अकबर की मृत्यु एक ऐसे मंगोल बादशाह की मृत्यु थी जिसने साढ़े तेरह साल की आयु में अपने बाप का तख्त संभाला तथा अपने बाप के छोटे से राज्य को पूरे भारत में फैला दिया। संसार भर के कवि और इतिहासकार जिसकी शान में कशीदे पढ़ा करते थे और उसे संसार का स्वामी बताते न थकते थे, वह महान् अकबर एक दुखी बाप के रूप में मरा। अकबर की मृत्यु से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा। महान् अकबर अपने शराबी बेटों के लिए रोते हुए मर गया।
अकबर ने सलीम की बगावत से नाराज होकर सलीम को राज्याधिकार से वंचित करने तथा सलीम के पुत्र खुसरो का अपना उत्तराधिकारी बनाने का निश्चय किया था किंतु जब सलीम ने अकबर के महल में घुसकर हुमायूँ की तलवार अपनी कमर में बांध ली तो अकबर समझ गया कि यदि उसने सलीम की जगह खुसरो को बादशाह बनाने का प्रयास किया तो मुगलिया खानदान में खून की नदियां बहेंगी। इसलिए अकबर ने अपनी पगड़ी सलीम के सिर पर रख दी।
इसी के साथ मुगलिया सल्तनत को उसका अगला बादशाह और चंगेजी खानदान को उसका अगला चिराग मिल गया। तैमूर लंग के वंश में उत्पन्न यह शराबी शहजादा ही अब सर्वसम्पन्न भारत के करोड़ों निर्धन भारतवासियों का भाग्य विधाता था। अपनी पगड़ी सलीम के सिर पर रखने के बाद अकबर ने मानसिंह से कहा कि वह शहजादे सलीम की रक्षा करे।
अकबर 22 सितम्बर 1605 को बीमार हुआ था। 8 दिन तक हकीम उसकी सघन चिकित्सा करते रहे किंतु अंतिम बीस दिनों में अकबर ने हकीमों से कोई चिकित्सा नहीं करवाई। 15 अक्टूबर 1605 को अकबर के प्राण पंखेरू पिंजरा खाली छोड़कर उड़ गए। जो दुनिया को जीतना चाहता था, वह अपनी शराबी बेटों के लिए रोता हुआ इस असार संसार से चला गया। अकबर का हरम पांच हजार औरतों की चीखों से भर गया।
कहा नहीं जा सकता कि इन पांच हजार औरतों के अतिरिक्त अकबर महान् के लिए और कौन-कौन रोया! अकबर का पिता हुमायूँ, अकबर की माता मरियम मकानी अर्थात् हमीदा बानू बेगम, अकबर की सौतेली माता चूचक बेगम, अकबर की धाय माताएं माहम अनगा और जीजी अनगा, अकबर का छोटा सौतेला भाई हकीम खाँ तथा अकबर का संरक्षक बैराम खाँ भी मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे। अकबर की प्यारी बुआ गुलबदन बेगम भी अकबर से दो साल पहले मौत के गाल में समा चुकी थी।
अकबर के नवरत्नों एवं मित्रों में से भी अधिकांश लोग धरती छोड़कर जा चुके थे। नवरत्न फकीर अजियोद्दीन ई.1572 में मर गया था। राजा बीरबल ई.1586 में और राजा टोडरमल ई.1589 में मर चुका था। संगीत सम्राट तानसेन भी ई.1889 में मृत्यु को प्राप्त हो चुका था। अकबर का नवरत्न फैजी ई.1595 में मृत्यु को प्राप्त हुआ। अबुल फजल ई.1602 में मारा गया।
अकबर की मृत्यु के समय उसके तीन रत्न ही जीवित बचे थे जिनमें मुल्ला दो प्याजा, खानखाना अब्दुर्रहीम तथा राजा मानसिंह के नाम आते हैं। अतः अकबर की मृत्यु पर रोने के लिए उसके मित्रों में से केवल तीन ही जीवित बचे थे।
कहा नहीं जा सकता कि अकबर के हरम में रहने वाली पांच हजार औरतों से अकबर के वास्तव में कितने पुत्र पैदा हुए थे किंतु इस्लामी विधान के अनुसार उसकी जो चार घोषित बीवियां थी, उनके पेट से उत्पन्न हुए तीन पुत्रों में से दानियाल एवं मुराद मर चुके थे और अब केवल एक पुत्र सलीम ही जीवित बचा था।
16 अक्टूबर 1605 को आगरा के दुर्ग से अकबर का जनाजा निकला और उसे बिहिश्ताबाद में दफना दिया गया। बाद में उसे सिकंदरा में बनाए गए एक मकबरे में ले जाकर दफनाया गया।
अकबर के मरते ही राजा मानसिंह ने अपने सैनिक अकबर के महल के पहरे से हटा लिए और रामसिंह कच्छवाहा के सैनिक अकबर के महल को घेर कर खड़े हो गए। जब शहजादे खुसरो ने सुना कि अकबर मर गया तो वह फतहपुर सीकरी छोड़कर भाग गया। कच्छवाहे रामसिंह ने आगरा का चप्पा-चप्पा खोज मारा किंतु खुसरो उसके हाथ नहीं लगा।
बादशाह के मरते ही सलीम ने सबसे पहले शाही कोष को अपने अधिकार में लेने का काम किया। अकबर आगरा के किले में तीस करोड़ रुपया छोड़ कर मरा था। राजा मानसिंह ने किले की किसी चीज को हाथ नहीं लगाया था, इस कारण वे रुपये बिना किसी बाधा के सलीम के हाथ लग गये।
बादशाह की मौत के ठीक आठवें दिन अकबर का एकमात्र जीवित पुत्र सलीम, नूरूद्दीन मुहम्मद जहाँगीर के नाम से आगरा के तख्त पर बैठा। पहले ही दिन उसने कई राजाज्ञाएं प्रसारित कीं जिनमें से दो राजाज्ञाएं प्रमुख थीं। पहली ये कि राजा मानसिंह कच्छवाहा तत्काल बंगाल के लिये प्रस्थान कर जाये तथा दूसरी ये कि शहजादे खुसरो को कैद करके बादशाह के सम्मुख प्रस्तुत किया जाये।
आम्बेर नरेश राजा मानसिंह कच्छवाहा की तीन पीढ़ियों ने अकबर की तन-मन से सेवा की थी। राजा मानसिंह की बुआ अकबर से और बहिन सलीम से ब्याही गई थी। आगे चलकर राजा मानसिंह की पोती भी सलीम से ब्याही गई। मानसिंह के बाबा भारमल, मानसिंह के पिता भगवानदास, मानसिंह के भाई भुवनपति तथा मानसिंह के पुत्र जगतसिंह ने अपने जीवन अकबर एवं मुगलिया सल्तनत की श्रीवृद्धि के लिए खोए थे।
स्वयं राजा मानसिंह ने भी अकबर के लिये बड़ी-बड़ी लड़ाइयाँ जीती थीं और अपने पुराने स्वामी महाराणा प्रताप से युद्ध करने का कलंक अपने मुंह पर लगाया था। मानसिंह के दुर्भाग्य से आज मानसिंह का सबसे बड़ा विरोधी सलीम मुगलिया सल्तनत का स्वामी था। उसकी सल्तनत में मानसिंह के लिए कोई इज्जत, प्रेम और श्रद्धा नहीं थी। अकबर की मृत्यु से एक क्षण पहले तक मानसिंह मुगल सल्तनत का सबसे मजबूत मंत्री था किंतु नियति के चक्र ने सलीम को बादशाह बना दिया था जो मानसिंह से अपने पुराने हिसाब चुकता करना चाहता था। जहाँगीर के हाथों अपमानित होकर राजा मानसिंह वृद्धावस्था में अपना टूटा हुआ हृदय लेकर बंगाल के लिये प्रस्थान कर गया। पूरे तीन साल तक मानसिंह बंगाल में रहा। जब फरवरी 1608 में मानसिंह जहांगीर के दरबार में उपस्थित हुआ तो जहांगीर ने बूढ़ा भेड़िया कहकर मानसिंह को अपमानित किया। क्रुद्ध जहांगीर को प्रसन्न करने के लिए राजा मानसिंह को अपने स्वर्गीय पुत्र जगतसिंह की युवा पुत्री का विवाह बूढ़े जहांगीर के साथ करना पड़ा।