पत्नी की मृत्यु भी बैरिस्टर बनने का संकल्प नहीं छुड़ा सकी
वल्लभभाई मुख्तारी की परीक्षा उत्तीर्ण करके स्वतंत्र वकील बन गए थे किंतु इस परीक्षा को पास करके वे केवल निचले न्यायालयों में ही प्रैक्टिस कर सकते थे। इसलिए वल्लभभाई की इच्छा थी कि वे लंदन जाकर बैरिस्टर बनें। एक बार लंदन जाने का टिकट उनके पास आया तो वह टिकट उनके बड़े भाई विट्ठलभाई ने ले लिया। कुछ समय बाद जब फिर उन्होंने लंदन जाना चाहा तो उनकी पत्नी का निधन हो गया। बच्चों को पालने वाला भी कोई नहीं रहा। इस पर भी वल्लभभाई ने बैरिस्टर बनने का संकल्प नहीं छोड़ा।
सत्रह साल के दाम्पत्य जीवन में से झबेर बा केवल छः साल वल्लभभाई के पास रही थीं। झबेर बा की मृत्यु के समय वल्लभभाई की मृत्यु केवल तेतीस वर्ष थी किंतु वल्लभभाई ने दुबारा विवाह नहीं करने का निर्णय लिया। अभी परिवार इस सदमे से उबरा भी नहीं था कि एक वर्ष के भीतर ही विट्ठलभाई की पत्नी भी अचानक चल बसीं।
बच्चों को पालने की विकट समस्या आ खड़ी हुई। इस पर भी वल्लभभाई ने लंदन जाकर बैरिस्टरी पढ़ने का संकल्प नहीं छोड़ा। उन्होंने मणिबेन तथा डाह्याभाई को बम्बई के क्वीन मैरी स्कूल की शिक्षिका मिस विल्सन के पास छोड़ा और स्वयं लंदन जाने की तैयारी में जुट गये। वर्ष 1910 में वल्लभभाई के अनुज काशीभाई ने वकालात पास की। सरदार ने उन्हें बोरसद बुलाया तथा अपना मकान और अपनी वकालात का सारा काम उन्हें सौंप दिया ताकि काशीभाई को आरम्भिक दिनों में अधिक संघर्ष न करना पड़े। उसी वर्ष वल्लभभाई लंदन के लिये रवाना हो गये।
लंदन जाने से पहले उन्होंने अपने लिये, अपने जीवन का पहला सूट सिलवाया तथा छुरी-कांटे से भोजन करने का अभ्यास किया। जिस देश में वे जा रहे थे, उस देश में जीने की शैली सीखना आवश्यक था। अंततः उनकी समस्त तैयारियां पूरी हो गईं और एक दिन वे पानी के जहाज से लंदन के लिये रवाना हो गये। मार्ग में समुद्री हवा और नमी से उन्हें सी-सिकनेस की बीमारी हो गई।
काफी उपचार के बाद ही वह ठीक हो सकी। इस दौरान उनकी परिचर्या करने वाला कोई भी नहीं था किंतु पटेल ने दृढ़ता पूर्वक अपनी बीमारी को जीत लिया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता