फीरोजशाह तुगलक की मजहबी संकीर्णता ने दिल्ली सल्तनत के शासनतंत्र में कई तरह की विसंगतियां उत्पन्न कर दीं। एक बार एक सैनिक ने सुल्तान फीरोजशाह से शिकायत की कि सरकारी विभाग के क्लर्क रिश्वत लिए बिना उसके घोड़े पास नहीं कर रहे हैं। इस पर सुल्तान ने उस सैनिक को अपने पास से सोने का एक टंका दिया ताकि वह सरकारी क्लर्क को रिश्वत देकर अपना घोड़ा पास करवा सके।
सुल्तान ने यह कदम इसलिए उठाया ताकि उसे एक मुस्लिम कर्मचारी के विरुद्ध कार्यवाही नहीं करनी पड़े। इसी प्रकार पूर्व सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की बहिन जो कि खुदाबंदजादा की पत्नी थी और सुल्तान फीरोज तुगलक की चचेरी बहिन थी, ने सुल्तान फीरोज को जान से मारने के लिए षड़यंत्र रचा किंतु फीरोज तुगलक ने अपनी चचेरी बहिन के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की।
एक बार कटेहर के हिन्दू शासक खड़कू ने दो सैयदों की हत्या कर दी। जब यह समाचार सुल्तान फीरोज तुगलक के पास पहुंचा तो फीरोज ने कटेहर पर आक्रमण किया। कटेहर का शासक खड़कू कुमायूं की पहाड़ियों में भाग गया। जब फीरोज ने देखा कि खड़कू को पकड़ना कठिन है तो उसने कटेहर की हिन्दू जनता को दण्डित करने का निश्चय किया। फीरोज की सेना ने 23 हजार हिन्दुओं को पकड़कर बलपूर्वक मुसलमान बनाया।
अगले पांच साल तक हर साल फीरोज तुगलक कटेहर जाता रहा और कटेहर के कुछ लोगों को पकड़कर मुसलमान बनाता रहा ताकि मृत सयैदों की आत्माओं को शांति मिल सके। अंत में मृत सयैदों की आत्माओं ने स्वयं सुल्तान से कहा कि अब वह इस अत्याचार को बंद कर दे।
फीरोज ने सुन्नी मुसलमानों का रक्त न बहाने के नाम पर बंगाल एव सिंध को दिल्ली सल्तनत में शामिल नहीं किया जबकि शियाओं, सूफियों एवं हिन्दुओं पर इतने अत्याचार किए कि मुहम्मद बिन तुगलक की तुलना में फीरोजशाह तुगलक अधिक अत्याचारी सिद्ध हुआ। सुल्तान फीरोजशाह तुगलक 38 वर्ष की लम्बी अवधि तक शासन करता रहा और 80 वर्ष की आयु में मरा। उसके राज्य का पतन उसके जीवन काल में ही होने लगा था।
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पाठकों को स्मरण होगा कि पूर्ववर्ती सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने तेलंगाना के एक ब्राह्मण को मुसलमान बनाकर अपने राज्य में नौकरी दी थी। उस ब्राह्मण ने अपना नाम मकबूल रख लिया था। फीरोज तुगलक ने मकबूल को खान-ए-जहाँ की उपाधि देकर उसे अपना प्रधानमंत्री बना लिया था। वह एक योग्य वजीर था किंतु जब सुल्तान उस पर अत्यधिक विश्वास करने लगा तो मकबूल खान-ए-जहाँ ने सल्तनत में अपनी शक्ति बढ़ा ली और सल्तनत की शक्ति मकबूल के हाथों में केन्द्रित हो गई।
दिल्ली के वातावरण में मकबूल खान-ए-जहाँ अत्यंत विलासी हो गया तथा उसने अपने हरम में विभिन्न जातियों की दो हजार औरतें जमा कर लीं जिनसे खान-ए-जहाँ को ढेर सारी औलादें उत्पन्न हुईं। खान-ए-जहाँ ने अपने जीवन का अधिक समय इन औरतों के साथ खर्च किया। इस प्रकार वजीर अय्याशी करता रहा और दिल्ली सल्तनत बिखरती रही। आखिर एक दिन मकबूल खान-ए-जहाँ मर गया। इस पर फीरोज तुगलक ने उसके पुत्र को खान-ए-जहाँ की उपाधि देकर सल्तनत का नायब अर्थात् प्रधानमंत्री बना दिया।
नया प्रधानमंत्री अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी था। वह सल्तनत पर अधिकार करने की चेष्टा करने लगा। इस कारण प्रधानमंत्री खान-ए-जहाँ तथा शहजादे मुहम्मद के बीच शत्रुता हो गई। यह शत्रुता इस कदर बढ़ी कि उन दोनों को ही दिल्ली छोड़कर भाग जाना पड़ा। इस कारण वृद्ध एवं बीमार फीरोजशाह तब तक शासन करता रहा जब तक कि उसकी मृत्यु नहीं हो गई।
फीरोजशाह तुगलक की मृत्यु के उपरान्त उसका पौत्र गियासुद्दीन तुगलकशाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा। तुगलकशाह, फीरोजशाह तुगलक के मरहूम शहजादे फतेह खाँ का पुत्र था। उसने गयासुद्दीन तुगलक (द्वितीय) की उपाधि धारण की। वह अल्पवयस्क तथा अनुभव-शून्य शासक था। इस कारण गम्भीर परिस्थितियों को संभालने में सक्षम नहीं था।
दिल्ली का तख्त मिलते ही तुगलकशाह आमोद-प्रमोद में मग्न हो गया और शासन का कार्य चापलूस अधिकारियों के भरोसे छोड़ दिया। इस कारण राज्य के योग्य एवं पुराने अमीर सुल्तान गयासुद्दीन तुगलकशाह से असन्तुष्ट हो गए। जब तुगलकशाह ने जफर खाँ के पुत्र अबूबक्र को कारागार में डाल दिया, तब अमीरों ने सुल्तान के विरुद्ध षड्यंत्र रचकर 19 फरवरी 1389 को सुल्तान तुगलकशाह की हत्या कर दी।
इस प्रकार गयासुद्दीन तुगलक (द्वितीय) के बाद अबूबक्र दिल्ली के तख्त पर बैठा। इस पर मरहूम सुल्तान फीरोजशाह तुगलक के छोटे पुत्र मुहम्मद ने अबूबक्र के विरुद्ध संघर्ष आरम्भ कर दिया जो फीरोजशाह के जीवनकाल में दिल्ली छोड़कर सिरमूर की पहाड़ियों में भाग गया था। इस संघर्ष में मुहम्मद को सफलता प्राप्त हुई और अबूबक्र मारा गया।
अबूबक्र के बाद ‘मुहम्मद’ नासिरूद्दीन मुहम्मदशाह के नाम से दिल्ली के तख्त पर बैठा। मुहम्मदशाह ने गुजरात को फिर से दिल्ली सल्तनत के अधीन करने के लिए सेनापति जफर खाँ को गुजरात पर आक्रमण करने भेजा। जफर खाँ ने गुजरात पर विजय प्राप्त कर ली तथा वह सुल्तान की ओर से गुजरात पर शासन करने लगा।
नासिरूद्दीन मुहम्मदशाह ने इटावा तथा अन्य स्थानों के हिन्दुओं के विद्रोहों के दमन किये। यद्यपि सुल्तान इन विद्रोहों को दबाने में सफल रहा परन्तु स्वास्थ्य बिगड़ जाने से 15 जनवरी 1394 को उसकी मृत्यु हो गई। वह पांच साल से भी कम समय शासन कर सका।
नासिरूद्दीन मुहम्मदशाह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र हुमायूं ‘अल्लाउद्दीन सिकंदरशाह’ के नाम से दिल्ली के तख्त पर बैठा परन्तु तख्त पर बैठने के लगभग 15 माह बाद 8 मार्च 1395 को उसकी मृत्यु हो गई। अल्लाउद्दीन सिकंदरशाह की मृत्यु के बाद नासिरूद्दीन मुहम्मदशाह का सबसे छोटा पुत्र ‘महमूद’ नासिरूद्दीन महमूद के नाम से दिल्ली के तख्त पर बैठा। उसे चारों ओर से भयानक उपद्रवों का सामना करना पड़ा।
दूरस्थ प्रांतों में हिन्दू सरदार तथा मुसलमान सूबेदार अपने-अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का प्रयत्न करने लगे। ख्वाजाजहाँ नामक एक अमीर ने जौनपुर में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया। खोखरों ने उत्तर में विद्रोह कर दिया। गुजरात, मालवा तथा खानदेश भी स्वतंत्र हो गए।
तुगलक सुल्तानों की आवाजाही के कारण राजधानी दिल्ली में विभिन्न दलों एवं वर्गों में संघर्ष आरम्भ हो गए जिसके कारण दिल्ली में गृहयुद्ध आरम्भ हो गया। मरहूम सुल्तान फीरोजशाह तुगलक का एक पोता नसरत खाँ कुछ अमीरों तथा सरदारों की सहायता से दिल्ली का तख्त प्राप्त करने का प्रयत्न करने लगा। उसने फीरोजाबाद में स्वयं को सुल्तान घोषित कर दिया। इस प्रकार नासिरूद्दीन महमूद दिल्ली में तथा नसरतशाह फीरोजाबाद में शासन करने लगा।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता