सरदार पटेल का स्वाभिमान – किसी से भी विरोध हो जाने की चिंता नहीं करते थे वल्लभभाई
सरदार पटेल का स्वाभिमान बचपन से ही उच्च स्तर पर था। वे न तो बाल्यकाल में किसी से डरे, न अपने कैरियर में किसी से दबे और न आजादी की लड़ाई के दौरान किसी पुलिस अधिकारी अथवा जेलर से भयभीत हुए।
सरदार वल्लभभाई पटेल की स्कूली शिक्षा अपने गांव की पाठशाला में हुई। स्कूल की शिक्षा से संतुष्ट नहीं होने के कारण पटेल अपने घर पर पुस्तकें लाकर स्वाध्याय करने लगे। उनका स्वाध्याय इस उच्च कोटि का था कि उनके द्वारा किये जाने वाले प्रश्नों को सुनकर अध्यापक विस्मित रह जाते थे। शीघ्र ही वल्लभभाई गांव के सबसे प्रतिभाशाली छात्र कहलाने लगे।
स्कूली जीवन में भी सरदार पटेल का स्वाभिमान पूर्ण रूप से विकसित था। इस कारण अपने से बड़े विद्यार्थियों अथवा अपने शिक्षकों से भयभीत नहीं होते थे और किसी से भी विरोध हो जाने की चिंता नहीं करते थे। एक बार स्कूल में यह अनिवार्य कर दिया गया कि छात्रों को स्कूल से ही पुस्तकें खरीदनी पड़ेंगी। सरदार ने इस नियम का विरोध किया तथा छात्रों को एकत्रित करके उन्हें इस बात के लिये सहमत कर लिया कि कोई भी छात्र, स्कूल से पुस्तक नहीं खरीदेगा। इस विरोध के कारण 5-6 दिन तक स्कूल बंद रहा। अंत में स्कूल प्रबंधन ने हार मान ली और स्कूल से पुस्तकें खरीदने की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई।
जब वल्लभभाई छठी कक्षा में थे तो एक अध्यापक ने एक छात्र को इतनी जोर से पीटा कि छात्र दर्द से बिलबिला गया। वल्लभभाई ने उस अध्यापक का विरोध किया। अध्यापक भी अड़ गया तो वल्लभभाई ने सारे छात्रों को एकत्रित करके हड़ताल करवा दी। इस पर प्रिंसिपल ने घटना की जांच की और अध्यापक को इस बात के लिये प्रतिबंधित किया कि वे भविष्य में किसी छात्र को इतनी जोर से नहीं पीटेंगे। इसके बाद ही स्कूल में कक्षाएं आरम्भ हो सकीं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता