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया। जीवन के संघर्षों तथा माता-पिता के संसकरों के कारण, पटेल परिवार के बच्चों में परिश्रम, साहस, निडरता और अडिगता के गुण आ गये।
माता पिता को अपने दो बड़े पुत्रों सोमाभाई और नरसीभाई से बड़ी उम्मीदें थीं तथा छोटी दो संतानों काशीभाई एवं डाहीबा से बहुत स्नेह था। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी इसलिये घर में कपड़े और मिठाई आने के प्रसंग यदाकदा ही उपस्थित होते थे किंतु जब भी ऐसा होता था तो सबसे पहले दोनों छोटे बच्चों को बुलाया जाता। उसके बाद उन दो बड़े बच्चों का नम्बर आता जिनसे माता-पिता को बहुत उम्मीदें थीं।
उस काल में किसी दम्पत्ति की छः संतान होना एक सामान्य बात थी किंतु संसाधनों के अभाव के कारण पारिवारिक जीवन अत्यंत साधारण होता था। झबेर भाई का परिवार भी इसी सामान्य आर्थिक पृष्ठभूमि का था। बीच की संतान होने के कारण विट्ठलभाई और वल्लभभाई प्रायः सबसे बाद में याद किये जाते। काम के समय विट्ठलभाई और वल्लभभाई को सबसे पहले स्मरण किया जाता।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता