वल्लभभाई पटेल ने नाडियाद के एक वकील के पास वकालात का पेशा सीखा और उसके बाद मुख्तारी की परीक्षा पास करके गोधरा में वकालात करने लगे।
मैट्रिक उत्तीर्ण करने के बाद वल्लभभाई ने नाडियाद के एक वकील के सहायक के रूप में काम करना आरम्भ कर दिया। इस दौरान वल्लभभाई जब भी कोर्ट में जाते, मुकदमे की बारीकी को समझने का प्रयास करते तथा उस वकील से पुस्तकें लेकर स्वयं भी अध्ययन करते। तीन साल के परिश्रम और स्वाध्याय के बाद वल्लभभाई ने ई.1900 में मुख्तारी की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली।
उन दिनों देश में दो तरह के वकील होते थे, स्थानीय मजिस्ट्रेटों के न्यायालय में वकालात करने के लिए मुख्तारी की परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती थी। सरदार वल्लभभाई पटेल मेधावी छात्र थे, इसलिए वे कोई परीक्षा उत्तीर्ण करके सरकार कार्यालयों में नौकरी पा सकते थे किंतु सरदार पटेल को अंग्रेजों की नौकरी करनी पसंद नहीं थी। इसलिए वे मुख्तारी की परीक्षा उत्तीर्ण करके स्वतंत्र वकील बन गये।
इसके बाद कई वकीलों ने उन्हें अपने साथ काम करने का प्रस्ताव दिया किंतु वल्लभभाई, नाडियाद छोड़कर गोधरा चले आये जहाँ उनके बड़े भाई विट्ठलभाई पटेल भी वकालात किया करते थे। वल्लभभाई ने अपनी स्वयं की स्वतंत्र प्रैक्टिस जमाने का प्रयास किया। वे मेधावी थे तथा बहुत परिश्रम करते थे किंतु विपुल परिश्रम करने के उपरांत भी वल्लभभाई की आय बहुत कम रही जिससे गृहस्थी का व्यय उठाना सम्भव नहीं था। बर्ड़ भाई विट्ठलभाई की भी यही हालत थी। इसलिये विट्ठलभाई ने गोधरा छोड़कर बोरसद चले जाने का निर्णय लिया तथा वल्लभभाई से कहा कि वे भी बोरसद चलें।
इस पर वल्लभभाई ने गोधरा में ही रहने का निर्णय लिया। उन्हें किसी शहर से विफल होकर चले जाना अच्छा नहीं लगा। इस प्रकार विट्ठलभाई बोरसद चले गये तथा वल्लभभाई गोधरा में वकालात करते रहे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता