Thursday, November 21, 2024
spot_img

1. हिन्दू धर्म-साहित्य का अद्भुत कथा-संसार

धर्म का अर्थ है धारण करना। जो मनुष्य उत्तम विचार, उत्तम दर्शन और उत्तम आचरण को धारण करता है, वह मनुष्य धर्म से सम्पन्न है। इस कारण संसार भर में मनुष्य मात्र का धर्म एक ही है।

सभी मनुष्य एक ही धर्म से संचालित होते हैं किंतु सांसारिक स्तर पर धर्म के अगल-अलग नाम और स्वरूप दिखाई देते हैं। वस्तुतः ये नाम और स्वरूप धर्म के नहीं, सम्प्रदायों के हैं। धर्म तो एक ही है।

यही कारण है कि भारत के लोग प्रायः यह कहते हुए सुनाई देते हैं कि ‘हिन्दू धर्म’ कोई  धर्म नहीं है, यह तो जीवन शैली है। सत्य-सनातन धर्म ही हिन्दुओं का धर्म है, वस्तुतः सत्य सनातन धर्म ही संसार भर के मनुष्यों का वास्तविक धर्म है। उसी को हम हिन्दू धर्म कहते हैं।

इस धर्म के नियम किसी ने बनाए नहीं हैं, मनुष्य ने अपने अनुभव से प्राप्त किए हैं। जैसे कि दूसरों की भलाई करने से पुण्य मिलता है, अथवा भूखे को रोटी और प्यासे को पानी देने से पुण्य मिलता है। ये नियम सभी धर्मों में एक जैसे हैं। यही सत्य-सनातन धर्म है।

संसार भर के समस्त मनुष्यों का एक ही सत्य-सनानत धर्म है, यह बात हिन्दू धर्म से बाहर के लोगों को समझ में नहीं आती इसलिए वे अपने-अपने सम्प्रदाय का जोर-शोर से प्रचार करते हुए अपने सम्प्रदाय को ही धर्म कहते हैं। जबकि किन्हीं भी दो मनुष्यों के धर्म अलग-अलग नहीं हो सकते, वह तो एक ही है।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

मनुष्य मात्र का धर्म क्या है, इसे समझने के लिए संसार भर में अनेक विद्वानों ने धर्म के अर्थ, परिभाषाएं एवं लक्षण बताए हैं। अलग-अलग अर्थ, अलग-अलग परिभाषाओं एवं अलग-अलग लक्षणों के बताए जाने के कारण धर्म के तत्व को समझ पाना कठिन हो जाता है। मनुष्य धर्म पर चले, इसके लिए आवश्यक है कि वह धर्म को समझे। यही कारण है कि जब से मनुष्य का धर्म नामक विचार से परिचय हुआ है, तब से ही मनुष्य ने धर्म के मर्म को समझने के लिए कथाओं का सहारा लिया है।

हम इस धारावाहिक में हिन्दू धर्म की कथाओं के बारे में जानने का प्रयास करेंगे। हिन्दू धर्म का साहित्य-कोश बहुत समृद्ध है। इसका कारण यह है कि हिन्दू धर्म किसी एक पुस्तक से बंधा हुआ नहीं है। हिन्दू धर्म किसी एक ऋषि, एक अवतार या एक मंत्र से बंधा हुआ नहीं है। हिन्दू धर्म किसी एक पूजा-पद्धति से संचालित नहीं होता। हिन्दू धर्म एक अभिवादन से बंधा हुआ नहीं है। इस धर्म में ना-ना पंथ हैं। ना-ना देवी देवता हैं, ना-ना पूजा-पद्धतियां हैं, ना-ना प्रकार के अभिवादन हैं। असंख्य ऋषियों द्वारा दिए गए असंख्य मंत्र हैं, असंख्य ग्रंथ हैं, असंख्य अभिवादन हैं।

इस धर्म को मानने वाले लोग सैंकड़ों बोलियां बोलते हैं, विविध प्रकार की वेशभूषा रखते हैं, विविध प्रकार के तिलक लगाते हैं, अलग-अलग तरह के पूजा-स्थल बनाते हैं, अलग-अलग तरह के विधि-विधान करते हैं। अलग-अलग तरह का भोजन करते हैं। अलग-अलग तरह के यज्ञ, अलग-अलग तरह के व्रत, अलग-अलग तरह के दान आदि धार्मिक कृत्य करते हैं।

हिन्दू धर्म के भीतर सैंकड़ों तरह की वैवाहिक पद्धतियां हैं, सैंकड़ों तरह की मान्यताएं हैं। सैंकड़ों तरह के संस्कार एवं मृतकों की अंत्येष्टियां हैं।

फिर भी इतने सारे पंथ, इतने सारे देवी-देवता, इतनी सारी पूजा पद्धतियां, इतने सारे अभिवादन, इतने सारे ग्रंथ, ना-ना प्रकार के विधि-विधान, अलग-अलग तरह के पूजा स्थल मिलकर हिन्दू धर्म का निर्माण करते हैं।

बिना किसी परिभाषा के, बिना किसी व्याख्या के, बिना किसी लाक्षणिक विवेचना के कोई भी व्यक्ति दूर से ही देखकर पहचान जाता है कि यह व्यक्ति हिन्दू है, यह हिन्दू धर्म में आस्था रखता है।

देखें यह वी-ब्लॉग-

हिन्दू धर्म की कथाओं को विभिन्न शीर्षकों में रखा जा सकता है। उदाहरण के लिए नीति कथाएं, धर्म कथाएं, व्रत एवं त्यौहार की कथाएं, अध्यात्म कथाएं, दार्शनिक कथाएं तथा विभिन्न ग्रंथों में प्रसंगवश आए हुए उद्धरणों एवं पात्रों पर आधारित कथाएं आदि। हम इस चैनल को विभिन्न धर्मग्रंथों में आई हुई कथाओं पर केन्द्रित करेंगे चाहे वे नीतिक कथाएं हों, अथवा व्रत कथाएं अथवा पात्र विशेष से सम्बन्धित कथाएं।

हमें आशा है कि हम इन कथाओं के माध्यम से धर्म के उस मर्म तक पहुंचने का प्रयास करेंगे जिनका प्रणयन हमारे ऋषियों, मुनियों एवं विद्वत्जनों ने आदि काल से किया है। हम सुनते आए हैं कि वेद हिन्दू धर्म के प्राचीनतम धर्म ग्रंथ हैं। इन्हें समस्त सत्य विद्याओं की पुस्तक कहा जाता है।

इन्हें अपौरुषेय भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है कि इन्हें किसी व्यक्ति ने नहीं लिखा है। व्यावहारिक स्तर पर इस बात के दो अर्थ हो सकते हैं, पहला यह कि वेद हमें देवताओं द्वारा दिए गए और दूसरा यह कि यह किसी एक व्यक्ति ने नहीं लिखे अपितु जंगलों में बैठे ऋषिगण समय-समय पर ऋचाओं का प्राकट्य करते रहे और बाद में महर्षि वेदव्यास ने उन मंत्रों को एक संहिता के रूप में अर्थात् पुस्तकों के रूप में लिपिबद्ध कर दिया जिन्हें हम वेद कहते हैं।

वेदों की ही तरह ब्राह्मणों, उपनिषदों, आरण्यकों तथा पुराणों में भी हजारों साल पुरानी कहानियां उपलब्ध होती हैं। हजारों कथाएं ऐसी भी हैं जो एक से अधिक ग्रंथों में आई हैं तथा उनके विन्यास में थोड़ा-बहुत अंतर भी है।

इन प्राचीनतम ग्रंथों में बहुत सी कथाएं ऐसी भी हैं जो प्राकृतिक घटनाओं का दैवीकरण एवं मानवीकरण करके कथाओं के रूप में लिखी गई हैं। इन कथाओं में पृथ्वी की उत्पत्ति होने से लेकर, पृथ्वी के समुद्र से बाहर निकलने, सप्त द्वीपों का निर्माण होने, दिन-रात बनने, सूर्य-चंद्र ग्रहण लगने, धरती पर कोहरा फैलने जैसी सैंकड़ों छोटी-बड़ी प्राकृतिक घटनाओं का निरूपण किया गया है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में बारम्बार आई ऐसी ही एक कथा है भगवान विष्णु द्वारा मधु-कैटभ नामक राक्षसों का वध किए जाने की। इस कथा का आशय एक प्राकृतिक घटना से है।

हम आगामी कड़ियों में वेदों, ब्राह्मणों, उपनिषदों, आरण्यकों तथा पुराणों में मिलने वाली विविध कथाओं की चर्चा करेंगे। इन प्राचीन ग्रंथों के अतिरिक्त महिर्ष वाल्मिीकि द्वारा लिखित रामायण एवं महिर्ष वेदव्यास द्वारा लिखित महाभारत में भी अनूठी धर्म कथाओं के भण्डार भरे पड़े हैं। इस चैनल में उन कथाओं को भी स्थान देने का प्रयास किया जाएगा।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source