सरदार पटेल कुशल वक्ता थे, अंग्रेजी कानून के ज्ञाता थे, उन्होंने लंदन में रहकर अंग्रेजी तौर-तरीके सीखे थे। निर्भय व्यक्तित्व के धनी थे और भारत माता को ब्रिटिश दासता से मुक्त करवाने के लिए जीवन समर्पित करते थे। इस कारण वे अपने भाषणों में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आग उगलते थे। सरदार पटेल की सिंह-गर्जना से भयभीत गोरी सरकार ने उनके भाषणों पर कई बार प्रतिबंध लगाया।
सरदार पटेल को जेल भेज देने के बाद, गोरी सरकार ने बोरसद तथा बारदोली के समझौतों को तोड़ डाला तथा लोगों से बढ़ा हुआ कर वसूलना आरम्भ कर दिया। किसानों को विवश होकर पुराना आंदोलन फिर से आरम्भ करना पड़ा। जब पुलिस के अत्याचार बढ़े तो बहुत से किसान अपने परिवारों और मवेशियों को लेकर जंगलों में भाग गये। पुलिस वालों ने गांवों में रह गये बच्चों और स्त्रियों को निशाना बनाया।
वस्तुतः अंग्रेजों के समय से भारतीय पुलिस की जो छवि खराब हुई वह आजादी के बाद भी नहीं सुधर सकी। पुलिस ने अपने आप को कभी भी जनता का सेवक नहीं समझा। सरदार जेल से बाहर आये तो वे भी आंदोलन में कूद पड़े। उन्हें अपने साथ पाकर जनता का आत्मविश्वास लौट आया। इसी बीच एक अंग्रेज अधिकारी ने वक्तव्य दिया कि यदि समस्त किसानों ने कर नहीं दिया तो सरकार सबकी जमीनें छीन लेगी।
इस पर सरदार ने जवाब दिया कि सरकार समस्त किसानों की जमीनें छीन लेगी तो राज किस पर करेगी ? सरदार ने किसानों का आह्वान किया कि जमीन जब्त होने से मत डरो। जब्त हुई जमीन फिर से लौट आयेगी। सरदार की सिंह-गर्जना से सरकार डर गई और उसने फिर से पटेल के भाषण देने पर प्रतिबंध लगा दिया।
ई.1930 में साइमन कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद भारत सरकार ने ग्यारह ब्रिटिश प्रांतों तथा 566 देशी रियासतों का एक संघ बनाने का मन बनाया। इस विषय पर भारत के राजनैतिक दलों, देशी रियासतों के शासकों एवं अन्य संगठनों के प्रतिनिधियों से विचार विमर्श करने के लिये 12 नवम्बर 1930 को लंदन में गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया। कांग्रेस ने इस सम्मेलन में सम्मिलित होने से मना कर दिया क्योंकि कांग्रेस पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य घोषित कर चुकी थी तथा इस सम्मेलन में औपनिवेशिक राज्य के निर्माण पर विचार किया जाना था। कांग्रेस के भाग न लेने के कारण सम्मेलन का विफल हो जाना स्वाभाविक था किंतु प्रथम गोलमेज सम्मेलन में उपस्थित अन्य समस्त भारतीय पक्षों ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि ब्रिटिश भारतीय प्रांतों तथा देशी राज्यों का एक संघ बने।
दिसम्बर 1930 में बम्बई में एक खादी भण्डार के उद्घाटन के अवसर पर सरदार ने सामान्य सा भाषण दिया किंतु उन्हें बंदी बना लिया गया क्योंकि सरकार ने उनके भाषण देने पर रोक लगा रखी थी। इस बार उन्हें 9 महीने की जेल हुई।
जब 1930 का प्रथम गोलमेज सम्मेलन विफल हो गया तो 1931 में दूसरा गोलमेज सम्मेलन बुलाया गया। सरकार जान गई थी कि जब तक कांग्रेस गोलमेज सम्मेलन में नहीं आयेगी, सम्मेलन सफल नहीं होगा। कांग्रेस के सभी बड़े नेता उस समय जेलों में थे इसलिये 25 जनवरी 1931 को विशेष आदेश जारी करके भारत सरकार ने कांग्रेस के 26 शीर्ष नेताओं को रिहा कर दिया ताकि कांग्रेस को द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिये मनाया जा सके। रिहा होने वाले नेताओं में सरदार पटेल भी थे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता