सरदार पटेल में कर्त्तव्यनिष्ठा – पत्नी की मृत्यु का तार मिलने पर भी कोर्ट में बहस करते रहे वल्लभभाई
सरदार पटेल में कर्त्तव्यनिष्ठा का भाव चरम पर था। वे किसी भी परिस्थिति में अपने कर्त्तव्य से नहीं डिगते थे। उनके जीवन में ऐसे कई क्षण आए जब उन्होंने निजी जिंदगी को तिलांजलि देकर अपने कर्त्तव्य पथ को नहीं छोड़ा।
अब तक जमा की गई पूंजी से विट्ठलभाई को इंग्लैण्ड भेज देने तथा दो परिवारों का व्यय चलाने के लिये वल्लभभाई को दिन-रात परिश्रम करना पड़ता था। सरदार पटेल की पत्नी झबेर बा उनकी हर आवश्यकता का ध्यान रखती थीं किंतु वे बीमार पड़ गईं। संभवतः उनके पेट में कैंसर की गांठ हो गई।
मुकदमों की तैयारी में उलझे रहने के कारण वल्लभभाई उनके स्वास्थ्य की ओर अधिक ध्यान नहीं दे सके। उन दिनों कैंसर का इलाज भी नहीं था। विट्ठलभाई ई.1908 में बैरिस्ट्री पढ़कर भारत लौटे। इस बार उन्होंने बम्बई में अपना कार्यालय जमाया और वहीं वकालात करने लगे। वल्लभभाई बोरसद में प्रैक्टिस करते रहे। झबेर बा के पेट की गांठ को निकालने के लिये ऑपरेशन करना आवश्यक था किंतु उनका स्वास्थ्य इतना खराब हो चुका था कि शरीर ऑपरेशन को झेल नहीं सकता था। इसलिये झबेर बा को उपचार हेतु बम्बई ले जाना आवश्यक हो गया।
वल्लभभाई ने पत्नी झबेर बा को चार साल की पुत्री मणिबेन तथा तीन साल के पुत्र डाह्याभाई के साथ, विट्ठलभाई के पास बम्बई भेज दिया। बम्बई के डॉक्टरों ने झबेर बा का उपचार करना आरम्भ कर दिया किंतु एक दिन अचानक आपात् स्थिति में उन्हें झबेरबा का ऑपरेशन करना पड़ा। इसलिये वल्लभभाई को बोरसद से बम्बई नहीं बुलाया जा सका। वल्लभभाई किसी मुवक्किल के मुकदमे की तैयारी में उलझे हुए थे, इस कारण ऑपरेशन के बाद भी बम्बई नहीं जा सके।
इस ऑपरेशन के बाद झबेर बा ठीक होने लगीं किंतु कुछ दिन बाद 11 जनवरी 1909 को अचानक झबेर बा का निधन हो गया। वल्लभभाई को तार द्वारा इस दुःखद घटना की सूचना दी गई। जिस समय उन्हें तार दिया गया, वल्लभभाई एक कोर्ट में बहस कर रहे थे। वल्लभभाई ने तार को पढ़ा तो सन्न रह गये।
वे नहीं चाहते थे कि किसी भी कारण से उनके मुवक्किल का नुक्सान हो। इसलिये उन्होंने तार को पढ़कर जेब में रख लिया और बहस को जारी रखा। मुकदमे की कार्यवाही पूरी होने के बाद मजिस्ट्रेट ने पटेल से पूछा कि बहस के दौरान उन्हें जो तार मिला था, उसमें क्या लिखा था। पटेल ने तार अपनी जेब से निकालकर मजिस्ट्रेट की ओर बढ़ा दिया।
पटेल का मानना था व्यक्तिगत संवेदना अपनी जगह थी किंतु जिस मुवक्किल से फीस ले रखी थी, उसके प्रति कर्त्तव्य पूरा करना आवश्यक था। पटेल को इसी निष्ठा के कारण वकालात के काम में इतनी लोकप्रियता मिली थी कि उनके पास मुकदमों का ढेर लगा रहता था।
उनकी यह प्रतिष्ठ तब भी बनी रही जब वे लंदन से बैरिस्ट्री पास करके आ गये। यही कारण था कि पटेल की वकालात इतनी चलती थी कि उनके आगे नेहरू, जिन्ना और गांधी की वकालात फीकी थी।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता