Thursday, November 21, 2024
spot_img

15. पश्चिमी रोमन साम्राज्य

वेलेण्टाइन राजवंश

ई.364 से 392 तक पश्चिमी रोमन साम्राज्य में वेलेण्टाइन राजवंश की सत्ता रही जिसकी राजधानी रोम थी। जूलियन की मृत्यु के बाद ई.364 में रोम की सेना द्वारा वेलेण्टाइन (प्रथम) को राजा चुना गया। वह लगभग 12 साल तक राज्य करता रहा। ई.367 से 383 तक वेलेण्टाइन (प्रथम) का पुत्र ग्रेटियन रोम का राजा हुआ। उसके शासन काल में दो महत्त्वपूर्ण घटनाएं हुईं।

पहली यह कि ई.375 में रोमन सेना के दूसरे गुट ने वेलेण्टाइन (प्रथम) के अन्य पाँच वर्षीय पुत्र वेलेण्टाइन (द्वितीय) को राजा घोषित कर दिया। इस प्रकार पश्चिमी साम्राज्य भी दो भागों में बंट गया। सम्राट ग्रेटियन के समय दूसरी महत्त्वपूर्ण घटना यह हुई कि ई.378 में विसिगोथ कबीले ने रोम पर भीषण आक्रमण किया। विभाजित रोमन शक्ति विसिगोथों का वेग सहन नहीं कर पाई।

 एड्रिअनोपल के युद्ध में रोमन सेना की हार हो गई। विसिगोथ रोम में घुस गए और उन्होंने रोम को जमकर लूटा-खसोटा। ई.383 में रोमन सम्राट ग्रेटियन को उसकी स्वयं की सेना के एक विद्रोही गुट ने मार डाला। उसके बाद वेलेण्टाइन (द्वितीय) सम्राट हुआ। वह सोलह वर्ष से अधिक समय तक अपने क्षेत्र पर राज्य करता रहा किंतु ई.392 में मात्र 21 वर्ष की आयु में या तो उसे आत्मघात करना पड़ा या विद्रोही सेनाओं द्वारा मार दिया गया।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

वैधानिक एवं अवैधानिक शासक

ई.379 से ई.392 तक थियोडोसियस (प्रथम) पूर्वी  रोमन साम्राज्य का स्वामी हुआ। उसने ई.383 से 388 तक मैग्नस मैक्सीमस तथा उसके पुत्र विक्टर को पश्चिमी रोमन साम्राज्य के सम्राट एवं सह-सम्राट के रूप में मान्यता दी तथा उन्हें इंग्लैण्ड और गॉल (फ्रांस) का शासक भी स्वीकार कर लिया। इस प्रकार ई.379 से ई.392 तक पश्चिमी रोमन साम्राज्य में वेलेण्टाइन (द्वितीय) तथा मैग्नस मैक्सीमस नामक दो शासक अस्तित्व में थे, इन्होंने साम्राज्य के अलग-अलग हिस्सों पर अपनी सत्ता बनाए रखी। यह स्थिति और भी शासकों के समय में देखने को मिलती है।

इसलिए रोमन इतिहास में वैधानिक शासक एवं अवैधानिक शासक का प्रश्न बार-बार खड़ा होता है तथा इतिहासकार उसी शासक को वैधानिक दिखाने की चेष्टा करते हैं जिसे कुस्तुंतुनिया के शासक द्वारा मान्यता दी गई हो किंतु ऐसे भी बहुत से शासक हुए जिन्हें कुस्तुंतुनिया द्वारा मान्यता नहीं दी गई किंतु वे रोम पर अपना एकल अधिकार बनाए रखने में सफल रहे तथा वे वैधानिक कहे जाने वाले शासकों की तुलना में अधिक प्रभुत्व सम्पन्न शासक थे।

थियोडोसियस राजवंश

ई.392 में थियोडोसियस (प्रथम) ने गोथों एवं अन्य बर्बर कबीलों पर आक्रमण करके उनका दमन किया तथा पश्चिमी रोमन साम्राज्य को फिर से पूर्वी रोमन साम्राज्य के अधीन कर लिया। ई.395 में उसकी मृत्यु हो गई किंतु उसके वंशज ई.455 तक रोम पर शासन करते रहे। ई.395 में होनोरियस तथा उसके बाद ई.409 में कॉन्स्टेन्टाइन (तृतीय) रोम के राजा हुए।

गोथों द्वारा रोम का विध्वंस

24 अगस्त 410 को विसिगॉथ नामक जर्मन कबीले के राजा ऑलारिक ने रोम पर चढ़ाई करके रोम में इतना विध्वंस मचाया कि रोम में गॉथिक शब्द को अंधकार, नकारात्मकता और कालिमा का  पर्याय कहा जाने लगा। रिनेसां नामक रोमन कवि ने ‘गॉथ’ शब्द का प्रयोग बर्बर, असभ्य तथा क्रूर के पर्यायवाची की तरह किया है।

पाँच साल की आयु में रोम का सम्राट

ई.421 में कॉन्स्टेन्टियस (तृतीय), ई.423 में जोआनस तथा ई.424 में वेलेन्टेनियन (तृतीय) रोम के सम्राट हुए। वेलेन्टेनियन (तृतीय) पाँच साल की आयु में राजा बना तथा उसने 31 साल तक शासन किया। वह पश्चिमी रोमन साम्राज्य पर सर्वाधिक अवधि तक शासन करने वाला राजा था। उसके शासन काल में रोम और अधिक कमजोर हो गया।

वाण्डालों का ताण्डव

उत्तरी इटली में वाण्डाल नामक एक बर्बर कबीला रहता था। यह अत्यंत प्राचीन काल में जर्मनी से आया था। ई.429 से 435 के बीच वाण्डालों ने रोमन सेनाओं को परास्त करके उनसे उत्तरी अफ्रीका छीन लिया। वाण्डालों ने कई बार रोमन साम्राज्य पर आक्रमण किया किंतु प्राचीन रोमन राजा उन्हें रोम से दूर रखने में सफल रहे। फि     र भी वाण्डालों ने रोमन राज्य को बुरी तरह से लूटा-खसोटा और नष्ट किया।

रोम पर हूणों का कहर

हूण मध्य- एशिया के मंगोलिया नामक देश के रहने वाले थे। उन्होंने डेन्यूब नदी पार करके पूर्वी रोमन साम्राज्य में प्रवेश किया तथा साम्राज्य के उत्तरी एवं पश्चिमी भाग में बलपूर्वक निवास करने लगा। हूणों का नेता अतिला पूर्वी रोमन साम्राज्य के एम्परर को केवल धमकियां देकर ही उससे बड़ी-बड़ी रकमें ऐंठ लेता था। ई.440 से 445 के बीच हूणों के कई आक्रमण हुए किंतु वेलेन्टेनियन (तृतीय) की सेनाएं उनका सामना नहीं कर सकीं।

हूणों ने रोमन साम्राज्य के काफी बड़े हिस्से पर अधिकार कर लिया। वे तेजी से पूरी दुनिया में फैल रहे थे तथा हिंसा और बर्बरता की नई परिभाषा लिख रहे थे। ई.451 में हूणों ने अतिला के नेतृत्व में पश्चिमी रोमन साम्राज्य को घेर लिया। इस समय गोथ एवं फ्रैंक नामक बर्बर जर्मन कबीलों ने रोम की शाही सेना का का साथ दिया।

इस प्रकार इस लड़ाई ने एक विशाल युद्ध का रूप धारण कर लिया जिसमें लगभग डेढ़ लाख मनुष्य काम आए। अंत में अतिला हार गया और हूणों को पीछे धकेल दिया गया।

कुछ समय बाद अतिला ने फिर से हूणों की शक्ति को एकत्रित किया और उसने इटली पर हमला कर दिया। वहाँ उसने उत्तर के बहुत से नगर लूटे और जला दिए। इस आक्रमण के कुछ ही दिनों बाद वह मर गया। आज भी यूरोप में उसे बेरहमी एवं क्रूरता के लिए उसी प्रकार याद किया जाता है जिस प्रकार भारत में मंगोल आक्रांता तैमूर लंग को उसके हिंसक कृत्यों के लिए अत्यंत घृणा के साथ याद किया जाता है।

अतिला की मृत्यु के बाद इटली के हूण ठण्डे पड़ गए। उनकी सेनाएं बिखर गईं और वे खेती-बाड़ी करने लगे। सैंकड़ों साल की अवधि में वे इटली के लोगों में घुल-मिलकर उनके जैसे ही हो गए। गोथ, विसिगोथ, फ्रैंक, वाण्डाल और हूण बड़े असभ्य एवं निर्दयी लोग थे। उनके आक्रमणों से पश्चिमी रोमन साम्राज्य इतना कमजोर हो गया कि समय आने पर ताश के पत्तों के महल की तरह बिखर गया।

दो रोमन सम्राटों की हत्या

ई.455 में रोमन सम्राट वेलेन्टेनियन (तृतीय) को केवल 35 वर्ष की आयु में उसकी अंगरक्षक सेना द्वारा मार दिया गया। उसके बाद पैट्रोनियस मैक्सीमस रोम का राजा हुआ किंतु केवल 75 दिन बाद ही उसे रोम की जनता ने पत्थरों से पीट-पीट कर मार डाला। इसी के साथ रोम से थियोडोसियस वंश के शासन का दुःखःद अंत हो गया। यह वही राजवंश था जिसने ई.392 में गोथों एवं अन्य बर्बर कबीलों को रोम से बाहर निकाल कर रोम का उद्धार किया था किंतु राजनीति पिछले उपकारों को याद नहीं रखा करती।

रिसिमेर का आतंक

विदेशी कबीलों को रोमन सीनेट में स्थान

9 जुलाई 455 को रोमन सीनेटर एविटस रोम का नया सम्राट हुआ। वह नागरिक-प्रशासन एवं सैन्य-प्रशासन में उच्च पदों पर नियुक्त रहा था तथा पियासेंजा के चर्च का बिशप भी था। वह बुद्धिमान एवं अनुभवी राजनीतिज्ञ था। उसकी योजना थी कि उत्तरी इटली में रह रहे बर्बर जर्मन एवं फ्रैंच कबीलों से मित्रता स्थापित करके रोम में शांति स्थापित की जाए। इस उद्देश्य से एविटस ने फ्रैंक कबीले के कुछ लोगों को रोम का सीनेटर बनवा दिया। इससे रोम की जनता और सेना, नए सम्राट एविटस के विरुद्ध हो गई। रोमन जनता कुछ ही समय पहले रोम में वाण्डालों द्वारा किए गए विध्वंस एवं अपमान को इतनी आसानी से नहीं भुला सकती थी।

मैजिस्टर रिसिमेर का उदय

जिन दिनों हूणों एवं वाण्डालों ने रोमन साम्राज्य की हालत पतली कर रखी थी तथा रोम में कोई सम्राट अपनी सत्ता एवं जिंदगी को सुरक्षित नहीं रख पा रहा था, उन्हीं दिनों फ्लैवियस रिसिमेर नामक एक अत्यंत महत्त्वाकांक्षी युवक पश्चिमी रोमन साम्राज्य की राजनीति में बड़ी शक्ति बनकर उभरा।

वह उत्तरी इटली में विगत सैंकड़ों साल से निवास कर रहे एक जर्मन कबीले का सेनापति था जिन्हें रोमन साम्राज्य में शत्रुवत् माना जाता था किंतु रिसिमेर पश्चिमी रोमन साम्राज्य के कुछ उच्च अधिकारियों का कृपापात्र बनने में सफल हो गया तथा साम्राज्य में मैजिस्टर मिलिटम के सम्माननीय पद पर नियुक्त हो गया। यहाँ से उसने अपने राजनीतिक जीवन की नई शुरुआत की।

सम्राट एविटस की हत्या

रिसिमेर किसी बड़े राजनीतिक अवसर की तलाश में था जो उसके कद को रोमन साम्राज्य में बढ़ा दे। शीघ्र ही उसे इसका अवसर मिल गया। ई.455 में सीनेटर एविटस रोम का सम्राट हुआ। जैसे ही एविटस ने कुछ फ्रैंच लोगों को रोम की सीनेट का सदस्य बनाया तथा रोमन सीनेटरों में उसके विरुद्ध असंतोष उभरा, तो रिसिमेर ने अपना दांव चला। उसने मेजोरियन नामक एक रोमन सेनापति को उकसाया कि वह एविटस को हटाकर स्वयं सम्राट बन जाए। मेजोरियन इस कार्य के लिए तैयार हो गया तथा ई.456 में उसने नए सम्राट के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

इस विद्रोह में रिसिमेर ने मेजोरियन का पूरा साथ दिया। मेजोरियन की सेना सम्राट के महल में घुस गई तथा सम्राट एविटस को बंदी बना लिया। एविटस ने मेजोरियन तथा रिसिमेर के सामने प्रस्ताव रखा कि यदि उसके प्राण नहीं लिए जाएं तो वह स्वयं ही सम्राट का पद छोड़कर पियासेंजा के चर्च में चला जाएगा तथा अपना शेष जीवन बिशप के रूप में बिताएगा।

मेजोरियन तथा रिसिमेर ने सम्राट एविटस का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया तथा उसे सम्राट के पद से मुक्त करके पियासेंजा भेज दिया। कुछ ही माह बाद रिसेमेर ने उसकी हत्या करवा दी।

सम्राट मेजोरियन की हत्या

ई.456 में मेजोरियन सम्राट बन गया। वह ई.461 तक रोम पर शासन करता रहा। रिसिमेर चाहता था कि मेजोरियन रिसिमेर के नियंत्रण में रहकर काम करे किंतु मेजोरियन रिसिमेर से छुटकारा पाकर उसकी जगह, पूर्वी रोमन सम्राट की छत्रछाया चाहता था।

मेजेरियन की प्रार्थना पर पूर्वी रोमन साम्राज्य के सम्राट ने मेजोरियन को रोम का अधिकृत राजा घोषित कर दिया। कुछ दिन बाद मेजोरियन ने अपने कुछ संदिग्ध अंगरक्षकों को हटा दिया जो जर्मन मूल के थे तथा रिसिमेर द्वारा नियुक्त किए गए थे। इस पर रिसिमेर, सम्राट मेजोरियन से कुपित हो गया और उसने इरिया नदी के किनारे सम्राट से मिलने का समय मांगा।

जब सम्राट मेजोरियन सेनापति रिसिमेर से मिला तो रिसिमेर के सैनिकों ने सम्राट को पकड़ लिया। सम्राट को बुरी तरह पीटा गया, उसके शाही कपड़े और चिह्न छीन लिए गए और उसे बुरी तरह अपमानित करके बंदी बना लिया गया। पाँच दिन बाद सम्राट का सिर धड़ से अलग कर दिया गया। जिस स्थान पर पूर्ववर्ती सम्राट एविटस की हत्या की गई थी, वह स्थान भी यहाँ से अधिक दूर नहीं था।

सम्राट लिबियस सेवेरस को जहर

अब तक रिसिमेर रोम के दो सम्राटों का सफाया कर चुका था। अब वह किसी ऐसे व्यक्ति की खोज में जुटा जो रिसिमेर के नियंत्रण में रहकर शासन करे। तीन माह बाद उसने रोमन सीनेटर लिबियस सेवेरस को सम्राट बनाने का निर्णय लिया। लिबियस सेवेरस लुसियानिया का रहने वाला था। उसे 19 नवम्बर 461 को पश्चिमी रोमन साम्राज्य का सम्राट बनाया गया। वह ईसाई धर्म को मानने वाला दयालु शासक था किंतु अपने शासन पर दृढ़ता से अधिकार नहीं कर पाया। उसके काल में शासन की बागडोर मैजिस्टर रिसिमेर के हाथों में रही।

इससे अन्य सीनेटर, लिबियस के विरुद्ध हो गए तथा रोमन गवर्नर भी उसके आदेशों की अवहेलना करने लगे। इस कारण रोम में अशांति फैल गई तथा वाण्डालों के भीषण आक्रमण फिर से आरम्भ हो गए। फिर भी सम्राट लिबियस सेवेरस मैजिस्टर मिलिटम रिसिमेर की सहायता से 15 अगस्त 465 तक रोम पर शासन करता रहा। ई.465 में रिसिमेर ने लिबियस सेवेरस को जहर दे दिया तथा स्वयं रोम का वास्तविक शासक बन गया।

जर्मन मूल के बर्बर कबीले का सेनापति होने के कारण उसकी हिम्मत नहीं पड़ती थी कि वह स्वयं को रोम का सम्राट घोषित करे। इसलिए वह घोषित रूप से अब भी मैजिस्टर मिलिटम था किंतु उसने रोमन टकसाल में कुछ सिक्के ढलवाए जिन पर उसने अपना चित्र सम्राट की तरह अंकित करवाया।

सम्राट एंथमियस की हत्या

ई.467 में रिसिमेर ने एंथमियस को पश्चिमी रोमन साम्राज्य का सम्राट बनवाया। उसके समय में विसिगोथों का नेता ‘यूरिक’ तथा वाण्डालों का नेता ‘जिसेरिक’ रोमन साम्राज्य के लिए सिरदर्द बने हुए थे। सम्राट एंथमियस ने इन दोनों शत्रुओं से भयानक मोर्चा लिया किंतु अप्रेल 472 में रिसीमेर ने एंथमियस की हत्या कर दी तथा ऑलिब्रियस नामक एक रोमन सेनापति को रोम का सम्राट बनवा दिया।

गुण्डोबैड की गुण्डागर्दी

ऑलिब्रियस धार्मिक विचारों का व्यक्ति था। उसे राजनीति में अधिक रुचि नहीं थी किंतु भाग्य के लेख से वह रोम का सम्राट बन गया। उसके समय में शासन की सारी शक्ति रिसीमेर और उसके भतीजे गुण्डोबैड के हाथों में रही। गुण्डोबैड इतना बुरा व्यक्ति था कि इटैलियन औंर अंग्रेजी भाषाओं में ‘गुण्डा’ एवं ‘बैड’ शब्द ‘बुराई’ के अर्थ में प्रयुक्त होने लगे।

कुस्तुंतुनिया के सम्राट लियो (प्रथम) ने ऑलिब्रियस को रोम के शासक के रूप में मान्यता नहीं दी। रोम के दुर्भाग्य से केवल छः माह बाद अक्टूबर 472 में सम्राट ऑलिब्रियस की मृत्यु हो गई। इस घटना के कुछ दिन बाद ही रिसीमेर भी मर गया।

जूलियस नीपो

ऑलिब्रियस की मृत्यु के बाद एक बार फिर सीनेट के सदस्यों में सत्ता के लिए संघर्ष हुआ तथा ग्लाइसेरियस नामक एक रोमन सामंत बलपूर्वक रोम का राजा बन गया। कुस्तुंतुनिया के सम्राट लियो (प्रथम) ने उसे भी रोम के शासक के रूप में मान्यता नहीं दी तथा जूलियस नीपो को विशाल सेना के साथ रोम पर चढ़ाई करने के लिए भेजा।

नीपो ने ग्लाइसेरियस को रोम से बाहर निकाल दिया तथा स्वयं रोम का शासक बन गया। चूंकि ग्लाइसेरियस कुस्तुंतुनिया का पुराना और विश्वस्त सामंत था इसलिए उसे क्षमा कर दिया गया और सालोना के चर्च में बिशप नियुक्त कर दिया गया। वहीं पर शांतिपूर्वक काम करते हुए उसने अंतिम सांस ली।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source