बात-बात पर गोले-गोलियां चलाने वाली अंग्रेज सरकार की जिद किसानों के ढोल नगाड़ों के सामने फीकी पड़ गई जिससे बारदोली आंदोलन की सफलता सुनिश्चित हो गई।
जब बारदोली के किसानों ने कर नहीं चुकाया तो सरकार ने अपनी उग्र कार्यवाहियां आरम्भ कर दीं। सरकार ने एक किसान पर 700 रुपये का कर लगाया तथा कर न चुकाने पर उसकी 40 हजार रुपये मूल्य की जमीन जब्त कर ली। एक अन्य किसान के पास 33 एकड़ उपजाऊ भूमि थी जिसका मूल्य लगभग 15 हजार रुपये था। सरकार ने उस भूमि को जब्त करके एक अन्य व्यक्ति को केवल 161 रुपये में बेच दिया।
30 हजार रुपये मूल्य वाली एक अन्य भूमि को केवल 151 रुपये में बेचा गया। इसी प्रकार किसानों के दुधारू पशुओं को जब्त करके कौड़ियों के भाव बेचा जाने लगा। इसके बाद सरकारी कारिंदों ने घरों में घुसकर किसानों के हल-बैल खोल लिये। इस पर किसानों ने सामूहिक रूप से सरकारी कारिंदों का सामना करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने पशुओं को घरों में बंद कर दिया। जब सरकारी कारिंदे गांव की तरफ आते हुए दिखाई पड़ते तो लोग ढोल, नगाड़े एवं शंख बजाने लगते।
इन आवाजों को सुनकर गांव के स्त्री-पुरुष लट्ठ लेकर एकत्रित हो जाते। सरकारी कारिंदों का गांवों में घुसना असम्भव हो गया। इस पर सरकार ने आदेश जारी किया कि कोई भी व्यक्ति ढोल, नगाड़े तथा शंख नहीं बजायेगा। जब सरदार पटेल को सरकार के इस आदेश की जानकारी हुई तो उन्होंने अखबारों में वक्तव्य प्रकाशित करवाया कि गोले-गोलियों वाली सरकार ढोल-नगाड़ों की आवाज से डर गई है। सरदार पटेल ने लोगों से अपील की कि ढोल-नगाड़े बजाते रहो तथा लगान मत दो।
कुछ ही दिनों में बारदोली आंदोलन की सफलता सामने दिखाई देने लगी और बारदोली आंदोलन राष्ट्रीय अखबारों में सुर्खियां पाने लगा। पूरे देश की दृष्टि बारदोली आंदोलन पर आ टिकी। गोरी सरकार के विरुद्ध यह एक अद्भुत प्रयोग था जो पहली बार देश में होने जा रहा था। इस आंदोलन के आगे, देश के अब तक के समस्त आंदोलन फीके पड़ गये।
बम्बई के गवर्नर ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसका एक छोटा सा आदेश, सम्पूर्ण गोरी सरकार की प्रतिष्ठा को खतरे में डाल देगा किंतु अब तो तीर, तरकष से निकल चुका था। इसका कुछ न कुछ दुष्परिणाम तो होना ही था। इसलिये सरकार ने कुछ लोगों को प्रलोभन देने आरम्भ किये। इन प्रलोभनों में आकर कुछ किसानों ने आंदोलनकारियों का साथ छोड़कर सरकार की आवाज में आवाज मिलाना आरम्भ कर दिया।
आंदेलनकारी किसान चाहते थे कि इन गद्दारों को सबक सिखाया जाये किंतु सरदार पटेल ने इस बार भी पुरानी बात दोहराई कि आपस में मत लड़ो। सारी शक्ति सरकार से लड़ने में लगाओ।इस पर किसानों ने निर्णय लिया कि जो लोग सरकार के साथ होते हैं, उनका बहिष्कार किया जाये ताकि गद्दारी करने की बीमारी दूसरे लोगों में न फैले।
इस पर पटेल ने लोगों से कहा कि गलत आदमी का बहिष्कार करना समाज का अधिकार है किंतु उसके विरुद्ध हिंसा न की जाये। यदि वह व्यक्ति पारिवारिक समारोह में किसी को भोजन के लिये बुलाये तो बेशक उसके घर कोई न जाये किंतु यदि वह बीमार पड़ जाये तो उसकी सेवा करने के लिये गांव का प्रत्येक व्यक्ति उसके घर जाये।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता