Thursday, November 21, 2024
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क्या स्वात में बामियान दोहराया जायेगा?

पाकिस्तान के धुर पश्चिम में स्वात क्षेत्र स्थित है। यह हरी-भरी पहाड़ियों वाला अत्यंत सुंदर क्षेत्र है। इसीलिये इसे स्वात कहा जाता है। स्वात शब्द ‘‘स्वाति’’ का अपभ्रंश है जिसका अर्थ होता है- सूर्य की पत्नी। यह क्षेत्र सचमुच इतना सुंदर है कि इसे सूर्य की पत्नी कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। किसी समय यहाँ सैंकड़ों नदियों और झरनों के किनारों पर वैदिक ऋचाऐं गूंजा करती थीं। सैंकड़ों ऋषि मुनि यहां बैठकर सृष्टि की रचना और मनुष्य जीवन के उद्देश्यों के बारे में चिंतन और सृष्टिकर्त्ता का स्तवन किया करते थे। इसी स्वात घाटी के पश्चिम में स्थित है बामियान। अब स्वात पकिस्तान में है तथा बामियान अफगानिस्तान में।

जब सैंकड़ों बौद्ध भिक्षु, भगवान बुद्ध के संदेश लेकर दुनिया के विभिन्न हिस्सों में गये तो उनमें से कुछ भिक्षु स्वात घाटी तथा उससे लगे हुए बामियान को संसार की सबसे संुदर तपस्थली मानकर यहीं रुक गये। उन्होंने यहां की पहाड़ियों में भगवान बुद्ध की हजारों मूर्त्तियों का उत्कीर्णन किया। बुद्ध की इन मूर्त्तियों ने इस क्षेत्र में नये स्वर्ग की रचना की। जब कोई भूला बिसरा यात्री इस क्षेत्र में अचानक पहुँच जाता से इस स्वर्ग को देखकर हैरान रह जाता। जब सूर्य रश्मियां हरियाली से ढकी हुई पहाड़ियों और उनमें उत्कीर्णित भगवान बुद्ध की हजारों मूर्त्तियों पर अठखेलियां करतीं तो लगता कि रश्मिरथी सूर्य की पत्नी स्वाति ने स्वयं प्रकट होकर भगवान सूर्य की रश्मियों से अपना शृंगार किया है।
जब सिकन्दर विश्व विजय का स्वप्न लेकर भारत आने के लिये इस क्षेत्र से होकर गुजरा तो वह इस सुंदर स्थान को देखकर हैरान रह गया। वह कुछ समय तक इस घाटी में रुका और भारत विजय के पश्चात् पुनः इस क्षेत्र में कुछ दिन निवास करने का संकल्प लेकर आगे बढ़ गया। कुछ समय बाद जब सिकंदर ने घायल होकर विश्व विजय का स्वप्न त्याग दिया और वह वापस यूनान जाने के लिये लौटा तो उसने बामियान क्षेत्र पर अपना अधिकार बनाये रखने के लिये अपनी सेना का एक हिस्सा यहीं छोड़ दिया। सिकन्दर के आदेश से हजारों यूनानी सैनिक अपने परिवारों सहित यहीं बस गये। नीली आँखों और लाल बालों के सैंकड़ों सुंदर यूनानियों के आ बसने से यह क्षेत्र और भी सुंदर हो गया। उनके देह सौंदर्य के कारण ही अफगानिस्तान के लोग इस क्षेत्र को नूरिस्तान कहने लगे।
जब अफगानिस्तान में इस्लाम का प्रसार हुआ तो नूरिस्तान के लोगों ने इस्लाम को मानने से मना कर दिया। इस्लाम के प्रचारक नूरिस्तान के बहादुर यूनानी लोगों को परास्त नहीं कर सके, न ही अन्य किसी तरह से उन्हें इस्लाम कबूल करवा सके। हार-थक कर इस्लाम के प्रचारकों ने इस क्षेत्र का नाम बदलकर काफिरिस्तान कर दिया। जब चंगेजखाँ बामियान घाटी में पहुँचा तो वह यहाँ के नैसर्गिक सौंदर्य, शिल्प सौंदर्य और मानव सौंदर्य को देखकर आश्चर्य चकित रह गया।
काफिरिस्तान के सुंदर इंसानों को मारने में चंगेजखाँ को बड़ा आनंद आया। नीली आँखों और लाल बालों वाले इंसानों की भयाक्रांत चीखों ने उसके तन-मन में आनंद भर दिया। वह उन्हें तड़पा-तड़पा कर मारने लगा। बहादुर होने पर भी यूनानी लोग चंगेजखाँ के सैनिकों की क्रूरता का सामना नहीं कर सके। हजारों स्त्री-पुरुष और बच्चे प्राण बचाने के लिये पहाड़ों में भाग गये। चंगेजखाँ ने उन्हें ढूंढ-ढूंढ कर मौत के घाट उतारा।

काफिरिस्तान से निबट कर चंगेजखाँ ने बामियान घाटी में ही बसे सुर्ख शहर को जा घेरा। सुर्ख शहर की प्राकृतिक बनावट तथा दुर्ग की सुरक्षा व्यवस्था ऐसी थी कि उस पर कोई भी सेना बाहर से आक्रमण करके अधिकार नहीं कर सकती थी, चाहे शत्रु सेना सौ वर्षों तक ही शहर को घेर कर क्यों न बैठी रहे। सुर्ख के राजा को नित्य नये विवाह करने का शौक था इसलिये वह चंगेजखाँ जैसे दुर्दांत शत्रु की परवाह किये बिना अपना विवाह करने के लिये कहीं और चला गया तथा शहर को राजकुमारी के भरोसे छोड़ गया। सुर्ख शहर की राजकुमारी अद्वितीय संुदरी थी तथा विवाह के योग्य भी। उसे अपने पिता का इस तरह चले जाना अच्छा नहीं लगा। उसने चंगेजखाँ को गुप्त संदेश भिजवाया कि यदि चंगेजखाँ उसे अपनी रानी बना ले तो वह शहर पर उसका अधिकार करवा देगी।
चंगेजखाँ ने राजकुमारी की शर्त स्वीकार कर ली। राजकुमारी ने चंगेजखाँ के आदमियों को वह पहाड़ी बता दी जहाँ से सुर्ख शहर को पानी मिलता था। चंगेजखाँ ने पानी का प्रवाह रोक दिया। पानी न मिलने के कारण सुर्ख शहर में हाहाकार मच गया और सुर्ख की सेना को आत्म-समर्पण करना पड़ा। सुर्ख पर अधिकार करते ही चंगेजखाँ ने राजकुमारी के महल को छोड़कर शेष शहर में कत्ले आम करने का आदेश दिया। चंगेजखाँ की वहशी सेना ने कई दिन तक शहर में कहर बरपाया किंतु राजकुमारी का महल लूट, हत्या और बलात्कार से बचा रहा।
एक दिन शाम के समय चंगेजखाँ ने राजकुमारी को संदेश भिजवाया- ‘कल सवेरे फौज कूच करेगी। आप बाहर आ जाइये।’ राजकुमारी सफर के लिये तैयार होकर बाहर आ गयी। फौज पंक्तिबद्ध होकर प्रस्थान के लिये तैयार खड़ी थी। चंगेजखाँ राजकुमारी के स्वागत में उठ कर खड़ा हुआ। राजकुमारी दोनों बाहें फैलाकर आगे बढ़ी किंतु उसके आश्चर्य का पार नहीं रहा जब उसने चंगेजखाँ के आदेश को सुना। वह अपने सैनिकों से कह रहा था- ‘प्रत्येक सिपाही इस दुष्टा राजकुमारी के सिर पर एक पत्थर मारे। जो अपने बाप की नहीं हुई वह मेरी क्या होगी?’
चंगेजखाँ के आदेश का पालन हुआ। राजकुमारी चीख मार कर नीचे गिर पड़ी। थोड़ी देर बाद उसकी लोथ ही वहाँ रह गयी। राजकुमारी के महल की ईंट से ईंट बजा दी गयी। चंगेजखाँ की सेना लूट-खसोट और कत्ले-आम के नये अध्याय लिखने के लिये आगे चल पड़ी। पीछे छोड़ गयी सुर्ख शहर के खण्डहर जो आज भी चंगेजखाँ के क्रूर कारनामों और राजकुमारी के पितृद्रोह की कहानी सुनाने के लिये मौजूद हैं।
जब चंगेजखाँ अपनी सेना के साथ बामियान की घाटी में एक पहाड़ी क्षेत्र से होकर निकला तो उसने एक अद्भुत दृश्य देखा। चंगेजखां ने देखा कि एक पहाड़ी से सट कर दो विशाल बुत खड़े हैं जो बहुत दूर से दिखाई पड़ते हैं। चंगेजखाँ ने अपना घोड़ा उसी और मोड़ लिया। निकट पहुँचने पर उसने पाया कि इन विशाल बुतों के पास छोटे-छोटे हजारों बुत बिखरे पड़े हैं। सारे के सारे बुत बुरी तरह से टूटे हुए हैं। यहाँ तक कि दोनों विशाल बुतों की आँखें और नाक भी टूटी हुई हैं। इतना ही नहीं उसने उन पहाड़ियों में बनी हुई हजारों गुफाओं को भी देखा जो पत्थरों को काटकर बनाई गयी थीं। इन गुफाओं की दीवारों पर भी हजारों बुत खड़े थे जिनमें बहुत से बुत टूटे हुए थे। इस अद्भुत दृश्य को देखकर उसकी आँखें हैरानी से फैल गयीं। कहाँ से आये इतने सारे बुत! किसने बनायीं हजारों गुफायें!


दरअसल चंगेजखाँ उन पहाड़ियों में पहुँच गया था जहाँ उसके पहुँचने से लगभग सवा हजार साल पहले बौद्ध भिक्षुओं ने हजारों पहाड़ियों को काटकर विशाल बौद्ध मठों का निर्माण किया था तथा एक पहाड़ी के बाहरी हिस्से को काटकर भगवान बुद्ध की दो विशाल मूर्तियाँ बनाईं थीं। इन मूर्तियों के ऊपर विशाल मेहराबों का निर्माण किया गया था। मेहराबों में भगवान बुद्ध के जीवन चरित्र से सम्बन्धित कई रंगीन चित्र भी बनाये थे। भिक्षुओं ने आसपास की पहाड़ियों को काटकर हजारों गुफाओं का निर्माण भी किया था तथा उनमें सुंदर मूर्तियों का उत्कीर्णन किया था।
जब चंगेजखाँ ने इन मूर्तियों और गुफाओं को देखा तो उसके आश्चर्य का पार न रहा। वह बुतों की विशालता से भी अधिक हैरान इस बात पर था कि दोनों बुत ऊपर से लेकर नीचे तक पूरी तरह सलामत थे किंतु उनकी आँखों और नाक को किसी ने तोड़ दिया था। दोनों विशाल बुतों के आसपास हजारों की संख्या में अन्य बुतों को भी भग्न अवस्था में देखकर वह आश्चर्य चकित रह गया था। आखिर किसने बनाया होगा इन्हें? और फिर क्यों तोड़ डाला होगा? कौन लोग रहे होंगे वे!
चंगेजखाँ ने स्थानीय लोगों को पकड़ कर मंगवाया और उनसे इन बुतों को बनाने वालों और उनको तोड़ने वालों के बारे में पूछा। चंगेजखाँ को बताया गया कि इन्हें सवा हजार साल पहले भारत से आये बुत-परस्त बौद्ध-दरवेशों ने बनाया था किंतु अरब से आये बुत-शिकनों ने इन बुतों को तोड़-तोड़ कर आग में झौंक दिया। हजारों अलंकृत गुफाओं को भी उसी समय तहस-नहस किया गया तथा पहाड़ियों में उकेरा गया वह सारा शिल्प नष्ट कर दिया गया जो बौद्ध-दरवेशों की छैनियों से निकला था। इन दो बड़े बुतों को पूरी तरह नष्ट न करके केवल इनकी आँखें और नाक तोड़ दीं ताकि इस बात की यादगार बनी रहे कि कभी यहाँ इतने विशाल बुत थे।
स्थानीय लोगों की बात सुनकर चंगेजखां क्रोध से चीख पड़ा! उसे उन लोगों पर तो क्रोध था ही जो संसार में सुंदर बुत बनाने का काम करते हैं किंतु उससे भी अधिक क्रोध उसे उन लोगों पर था जिन्होंने इन बुतों को चंगेजखाँ के वहाँ पहुँचने से पहले ही तोड़ डाला था। आखिर यह कार्य उसे अपने हाथों से करना चाहिये था। कितना आनंद आता इन बुतों को तोड़ने में! वह तो इन बुतों को भी ऐसी क्रूरता के साथ तोड़ता कि ये बुत भी नीली आँखों और लाल बालों वाले इंसानों की तरह चीखने लगते! क्यों किया गया उसे इस आनंद से वंचित!
चंगेज खां काल के प्रवाह में बह गया। फिर आये अंग्रेज जिन्होंने बर्मा से लेकर भारत,नेपाल, श्रीलंका और अफगानिस्तान पर अपना अधिकार किया। अंग्रेज शासकों ने बामियान और स्वात क्षेत्र में बिखरी हुई मूर्त्तियों को फिर से सहेजने का काम किया। इस क्षेत्र में बिखरी सैंकड़ों मूर्त्तियों को एकत्रित करके एक म्यूजियम में रखवाया गया। आज ये मूर्त्तियां पाकिस्तान के स्वात क्षेत्र में बने एक राजकीय संग्रहालय में रखी हैं जिसे ‘‘स्वात म्यूजियम’’ के नाम से जाना जाता है।

इन मूर्त्तियों को देखने के लिये दुनिया भर के हजारों पर्यटक प्रतिवर्ष स्वात क्षेत्र पहुंचते हैं। इन पर्यटकों में यूरोपीय देशों के पर्यटक तो होते ही हैं, सााथ ही चीन, जापान, कोरिया आदि उन एशियाई देशों के पर्यटक भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं जिन देशों में बौद्ध धर्म की व्यापक स्तर पर मान्यता है।
वर्ष 1998 में अफगानिस्तान में तालिबान अपने चरम उफान पर था। तालिबान के कमाण्डरों को यह बात सहन नहीं हुई कि भगवान बुद्ध की ये मूर्त्तियां यहाँ खड़ी रहें। उन्होंने अपनी तोपों के मुंह उन मूर्त्तियों की ओर मोड़ दिये। कई दिनों तक तोपें गरजती रहीं और हरी-भरी घाटियां बारूद की गंध से भर गईं। साथ ही भगवान बुद्ध की सैंकड़ों मूर्त्तियां एक बार फिर तोड़ डाली गईं।
जब अमरीका ने तालिबान को अफगानिस्तान से खदेड़ दिया तब तालिबान ने भागकर पाकिस्तान में शरण ली। अब स्वातघाटी का वह हिस्सा जो पाकिस्तान में है, तालिबान के चंगुल में है। तालिबान ने धमकी दी है कि वह पाकिस्तान सरकार के राजकीय संग्रहालय ‘‘स्वात म्यूजियम’’ को तोड़ कर नष्ट कर देगा क्योंकि वह यह सहन नहीं कर सकता कि किसी मकान में बुतों को रखा जाये या फिर उन्हें प्रदर्शित किया जाये।
यह तो समय बतायेगा कि तालिबान स्वात म्यूजियम को निगल जायेगा या उससे पहले पाकिस्तान उन पर कोई कार्यवाही करने में सफल होगा किंतु यह निश्चित है कि यदि तालिबान स्वात म्यूजियम को निगलने में कामयाब हुआ तो उसका अगला निशाना यहां से केवल 40 किलोमीटर दूर स्थित तक्षशिला होगा। वही तक्षशिला जो किसी समय ज्ञान-विज्ञान और दर्शन का केन्द्र था और अब पूरी तरह खण्डहर के रूप में मौजूद है। यदि तालिबान इसी तरह 40-40 किलोमीटर बढ़ता रहा तो कौन जाने उसका यह विध्वंस कहाँ जाकर रुकेगा।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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