Thursday, November 21, 2024
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अंग्रेजी न्याय – को जेल जाने से बचा लिया वल्लभभाई ने !

अंग्रेजी न्याय व्यवस्था में किसी निर्दोष व्यक्ति को निर्दोष सिद्ध कर पाना तथा दोषी को दोषी सिद्ध कर पाना अच्छे-अच्छे वकीलों के लिए बड़ी चुनौती होती थी! निर्दोष व्यक्ति को भी मुकदमा जीतने के लिए कोई हथकण्डा अपनाना पड़ता था।

वल्लभभाई पटेल बोरसद के न्यायालय में प्रैक्टिस कर रहे थे जहाँ उनका सामना नित्य ही झूठे मुकदमों से होता था। रेलवे के एक इंस्पेक्टर की, किसी मामले में एक अंग्रेज अधिकारी से झड़प हो गई। रेलवे अधिकारी ने उस इंस्पेक्टर को चोरी के झूठे मामले में फंसा दिया। अधिकारी ने अपने पक्ष में झूठे गवाह भी तैयार कर लिये।

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इंस्पेक्टर ने वल्लभभाई को अपना वकील बनाया। वल्लभभाई ने मुकदमे का अध्ययन किया तो समझ गये कि दुष्ट अंग्रेज अधिकारी ने इतना मजबूत जाल रचा है कि वल्लभभाई अपने मुवक्किल को कोर्ट में सजा होने से नहीं बचा पायेंगे। इसलिये वल्लभभाई ने झूठ के जाल को काटने के लिये एक नये झूठ का हथियार तैयार किया। वे जानते थे कि अंग्रेजी न्याय की नस ऐसे ही दबाई जा सकती है। वल्लभभाई ने अपने मुवक्किल से कहा कि जिस दिन न्यायालय में पेशी हो, उस दिन कोर्ट से बाहर वह अपने अंग्रेज अधिकारी के समक्ष स्वीकार करे कि मुझसे गलती हो गई है, क्षमा कर दें। पहले भी मुझे चोरी के एक मुकदमे में सजा हो चुकी है। देखिये कोर्ट का यह निर्णय। रेलवे इंस्पेक्टर ने वैसा ही किया।

इस पर अंग्रेज अधिकारी ने कहा कि ठीक है, मैं तुम्हें माफ कर दूंगा किंतु क्या तुम यह कागज मुझे दे सकते हो ? इस पर इंस्पेक्टर ने कहा कि यदि यह कागज लेकर आप मुझे क्षमा कर सकते हैं तो इसे आप रख लीजिये किंतु मुझे क्षमा अवश्य कर दीजिये। अंग्रेज अधिकारी बड़ा खुश हुआ कि मूर्ख इंस्पेक्टर ने अपनी मौत का सामान स्वयं ही अपने शत्रु को सौंप दिया है।

जब कोर्ट में सुनवाई हुई तो अंग्रेज अधिकारी के वकील ने वही कागज मजिस्ट्रेट के समक्ष रख दिया और कहा- ‘यह आदमी तो आदतन चोर है, इसे पहले भी सजा हो चुकी है, यह देखिये प्रमाण।’

जब मजिस्ट्रेट ने इंस्पेक्टर से इस कागज के बारे में पूछा तो इंस्पेक्टर ने कहा कि इसका जवाब मेरे वकील देंगे। वल्लभभाई ने वह कागज अपने हाथ में लेकर पढ़ा और बोले- ‘इस दस्तावेज में आज से तीस साल पहले मेरे मुवक्किल को चोरी के अपराध में सजा होने की बात लिखी है किंतु मेरे मुवक्किल की आयु भी कुल तीस साल ही है।

तो क्या उसे पैदा होते ही चोरी के अपराध की सजा दे दी गई थी ? स्पष्ट है कि जिस प्रकार वादी पक्ष ने, तीस साल पहले की चोरी के कूटरचित दस्तावेज को गढ़ा है, उसी प्रकार इस नई चोरी के आरोप को भी पूरी तरह झूठा गढ़ा गया है।’ मजिस्ट्रेट ने झल्लाकर, अंग्रेज अधिकारी का मुकदमा निरस्त कर दिया और निर्दोष इंस्पेक्टर को आरोप से मुक्त कर दिया।

अंग्रेजों के शासन में वकीलों में इस तरह की प्रैक्टिस होना आम बात तो नहीं थी किंतु आवश्यकता होने पर वकील समुदाय, न्यायालयों में इस तरह के चमत्कार दिखाता रहता था।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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