विलियम हॉडसन एक अंग्रेज पादरी का बेटा था। उसने इंग्लैण्ड में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के ट्रिनिटी कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की थी किंतु उसका मन पढ़ाई में कम तथा लड़ाई-झगड़े में अधिक लगता था। उसका कद काफी लम्बा था और चेहरे पर घनी मूंछें थी। उसकी आंखें उसके दुष्ट एवं कठोर स्वभाव की गवाही देती थीं।
जिन दिनों अंग्रेजी सेनाएं पंजाब तथा उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत से दिल्ली की तरफ रवाना की जा रही थीं, उन्हीं दिनों अंग्रेजों को विलियम हॉडसन नामक एक अंग्रेज अधिकारी की महत्वपूर्ण सेवाएं प्राप्त हो गईं जिसके कारण कम्पनी सरकार की सेनाओं का दिल्ली की तरफ बढ़ना सुगम हो गया।
विलियम हॉडसन ने इंग्लैण्ड में ही घुड़सवारी करना और तलवारबाजी करना सीख लिए थे। जिन दिनों भारत में आंग्ल-सिक्ख वार छिड़ा हुआ था, उन्हीं दिनों उसने भारत में पदार्पण किया तथा कम्पनी सरकार की न्यू कोर ऑफ गार्ड्स का एड्जूटेंट बन गया।
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कुछ समय बाद वह अमृतसर का डिप्टी कमिश्नर बन गया। कुछ समय बाद उसे उत्तर-पश्चिम फ्रंटियर प्रांत में स्थित यूसुफजई जिले का डिप्टी कमिश्नर बना दिया गया। उसने यूसुफजइयों, आफरीदियों एवं पठानों से निजी शत्रुता पाल ली तथा उनमें से बहुतों को बिना कारण ही मरवा दिया। इससे वह अफगानिस्तान में अत्यंत बदनाम हो गया।
उसके बारे में अंग्रेज अधिकारियों का कहना था कि वह इतना बेईमान था कि वह कभी अच्छा सिपाही हो ही नहीं सकता। अंग्रेजों की दृष्टि में हॉडसन केवल इटली के डाकुओं का नेतृत्व कर सकता है। ईस्वी 1854 में हॉडसन को रेजीमेंट के पैसों में गबन करने के आरोप में कम्पनी सरकार ने नौकरी से हटा दिया।
जब ईस्वी 1857 में देश भर से क्रांतिकारी दिल्ली पहुंचने लगे तो अंग्रेजों को बहुत बड़ी संख्या में सैनिकों की आवश्यकता हुई। उन्हीं दिनों विलियम हॉडसन स्वयं पर लगाए गए आरोपों को मिथ्या सिद्ध करने के सिलसिले में कमांडर इन चीफ जॉन एन्सन से मिला। जॉन एन्सन ने जब बदमाश प्रवृत्ति के हॉडसन को देखा तो उसने हॉडसन को न केवल समस्त आरोपों से मुक्त कर दिया अपितु उसे अपने स्टाफ का विशेष विश्वासपात्र अधिकारी बना लिया। गदर के दिनों में अंग्रेजी कमांडर इन चीफ को ऐसे ही बदमाश और क्रूर अंग्रेज अधिकारियों की आवश्यकता थी।
इसलिए दिल्ली की बगवात आरम्भ होने के पांच दिन बाद अर्थात् 16 मई 1857 को हॉडसन को असिस्टेंट क्वार्टर मास्टर जनरल बना दिया गया तथा उसे आदेश दिए गए कि वह कमाण्डर इन चीफ की सुरक्षा के लिए घुड़सवारों का एक उड़नदस्ता गठित करे। हॉडसन उसी दिन से काम पर लग गया तथा उसने पंजाब में घूम-घूम कर अनियमित घुड़सवारों की एक रेजीमेंट गठित की जिसका नाम ‘हॉडसन्स हॉर्स’ रखा।
इस सेना में केवल सिक्ख घुड़सवारों को रखा गया। हॉडसन के इस घुड़सवार दस्ते को बागी सिपाहियों से लड़ना नहीं था अपितु अंग्रेजी सेनाओं के आगे रहकर शत्रु सेना की जासूसी करनी थी ताकि अंग्रेजों को अपनी रणनीति तय करने में सहायता मिल सके।
विलियम हॉडसन ने इस कार्य में मौलवी रजब अली को अपना प्रमुख सहायक बनाया जो एक आंख से काना था और अंग्रेजी सेना के लिए जासूसी करने का लम्बा अनुभव रखता था। रजब अली के जासूसों का जाल न केवल पंजाब, मेरठ तथा दिल्ली में फैला हुआ था अपितु लाल किले में भी उसके जासूस काम करते थे।
कमाण्डर इन चीफ के आदेश से विलियम हॉडसन ने अम्बाला से लेकर करनाल, दिल्ली तथा मेरठ और पुनः मेरठ से दिल्ली होते हुए करनाल एवं अम्बाला तक का मार्ग अपने घोड़े की पीठ पर बैठकर तय किया। उसका काम अंग्रेजी सेनाओं को ये सूचनाएं उपलब्ध कराने का था कि इन मार्गों पर कहाँ-कहाँ बागी सिपाहियों से मुठभेड़ होने की संभावना है तथा उनका जमावड़ा कहाँ-कहाँ पर स्थित है।
हॉडसन द्वारा इस कार्य में किए गए परिश्रम का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि करनाल से दिल्ली के लिए रवाना होते समय हॉडसन ने अपनी पत्नी को एक पत्र लिखा जिसमें उसने सूचित किया कि मैं पिछली पांच रातों में केवल एक रात बिस्तर पर सो पाया हूँ, इसलिए काफी थका हुआ हूँ।
जब विलियम हॉडसन ने कमाण्डर इन चीफ को सारी जानकारी दे दी तो कमाण्डर इन चीफ ने अंग्रेजी सेनाओं को दिल्ली कूच करने के आदेश दिए किंतु दुर्भाग्य से 27 मई को कमाण्डर इन चीफ जॉर्ज एन्सन हैजे से मर गया। अपने जनरल की मृत्यु से अंग्रेजी सेना के मनोबल पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। इस समय हॉडसन का गॉड फादर वही था, इसलिए हॉडसन को बड़ा झटका लगा किंतु उसने हिम्मत नहीं हारी। वह अपना काम पूरी निष्ठा एवं क्रूरता से करता रहा।
जब अम्बाला, करनाल और मेरठ की सेनाएं दिल्ली के रिज पर जमा हो गईं, तब हॉडसन ने भी रिज को अपना मुख्यालय बनाया। इस समय वह स्वयं तो दिल्ली में प्रवेश नहीं कर सकता था किंतु उसके सहायक रज्जब अली को न केवल दिल्ली में अपितु लाल किले में प्रवेश करने में भी कोई कठिनाई नहीं थी।
रज्जब अली ने पूरे नगर में जासूसों का एक जाल बिछा दिया जिसमें अंग्रजों के पुराने तरफदारों से लेकर मुगल खानदान के असंतुष्ट लोग और अंग्रेजों के कुछ पुराने नौकर शामिल थे। दिल्ली गजट का एक सब-एडीटर भी रज्जब अली के जासूसी दल में शामिल हो गया।
लाल किले में रह रहे चापलूस किस्म के कुछ लोगों ने दोनों हाथों में लड्डू रखने का विचार किया। वे एक तरफ तो बादशाह के प्रति निष्ठा दिखाते रहे और दूसरी तरफ लाल किले में हो रही घटनाओं की जानकारी अंग्रेजों तक पहुंचाते रहे। धीरे-धीरे लाल किले के बहुत से लोग अंग्रेजों के गुप्तचर बन गए और दिल्ली में होने वाली घटनाओं की गुप्त सूचनाएं अंग्रेजों तक पहुंचाने लगे। अंग्रेजों के लिए गुप्तचरी करने वालों में से कुछ लोग तो लाल किले में बैठे बादशाह की नौकरी करते थे और कुछ लोग बादशाह के रिश्तेदार थे।
सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह थी कि स्वयं बहादुरशाह जफर की बेगम जीनत महल भी हॉडसन के जासूस रज्जब अली के सम्पर्क में रहने लगी। विलियम डेलरिम्पल ने लिखा है कि बहादुरशाह जफर का प्रधानमंत्री हकीम अहसनुल्लाह खाँ और मरहूम शहजादे मिर्जा फखरू का ससुर मिर्जा इलाही बख्श भी अंग्रेजों के पक्षधर बन गए।
कम्पनी सरकार के अधिकारियों ने ई.1803 से ई.1857 तक की अवधि में यह अच्छी तरह से जान लिया था कि बहुत से हिन्दू कतई नहीं चाहते कि भारत में फिर से मुसलमान बादशाह का शासन हो। इसलिए दिल्ली शहर में कम्पनी के अधिकारियों के मित्रों की कमी नहीं थी। क्रांतिकारी सिपाहियों में शामिल हरियाणा रेजीमेंट के मेजर गौरी शंकर सुकुल एवं दिल्ली शहर के कुछ बड़े हिन्दू साहूकारों को भी मुगल बादशाह का राज्य पसंद नहीं था। इसलिए वे भी अंग्रेजों के लिए जासूसी करने लगे।
हॉडसन के जासूसी जाल का एक बड़ा केन्द्र दिल्ली की ब्रिटिश रेजीडेंसी का मोटा मीर मुंशी जीवनलाल था जो अपने घर के तहखाने में बंद रहकर अंग्रेजों के लिए सबसे बड़ा जासूस बन गया। उसने अपनी डायरी में लिखा है कि 19 मई 1857 को ही उसे फकीर के भेस में एक नीली आंखों वाले अंग्रेज ने निर्देश दिए थे कि वह अंग्रेजों के लिए शहर की खबरें हासिल करे।
विलियम डेलरिम्पल ने लिखा है कि मुंशी जीवन लाल हर सुबह दो ब्राह्मण और और दो जाट शहर में भेजता था जो उसे बागी सिपाहियों के बारे में सूचनाएं लाकर देते थे और जीवन लाल उन सूचनाओं को लिखकर अंग्रेजों को भिजवाता था।
बहुत से जासूस फकीरों और साधुओं के वेश में थे जो क्रांतिकारी सैनिकों के जमावड़ों से लेकर अंग्रेजों की रिज तक बिना किसी रोक-टोक के घूमते थे और हॉडसन तथा उसके जासूसों के पत्र एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाते थे।
इन जासूसों की सहायता से रिज पर पड़ी अंग्रेजी सेनाओं को दिल्ली के आम आदमी से लेकर, लाल किले तक एवं दिल्ली के भीतर से लेकर दिल्ली के बाहर दूर-दूर तक पड़ी क्रांतिकारी सेनाओं की वास्तविक स्थिति शीशे की तरफ साफ हो गई थी और अब अंग्रेजों के लिए दिल्ली पर हमला बोलना अधिक आसान हो गया था।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता