मंगोलों पर की गई सैनिक कार्यवाही के बाद सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने कभी कोई सैनिक अभियान नहीं किया तथा सैनिक अभियानों की जिम्मेदारी अपने युवा भतीजे एवं दामाद अल्लाउद्दीन खिलजी पर डाल दी।
अल्लाउद्दीन खिलजी को मालवा क्षेत्र में स्थित भिलसा राज्य में जो सफलता प्राप्त हुई थी, उससे उसका उत्साह बहुत बढ़ गया था। भिलसा में ही उसने देवगिरी के यादव राज्य की अपार सम्पत्ति के विषय में सुना था। उसने इस राज्य की विशाल सम्पत्ति को लूटने का निश्चय किया परन्तु अपने ध्येय को किसी पर प्रकट नहीं होने दिया।
जब सुल्तान जलालुद्दीन मंगोल अभियान के बाद दिल्ली लौट आया तो अल्लाउद्दीन खिलजी ने उससे चन्देरी पर आक्रमण करने की आज्ञा प्राप्त की तथा इस अभियान के लिए नए सैनिकों की भर्ती करने लगा। कुछ अमीरों ने अल्लाउद्दीन खिलजी द्वारा की जा रही सैनिक भर्ती पर आपत्ति की किंतु सुल्तान ने इस आपत्ति को अस्वीकार कर दिया।
सुल्तान इस बात को समझ ही नहीं सका था कि जो भी सेनापति सैनिकों की भर्ती करेगा तथा उन्हें वेतन देगा, सैनिक उसी के प्रति निष्ठा का प्रदर्शन करेंगे। अतः सेना की भर्ती का काम किसी और अमीर को सौंपा जाना चाहिए था।
जब अल्लाउद्दीन खिलजी ने शाही-व्यय पर आठ हजार सैनिकों की सेना खड़ी कर ली तब ई.1294 में वह एक विशाल सेना के साथ मालवा की ओर चल दिया। वह अत्यन्त दु्रतगति से चलता हुआ एलिचपुर पहुँचा तथा उस पर आक्रमण कर दिया। ऐलिचपुर की सफलता के बाद उसे चंदेरी पर आक्रमण करना था किंतु अल्लाउद्दीन खिलजी ने अपनी सेना को देवगिरी पर आक्रमण करने का निर्देश दिया।
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देवगिरि के राजा रामचन्द्र को अल्लाउद्दीन खिलजी के उद्देश्यों की कुछ भी जानकारी नहीं थी। इसलिए उसने अपने राज्य की सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं की। अल्लाउद्दीन तेजी से चलता हुआ लाजौरा की घाटी पहुंचा जहाँ से देवगिरि केवल 12 मील दूर थी। अल्लाउद्दीन ने जब देवगिरि पर आक्रमण किया तब यह भी झूठी खबर चारों ओर फैला दी कि सुल्तान भी 20,000 सैनिकों की सेना के साथ देवगिरि आ रहा है।
इस सूचना से देवगिरि का राजा रामचन्द्र और अधिक आतंकित हो उठा। उसने अपनी राजधानी से 12 मील दूर लसूरा नामक स्थान पर अल्लाउद्दीन का सामना किया किंतु जब परास्त होने लगा तो राजा रामचंद्र ने स्वयं को लाजौरा के दुर्ग में बन्द कर लिया।
एक इतिहासकार ने लिखा है कि अल्लाउद्दीन ने राजा रामचंद्र के पास संदेश भिजवाया कि मैं अपने ताऊ सुल्तान जलालुद्दीन से नाराज होकर राजमुंदरी के राजा के यहाँ नौकरी करने जा रहा हूँ। इस पर रामचंद्र निश्चिंत हो गया तथा उसने अल्लाउद्दीन का अपने महल में स्वागत किया। धोखेबाज अल्लाउद्दीन ने महल में घुसते ही महल पर अधिकार कर लिया।
राजा रामचंद्र ने अपने पुत्र शंकरदेव के पास इस छल की सूचना भेजी तथा उसे कहलवाया कि वह शीघ्रातिशीघ्र देवगिरि लौट आए। राजकुमार शंकरदेव इस समय दक्षिण भारत में तीर्थयात्रा पर गया हुआ था तथा राज्य की अधिकांश सेना उसके साथ गई थी।
जब तक शंकरदेव लौट कर आता, तब तक का समय व्यतीत करने के लिए राजा रामचंद्र ने अल्लाउद्दीन खिलजी से सन्धि की बातचीत आरम्भ कर दी। इस बीच अल्लाउद्दीन खिलजी की सेना ने देवगिरि राज्य को जमकर लूटा। कई दिनों तक वार्त्ता चलती रही। अन्त में यह निश्चित हुआ कि राजा रामचन्द्र एक निश्चित धनराशि अल्लाउद्दीन खिलजी को देगा और अल्लाउद्दीन खिलजी देवगिरि के कैदियों को मुक्त करके दिल्ली लौट जायेगा।
जब शंकरदेव लौटकर नहीं आया तो राजा रामचंद्र ने विशाल सम्पत्ति अल्लाउद्दीन खिलजी को समर्पित कर दी। एक इतिहासकार ने लिखा है कि राजा रामचंद्र ने 50 मन सोना, 7 मन मोती तथा 40 घोड़े और बहुमूल्य द्रव्य देकर अपनी जान बचाई। जिस समय आलाउद्दीन लूट का धन लेकर दिल्ली के लिए प्रस्थान कर ही रहा था कि राजकुमार शंकरदेव अपनी सेना के साथ दक्षिण से आ गया।
राजकुमार शंकर देव ने अल्लाउद्दीन के पास कहला भेजा कि वह देवगिरि राज्य से लूटी गई सम्पत्ति वापस लौटा दे और चुपचाप दिल्ली लौट जाये। इस पर अल्लाउद्दीन ने नसरत खाँ को लूसरा के दुर्ग पर घेरा डालने का आदेश दिया और स्वयं एक सेना लेकर शंकरदेव पर आक्रमण करने चल दिया।
दोनों पक्षों में हुए भीषण युद्ध के बाद यादव राजकुमार शंकरदेव परास्त हो गया। अब दुर्ग का घेरा जोरों के साथ आरम्भ हुआ। एक दिन रामचन्द्र के सैनिकों ने रामचंद्र को सूचित किया कि दुर्ग के जिन बोरों में अब तक अन्न भरा हुआ समझा जा रहा था उनमें तो नमक भरा है। इस सूचना से रामचंद्र का साहस भंग हो गया और उसने पुनः अल्लाउद्दीन से सन्धि कर ली। इस बार उसे पहले से अधिक कठोर शर्तें स्वीकार करनी पड़ीं।
फरिश्ता के अनुसार, अल्लाउद्दीन को छः सौ मन सोना, सात मन मोती, दो मन हीरा, पन्ना, लाल, पुखराज, एक हजार मन चाँदी, चार हजार रेशम के थान तथा अन्य असंख्य बहुमूल्य वस्तुऐं दी गईं। बरार क्षेत्र में स्थित एलिचपुर का प्रान्त भी अल्लाउद्दीन को मिल गया। राजा ने वार्षिक कर भी अल्लाउद्दीन के पास भेजने का वचन दिया। हरिशंकर शर्मा ने लिखा है कि यादव राजा ने अल्लाउद्दीन खिलजी को पचास मन सोना, 5 मन मोती, 40 हाथी तथा कई हजार घोड़े उपहार में दिए।
यह एक विशाल एवं अकल्पनीय सम्पत्ति थी जो थोड़े से प्रयास से ही अल्लाउद्दीन खिलजी के हाथ लग गई थी। हो सकता है कि फरिश्ता ने सम्पत्ति की सूची काफी बढ़ा-चढ़ाकर बताई हो किंतु इतना निश्चित है कि यह एक विशाल सम्पत्ति थी जिसे देखकर अल्लाउद्दीन की आँखें चौड़ गईं। इस सम्पत्ति के बल पर तो वह नई सल्तनत खड़ी कर सकता था। अब उसे किसी भी सुल्तान का ताबेदार रहने की आवश्यकता नहीं थी। अल्लाउद्दीन खिलजी ने मन ही मन एक निर्णय लिया और उसे कार्यान्वित करने के लिए वह देवगिरि से दिल्ली की ओर चल दिया।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता