वल्लभभाई उदारमना व्यक्तित्व के धनी थे। पारिवारिक सम्बन्धों में तो वे उदारता की सभी सीमाएं पार कर जाते थे। ऐसे बहुत से किस्से हैं जिनमें वल्लभभाई की उदारता के उदाहरण देखे जा सकते हैं।
व्यक्तित्व की विराटता और स्वभाव की उदारता यद्यपि एक दूसरे के पूरक हैं किंतु सरदार पटेल में ये दोनों गुण चरम पर मौजूद थे जिनका लाभ न केवल उन्हें या उनके परिवार को अपितु सम्पूर्ण मानवता को भी मिला। स्वतंत्रता आंदोलन में एवं भारत के एकीकरण में सरदार के इन दोनों गुणों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वल्लभभाई ने जिस तरह लंदन यात्रा का टिकट विट्ठलभाई को दे दिया था, उस तरह उन्होंने अपना गोधरा का मकान अपने अनुज काशीभाई को दिया। उन्हें यह अभ्यास बचपन से ही हो गया था जब घर में मिठाई या नये कपड़े आते तो दूसरे भाईयों एवं बहिन में बँट जाते और वल्लभभाई संतोष कर लेते।
यह अभ्यास उनके जीवन को ऊँचा उठाने में काम आया। वस्तुतः वल्लभभाई के स्वभाव में तीन प्रमुख तत्व थे, एक तो उनसे जो कोई भी मांगता था, वे उसे दे देते थे, दूसरा यह कि वे अपने परिवार से बहुत प्रेम करते थे और तीसरा यह कि वे अपने लिये किसी भी वस्तु या सुविधा की मांग को लेकर कभी किसी से नहीं झगड़ते थे।
यरवदा जेल में भी जब वे गांधीजी के साथ थे, अपनी सुविधा और आवश्यकताओं को त्यागकर उन्होंने केवल गांधीजी की सेवा करने पर ध्यान केन्द्रित किया। यहाँ तक कि वल्लभभाई जब बीमार पड़ गये तो उन्होंने जेल से पैरोल मांगने से मना कर दिया। आगे चलकर तीन बार उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी गांधीजी की इच्छानुसार दूसरों को दे दी यहाँ तक कि हिन्दुस्तान के प्रधामंत्री की कुर्सी भी जवाहरलाल नेहरू के लिये छोड़ दी और स्वयं एकनिष्ठ भाव से राष्ट्र की सेवा करते रहे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता