Thursday, November 21, 2024
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पटेल-नेहरू विवाद काल के गर्त में समा गया!

जवाहर लाल नेहरू ने सरदार पटेल के साथ मिलकर एक-दूसरे की शिकायतें सुनने का निर्णय किया किंतु उसके कुछ दिन बाद ही गांधीजी की हत्या हो गई। इसके कारण नेहरू और पटेल की बैठक नहीं हो सकी तथा इसी के साथ पटेल-नेहरू विवाद काल के गर्त में समा गया।

नेहरू ने अपने नोट में गांधीजी को अजमेर दंगे के प्रकरण के सम्बन्ध में घटी घटनाओं के सम्बन्ध में जानकारी दी तथा पटेल-नेहरू विवाद को स्पष्ट करते हुए पूछा कि क्या प्रधानमंत्री इस प्रकार का कदम उठाने के लिये अधिकृत थे। इस बात का निर्णय किसे लेना था ?

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यदि प्रधानमंत्री को इस प्रकार का कदम उठाने का अधिकार नहीं था, और न ही इस सम्बन्ध में निर्णय लेने का अधिकार था तो वे इस पद पर ढंग से काम नहीं कर सकेंगे और न ही अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकेंगे। नेहरू ने इस नोट में गांधी को लिखा कि यह तो पृष्ठभूमि है किंतु निरंतर उठ रही व्यावहारिक कठिनाईयों के सम्बन्ध में सिद्धांत क्या रहेगा ?

यदि सीधे शब्दों में कहें तो कैबीनेट में कुछ व्यवस्थायें करने की आवश्यकता है जो एक व्यक्ति पर उत्तरदायित्व का निर्माण कर सके। वर्तमान परिस्थितियों में या तो मैं जाऊँ या सरदार जायें। जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मैं जाने को तैयार हूँ। मेरा या हम दोनों में से किसी एक का सरकार से बाहर जाने का अर्थ यह नहीं है कि हम आगे से एक दूसरे का विरोध करेंगे। हम सरकार के भीतर रहें अथवा बाहर, हम विश्वसनीय कांग्रेसी रहेंगे, विश्वसनीय साथी रहेंगे तथा हम अपने कार्यक्षेत्र में फिर से एक साथ आने के लिये कार्य करेंगे।

सरदार पटेल ने अपने पत्र में प्रधानमंत्री के दायित्वों के सम्बन्ध में नेहरू की धारणा से असहमति व्यक्त की। यदि प्रधानमंत्री इसी प्रकार कार्य करेगा तो वह एक निरंकुश शासक बन जायेगा। प्रधानमंत्री, सरकार में, बराबर के मंत्रियों में सबसे पहला है। वह अपने साथियों पर कोई बाध्यकारी शक्तियां नहीं रखता।

पटेल ने गांधी को लिखा कि प्रधानमंत्री ने अपने नोट में लिखा है कि यदि प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री के बीच सामंजस्य नहीं बनता है तो एक को जाना होगा। यदि ऐसा ही होना है तो मुझे जाना चाहिये। मैंने सक्रिय सेवा का दीर्घ काल व्यतीत किया है। प्रधानमंत्री देश के जाने-माने नेता हैं तथा अपेक्षाकृत युवा हैं।

उन्होंने अपने लिये अंतर्राष्ट्रीय छवि स्थापित की है। मुझे कोई संदेह नहीं है कि मेरे और उनके बीच में निर्णय उनके पक्ष में होगा। इसलिये उनके कार्यालय छोड़ने का कोई प्रश्न ही नहीं है।

इन दोनों नेताओं के मध्य, गांधीजी के समक्ष होने वाला विचार-विमर्श गांधीजी के उपवास के कारण स्थगित कर देना पड़ा। इसके अन्य कारण भी थे। कश्मीर समस्या अपने चरम पर पहुँच गई थी तथा देश में साम्प्रदायिक तनाव भी अपने उच्चतम स्तर पर था। भारत सरकार इस समय संक्रांति काल में थी। एक छोटा सा धक्का भी बहुत बड़ा नुक्सान पहुँचा सकता था।

अंत में गांधी की मृत्यु पर दोनों ने एक दूसरे को गले लगा लिया और उसके बाद उनके झगड़े सदैव के लिये मिट गये। दोनों ने एक साथ देश को सम्बोधित किया तथा जनता को संभावित हिंसा से दूर रहने का आह्वान किया।गांधी की हत्या ने नेहरू और पटेल को एक किया। इसी के साथ पटेल-नेहरू विवाद काल के गर्त में समा गया तथा पटेल और नेहरू के बीच रहने वाला स्थाई विरोध और मतभेद काल के गर्त में समा गये।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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