Wednesday, October 16, 2024
spot_img

अकबर इस्लाम विरोधी था? (152)

 अकबर कालीन मुल्लाओं ने यह आरोप बारबार लगाया है कि अकबर इस्लाम विरोधी था!

बदायूनी का यह आरोप सही है कि कुछ चापलूसों में अकबर को महान् बताने एवं अकबर के माध्यम से धरती का उपकार होने की पुरानी भविष्यवाणियां बताने की होड़ मच गई। मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनी ने इन चापलूस लोगों पर तक-तक कर निशाने साधे हैं तथा अकबर के विरुद्ध भी अपने मन की भड़ास निकाली है कि किस-किस प्रकार से अकबर इस्लाम विरोधी था और उसने इस्लाम विरोधी काम करने आरम्भ कर दिए।

मुल्ला बदायूनी ने मुंतखब उत तवारीख में लिखा है कि शीराज के ख्वाजा मौलाना जफरदार का विधर्मी अर्थात् शिया विद्वान, मक्का से अपनी लिखी पुस्तिका भी लाया जिसमें उसने अकबर को अवतारी पुरुष बताया था। मुल्ला बदायूनी के अनुसार शरीफ की पुस्तक में शियाओं ने अली से जुड़ी इसी प्रकार की बातों का जिक्र किया और इस रूबाई का उद्धरण दिया जिसे नासिर-ए-खुसरू द्वारा लिखित बताया गया। इसमें लिखा था-

हिजरी 989 में, भाग्य नियत किए जाने से

सभी तरफ के ग्रह एक तरफ मिल जाएंगे

सिंह राशि के साल में सिंह के माह में सिंह के दिन

अल्लाह का शेर खड़ा हो जाएगा, पर्दे के पीछे से।

इस पद का अर्थ है कि ईस्वी 1579 में धरती पर कयामत आएगी।

अकबर इस्लाम विरोधी था इसका उदाहरण देते हुए मुल्ला बदायूनी ने लिखा है कि अकबर ने इबादत के समय स्वर्ण एवं रेशमी पोषाक पहनना इच्छित कर दिया। एक दिन मैंने देखा कि शाही क्षेत्र का मुफ्ती बिना रेशम की पोषाक में था। मुल्ला बदायूनी ने उससे पूछा कि शायद इस तरह का कोई रिवाज आपके ध्यान में आया है।

मुफ्ती ने कहा कि हाँ जहाँ रेशम उपलब्ध है, वहाँ रेशमी लिबास पहनने की इजाजत है। मैंने उससे कहा कि किसी को वह रिवाज देखना चाहिए, महज शहंशाह के आदेश से यह हो, गले नहीं उतरता। इस पर मुफ्ती ने मुल्ला बदायूनी से कहा यह शहंशाह के कहने के आधार पर नहीं है। यह बात अल्लाह जानता है।

मुल्ला बदायूनी ने लिखा है कि इसके बाद इस्लाम में इबादत और रोजे, ही नहीं हज तक मना कर दिए गए। कुछ दोगले जैसे मुल्ला मुबारक के लड़के ने जो कि अबुल फजल का शिष्य था, एक बड़ा लेख लिखा जिसमें मजहबी क्रिया-कलापों का मजाक उड़ाया गया। ऐसी रचनाओं को शहंशाह ने पसंद किया तथा उसने ऐसे लेखकों को प्रोत्साहित किया।

मुल्ला बदायूनी लिखता है कि हिजरी संवत् समाप्त कर दिया गया और तारीखे इलाही नाम से एक नया संवत् आरम्भ किया गया। शहंशाह के राज्यारोहण को इस संवत् का पहला वर्ष माना गया। महीनों के नाम उसी तरह रहे, जैसे फारसी राजाओं के समय रहे थे। इस कैलेण्डर में चौदह उत्सव सम्मिलित किए गए जो कि जोरोस्ट्रियन अर्थात् पारसी उत्सवों के अनुसार थे किंतु मुसलमानों के इफतार और उनकी प्रसिद्धि पददलित कर दी गई।  

मुल्ला की निगाह में यह कार्य इस बात का पुख्ता सबूत था कि अकबर इस्लाम विरोधी था! मुल्ला बदायूनी ने अकबर पर तंज कसते हुए लिखा है कि केवल जुम्मे की इबादत रखी गई क्योंकि कुछ बूढ़े, जर्जर और बेवकूफ आदमी इस नमाज के लिए जाया करते थे।

मुल्ला बदायूनी लिखता है कि तांबे के सिक्कों एवं सोने की मोहरों पर हजार साल वाला संवत् अर्थात् तारीखे इलाही लिखा जाने लगा जो इस बात का प्रतीक था कि मुहम्मद का धर्म जिसे हजार साल चलना था, समाप्ति की ओर है।

मुल्ला लिखता है कि अकबर के राज में अरबी पढ़ने-लिखने को अपराध की तरह देखा जाने लगा। मुस्लिम कानून, कुरान की टीका और रिवाज और उनके पढ़ने वालों को बुरा माना जाने लगा। खगोलशास्त्र, दर्शनशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, विज्ञान, गणित, शायरी, इतिहास और उपन्यास समृद्ध हुए और आवश्यक माने गए।

अरबी भाषा के कुछ अक्षरों की अवहेलना की गई। इन सब बातों ने शहंशाह को खुश किया। तूस के फिरदौसी जो ‘शाहनामा’ के दो पदों को कहानी में देता है, उनको अकबर के दरबार में बार-बार उद्धृत किया जाने लगा। इस पद में कहा गया था-

ऊँट एवं सांडे का दूध पीने से अरबों ने यह उन्नति की है

कि वे पर्सिया की हुकूमत की प्राप्ति चाहते हैं

भाग्य पर लानत्! भाग्य पर लानत्!

अर्थात्- मुल्ला बदायूनी यह कह रहा है कि अकबर के दरबार में अरब के उन लोगों पर व्यंग्य कसा जा रहा था जहाँ इस्लाम का उदय हुआ था क्योंकि अब वे (अरब वाले) इस्लाम के नाम पर पूरी दुनिया का राज चाहते थे।

मुल्ला बदायूनी की दृष्टि में दीन ए इलाही इस बात का एक और पक्का सबूत है कि अकबर इस्लाम विरोधी था! मुल्ला बदायूनी ने लिखा है कि ऐसा कोई भी पद जिसमें अकबर के पंथ के हित की बात हो, वह विद्वानों से सुनकर प्रसन्न होता और उसे अपने हक में बड़ा मसला मानता। जैसे एक पद जिसमें पैगम्बर का विधर्मी के साथ हुई झड़प में दांत का गिरना वर्णित किया गया था। मुल्ला बदायूनी लिखता है कि इसी प्रकार इस्लाम का हर आदेश, वह चाहे आम हो या खास, कारण के साथ इस्लाम की सुसंगतता, रुयत, तकलीफ और तकवीन तथा पुर्नउत्थान व न्याय के विवरण पर संदेह किए जाने लगे। उनका उपहास किया जाने लगा।

Teesra-Mughal-Jalaluddin-Muhammad-Akbar
To Purchase This Book Please Click On Image

मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनी के इन वर्णनों के आधार पर कहा जा सकता है कि ई.1580 से 1590 के बीच की अवधि में मुल्ला लोग दो धड़ों में बंट गए थे। एक धड़ा अकबर के पक्ष में था जो अकबर के हर कार्य का समर्थन करता था और दूसरा धड़ा कहता था कि अकबर इस्लाम विरोधी था। इन उदाहरणों से यह भी अनुमान होता है कि इस्लाम की सुन्नी शाखा के मुल्ला-मौलवी अकबर के विरोध में थे जबकि शिया शाखा के मुल्ला-मौलवी अकबर के पक्ष में थे जिन्हें मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनी ने काफिर लिखा है।

मुल्ला बदायूनी ने लिखा है कि यह सब जानते हैं कि कितनी कम संभावना इस बात की है कि प्रमाणों के साथ तर्क दिए जाने पर भी उसकी बात मान ली जाएगी, विशेषकर उस समय जबकि विरोधी के हाथ में जीवन या मृत्यु देने का अधिकार एवं शक्ति है। क्योंकि तर्क के लिए स्थितियों का गुणात्मक होना आवश्यक है।

अर्थात् मुल्ला बदायूनी कहना चाहता है कि चूंकि अकबर के हाथों में किसी को भी जीवन और मृत्यु देने का अधिकार था। इस कारण उसके सामने प्रमाण सहित एवं तर्क-पूर्ण बात कहने से कोई लाभ नहीं था क्योंकि अकबर इस्लाम की प्रमाण सहित कही गई बातों को भी नहीं मान रहा था। क्योंकि अकबर इस्लाम विरोधी था।

मुल्ला बदायूनी ने अकबर पर व्यंग्य करते हुए लिखा है कि जिसे कुरान और कथनों से संतुष्ट नहीं कर सकते, उस आदमी को आप एक ही प्रकार से उत्तर दे सकते हैं कि आप कोई उत्तर न दें।

Related Articles

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source