अंग्रेजों ने भारत में ब्रिटिश न्याय प्रणाली पर आधारित न्यायालयों की स्थापना की थी। इस व्यवस्था में पीड़ित को न्याय मिलने की प्राथममिकता नहीं थी, अपति विभिन्न आधारों पर अपराध कारित नहीं होने की स्थापना की जाती थी। इस कारण अपराधी अपराध करने के बाद विभिन्न प्रकार के हथकण्डे अपनाते थे। सरदार पटेल ने निर्दोष एवं पीड़ित व्यक्ति को न्याय दिलवाने के लिए मुकदमेबाजों के हथकण्डे समझे।
उन दिनों की वकालात अपने आप में एक अलग तरह के कौशल की मांग करती थी। अंग्रेज अधिकारी हर समय उन भारतीयों को किसी झूठे मुकदमे में फंसाने का प्रयास करते थे जिनसे ब्रिटिश राज को खतरा हो। सरकारी कारकुन उस हर व्यक्ति पर झूठा मुकदमा लाद देते थे जो उनके स्वार्थ की पूर्ति में बाधक हो। लोगों में एक दूसरे से बदला लेने के लिये भी झूठे सच्चे मुकदमे स्थापित करने की प्रवृत्ति थी।
ब्रिटिश राज में पुलिस के भ्रष्टाचार का कोई अंत नहीं था। इसलिये पुलिस के हथकण्डों का पार न था। वह दोनों तरफ के पक्षों से पैसा खाकर नट की तरह कलाबाजियां खाती रहती थी जिससे मुकदमे लम्बे खिंचते थे और लोग उनमें फंसे रहते थे। वकीलों में भी इस बात की प्रवृत्ति थी कि जितना हो सके, मुकदमा लम्बा खिंचे ताकि आय का स्थाई स्रोत बना रहे। इस प्रकार लोगों पर हो रहे अन्याय, अत्याचार और उत्पीड़न का पार नहीं था।
वे विभिन्न न्यायालयो में चल रहे मुकदमों में फंसे रहकर अपनी कमाई, स्थाई सम्पत्ति और जीवन का सुख-चैन गंवा रहे थे। वल्लभभाई ने उन सब लोगों की मनोवृत्ति तथा उनके द्वारा अपनाये जाने वाले हथकण्डों का सूक्ष्मता से अध्ययन किया तथा अपने मुकदमों में उस ज्ञान को काम में लेने का अभ्यास किया।
वल्लभभाई किताबी ज्ञान में असाधारण थे किंतु व्यावहारिक ज्ञान में सब वकीलों से बढ़कर थे। मुकदमेबाजों के हथकण्डे अच्छी तरह से समझ लेने के कारण वे अपने मुवक्किलों को अधिकतर मामलों में राहत दिलवाने में सक्षम सिद्ध होते थे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता