Sunday, September 8, 2024
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क्या गुर्जर जनजाति है!

क्या गुर्जर जनजाति है! इस विषय पर विचार करने से पहले हमें गुर्जरों के अधिवास क्षेत्र पर एक दृष्टि डालनी चाहिए। उत्तर भारत में गुर्जरों का अधिवास बड़ी संख्या में पाया जाता है। यह जाति कश्मीर की घाटियों से लेकर, पंजाब की नदी क्षेत्रों, राजस्थान के मैदानों तथा नीचे मध्यप्रदेश आदि प्रांतों में पाई जाती है। इनकी मांग है कि चूंकि गुर्जरों में जनजातीय लक्षण पाए जाते हैं, इसलिए इन्हें जनजाति स्वीकार किया जाए।

कौन हैं गुर्जर!

क्या गुर्जर जनजाति है! इस विषय पर विचार करने से पहले हमें गुर्जरों के इतिहास पर एक दृष्टि डालनी चाहिए। गुर्जर जाति के बारे में अभी तक विद्वानों द्वारा निर्विवाद रूप से यह निर्णय नहीं लिया जा सका है कि यह एक आर्य जाति है अथवा आर्येतर जाति है। इसका किसी भारतीय जनजातीय कबीले से उद्भव हुआ है अथवा यह जाति भारत के बाहर के किसी भू प्रदेश से किसी कालखण्ड में भारतवर्ष में आयी है।    

प्राचीन क्षत्रियों के वंशज

क्या गुर्जर जनजाति है! इस विषय पर विचार करते समय हमें इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि  क्या वे प्राचीन क्षत्रियों के वंशज हैं?

सुप्रसिद्ध इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार प्राचीनकाल में गुर्जर नाम का एक राजवंश था जिसके मूल पुरुष के नाम से उसके वंशज गुर्जर कहलाये। गुर्जर किन्हीं प्राचीन क्षत्रिय राजवंश की संतान हैं, इसके पक्ष में गुर्जर प्रदेश की उपस्थिति एक बड़ा प्रमाण जान पड़ता है।

बहुत से गुर्जरों का भी मानना है कि वे प्राचीन कालीन गुर्जर नामक क्षत्रिय जाति की संतान हैं। उनका दावा है कि गुर्जर प्रतिहार वंश ही उनका मूल वंश है।

कुछ लोग चौहान शासक पृथ्वीराज चौहान को भी गुर्जर मानते हैं क्योंकि पृथ्वीराजविजयमहाकाव्यम् में पृथ्वीराज को गुर्जरेश्वर कहा गया है।

कुछ लोग मिहिरभोज को गुर्जर राजा मानते हैं, जबकि मिहिरभोज प्रतिहार था। वस्तुतः ये लोग प्रतिहारों को ही गुर्जर मानते हैं इसलिए मिहिरभोज को भी गुर्जर राजा मानते हैं।

कुछ लोग मिहिरकुल को गुर्जर मानते हैं जबकि मिहिरकुल तो हूण था।

यदि मिहिरभोज को गुर्जर स्वीकार कर लिया जाए तो गुर्जर विशुद्ध रूप से भारतीय हैं और यदि मिहिरकुल को गुर्जर माना जाए तो गुर्जर विदेशी सीथियन माने जाएंगे। यह दावा अन्य ऐतिहासिक साक्ष्यों से मेल नहीं खाता।

इस प्रकार आजकल कुछ लोग गुर्जरों के इतिहास को उलझा रहे हैं।

गुर्जर प्रदेश एवं गुजरात

क्या गुर्जर जनजाति है! इस विषय पर विचार करते समय हमें गुर्जर प्रदेश एवं गुजरात जैसे राजनीतिक क्षेत्रों अथवा इकाइयों पर पर भी विचार करना चाहिए।

सातवीं शताब्दी ईस्वी एवं उसके बाद के काल में राजस्थान के नागौर जिले में स्थित डीडवाना से लेकर दक्षिण में भड़ौंच तक का सारा प्रदेश गुर्जरों के अधीन था। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने ई.641 में भारत की यात्रा की। उसने अपनी पुस्तक में गुर्जर देश का वर्णन किया है और उसकी राजधानी भीनमाल होना बताया है।

ह्वेनसांग गुर्जर देश की परिधि 833 मील अर्थात् 1333 किलोमीटर बताता है। इससे अनुमान होता है कि गुर्जरात्रा बहुत बड़ा प्रदेश था और उसकी लम्बाई 300 मील (480 किलोमीटर) रही होगी।

ह्वेनसांग का बताया हुआ गुर्जर देश महाक्षत्रप रुद्रदामा के शक राज्य के अन्तर्गत था किंतु रुद्रदामा के गिरिनार के शक संवत् 72 (वि.सं. 207 या ई.150) से कुछ ही बाद के लेख में उसके अधीनस्थ देशों के जो नाम दिये हैं उनमें गुर्जर नाम नहीं है और उसके स्थान पर ‘श्वभ्र’ और ‘मरु’ नाम लिखे गये हैं जिससे प्रतीत होता है कि ई.150 के आसपास तक ‘गुर्जर देश’ नाम प्रसिद्धि में नहीं था।

शक क्षत्रपों का राज्य समाप्त होने के बाद के किसी कालखण्ड में जो क्षेत्र गुर्जर जाति के अधीन रहा होगा, उसके लिये गुर्जरात्रा शब्द प्रयुक्त हुआ होगा।

ह्वेनसांग के विवरण से हमें ह्वेनसांग के समय के महत्वपूर्ण मार्र्गाें के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। ह्वेनसांग सतलुज नदी से दक्षिण-पश्चिम की ओर बढ़ा तथा आठ सौ ‘ली’ चलने के बाद पो-लि-ये-ट-लो अर्थात् पारियात्र प्रदेश की ओर बढ़ा।

रैनण्ड ने इसे बैराठ माना है किन्तु इसके बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। यहाँ से वह पाँच सौ ली पूर्व में चलने पर मो-टू-लो अर्थात् मथुरा पहुंचा। अन्य मार्ग वलभी से एक हजार आठ सौ ली उत्तर में चलकर कुचेलो पहुंचा जिसकी राजधानी पिलो मोला थी। पिलोमोलो की संगति भीनमाल से की जाती है।

प्रतिहार राजा भोजदेव (प्रथम) के वि.सं. 200 अर्थात् ई.843 के दानपत्र में गुर्जरात्रा भूमि में आधुनिक डीडवाना (अब नागौर जिले में) को शामिल बताया है।

कालिंजर से मिले 9वीं शती के एक शिलालेख में जोधपुर राज्य के मंगलानक गांव को गुर्जरात्रा में शामिल बताया है। यह गांव डीडवाना से थोडे़ अन्तर पर ही है। इन दोनों शिलालेखों से तथा ह्वेनसांग के वर्णन से ज्ञात होता है कि सातवीं से नौंवी शताब्दी के बीच जोधपुर राज्य का उत्तर से दक्षिण तक का समस्त पूर्वी भाग गुर्जरात्रा में शामिल था।

इसी तरह दक्षिण और लाट के राठौड़ों तथा प्रतिहारों के बीच लड़ाइयों के वृत्तान्त से जाना जाता है कि गुर्जर देश की दक्षिणी सीमा लाट से जा मिली थी। कालान्तर में यह सीमा सिमटते-सिमटते जोधपुर राज्य के ठीक दक्षिण में आबू पर्वत के दूसरी ओर तक ही सिमट गई।

गुर्जर देश पर गुर्जरों का अधिकार कब हुआ और कब तक रहा, इस कालखण्ड की निश्चित तिथियाँ बता पाना संभव नहीं है किन्तु अनुमान लगाया जाता है कि शक क्षत्रपों का राज्य समाप्त होने के बाद यहाँ गुर्जरों का अधिकार हुआ होगा और ई.628 से पहले किसी समय में गुर्जरों की सत्ता नष्ट हो गई होगी क्योंकि ई.628 में भीनमाल पर चावड़ा वंश के राजा व्याघ्रमुख नाम अथवा उपाधि वाले राजा का शासन था।

भारतीय जनजाति!

क्या गुर्जर जनजाति है! डा. बी. एन. पुरी के अनुसार गुर्जर अत्यंत प्राचीन काल से अन्य जनजातीय कबीलों की तरह भारत में ही निवास करते थे।

के. एम. मुंशी के अनुसार गुर्जर शब्द जाति का वाचक न होकर देश विशेष का सूचक है। चूंकि भारत में ही गुर्जर प्रदेश था इसलिये गुर्जर एक भारतीय जाति है।

यह एक सामान्य प्रचलित धारणा रही है कि गुर्जर प्रदेश पर अधिकार कर लेने के कारण प्रतिहार शासक इतिहास में गुर्जर प्रतिहार के नाम से प्रसिद्ध हुए किंतु कुछ विद्वान यह दावा करते हैं कि गुर्जर और प्रतिहार अलग-अलग संज्ञाएं न होकर एक ही संज्ञा है। उनके अनुसार गुर्जर प्रतिहार ही आगे चलकर गुर्जर कहलाने लगे।

 बहुत से विद्वान गुर्जर प्रतिहारों की तरह बड़गूजरों को भी गुर्जर बताते हैं जबकि बड़गूजर जनजातीय कबीले से उत्पन्न न होकर मेवाड़ की राणा शाखा से उत्पन्न हुए हैं तथा बड़गूजरों एवं गूजरों में कोई सम्बन्ध नहीं है।

विदेशी मूल के हैं गुर्जर!

डॉ. हार्नले, वूलर, विसेन्ट स्मिथ तथा पी. सी. बागची आदि इतिहासकार गुर्जरों को श्वेत हूणों का वंशज मानते हैं। इन विद्वानों के अनुसार गुर्जर हूणों के साथ या उनके आने के शीघ्र पश्चात् भारत में आये तथा अधिक संख्या में राजपूताने में बस गये।

प्रसिद्ध इतिहासकार सर जेम्स काम्फेल एवं ए. एम. टी. जैक्सन आदि कई विद्वानों का विचार है कि मध्य ऐशिया में रहने वाले खजर (अथवा खर्जर) कबीलों से गुर्जरों की उत्पत्ति हुई। खजर श्वेत हूणों की एक श्रेणी थी। खजर लोगों की एक श्रेणी गोर्जियन थी, यह गोर्जियन ही गुर्जर कहलाये।

कनिंघम, गिर्यर्सन, डॉ. गुणानंद जुयाल तथा राहुल सांकृत्यायन आदि अनेकानेक विद्वानों ने इनका सम्बन्ध श्वेत हूणों, यूचियों, खर्जरों, सीथियनों, कुषाणों एवं शकों से जोड़ा है। केनेडी आदि इतिहासकारों के अनुसार गुर्जर सूर्योपासक हैं तथा ये किसी समय ईरान से भारत में आये।

कर्नल टॉड, भण्डारकर, तथा बी. ए. स्मिथ आदि इतिहासकारों का मानना है कि गुर्जर सीथियन जातियों से उत्पन्न हुए।

अनेक विद्वान गुर्जरों की उत्पत्ति मध्य एशिया, समरकंद, बलख, बुखारा, ताहिया, गोर्जिया, सीस्तान, खोटान तथा कैस्पियन सागर के निकटवर्ती स्थान से मानते हैं। डॉ. मोहियुद्दीन तथा डॉ. रामप्रसाद खटाना के अनुसार जॉर्जिया गुर्जरों का मूल स्थान था। ये अत्यंत प्राचीन काल में जॉर्जिया से चलकर छोटे-छोटे समूहों में भारत पहुंचे तथा उत्तर भारत के विभिन्न भागों में निवास करने लगे।

गौचर ही कहलाये गूजर!

कुछ विद्वानों के अनुसार गौचर शब्द से गुर्जर शब्द की उत्पत्ति हुई है। गुर्जर जाति हजारों वषों से गौ-चारण का कार्य करती रही है। आज भी उत्तर भारत में बसने वाले गुर्जरों का मुख्य धंधा कृषि एवं गौ-पालन ही है। जिस प्रकार चरवाहे रेबारी कहलाने लगे उसी प्रकार गौचर गुर्जर कहलाने लगे। गुर्जरों की उत्पत्ति के बारे में आज जितने भी मत प्रचलित हैं, उनमें यह मत सर्वाधिक उपयुक्त जान पड़ता है।

वृषभान कुमारी भी हैं गूजरी

गूजर शब्द भारतीय संस्कृति में अत्यंत प्राचीन काल से प्रचलित रहा है। ब्रज साहित्य में वृषभान कुमारी राधाजी को भी गूजरी कहकर पुकारा गया है। वस्तुतः दूध के व्यवसाय से जुड़ी हुई होने के कारण ही राधाजी को गूजरी कहा गया है। ब्रजसाहित्य में सुंदर स्त्री को भी गूजरी अथवा गुजरिया कहकर पुकारा गया है।

चौपड़ा समिति के अनुसार गुर्जर जनजाति नहीं

गुर्जर जाति लम्बे समय से अपने लिए जनजाति वर्ग में आरक्षण की मांग करती रही है। उनका कहना है कि हम एक जनजातीय समूह हैं। इसलिए हमें जनजाति माना जाए। 

गुर्जरों को जनजाति आरक्षण वर्ग में सम्मिलित किये जाने की मांग पर विचार करने के लिये राजस्थान सरकार ने जस्टिस जसराज चौपड़ा की अध्यक्षता में एक समिति गठित की।

इस समिति ने 17 नवम्बर 2007 को सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में कुल 294 पृष्ठ हैं जिनमें से 192 पृष्ठों में समिति ने अपनी अनुशंसाएं लिखीं। शेष 102 पृष्ठों में सम्बन्धित दस्तावेज और संलग्नक दिये। समिति ने 147 गांवों का दौरा करके गुर्जर और मीणा जाति के रहन-सहन और आर्थिक स्थिति का गहन अध्ययन किया जिससे कई महत्वपूर्ण और रोचक तथ्य सामने आये हैं।

समिति ने गुर्जरों को जनजातीय आरक्षण के योग्य नहीं माना तथा यह भी कहा कि राज्य में बसने वाली मीणा जाति सहित कई अन्य जातियां जिन्हें वर्तमान में जनजाति वर्ग में आरक्षण की सुविधा मिल रही है, वे जनजातीय वर्ग से आरक्षण की सुविधा पाने की योग्यता नहीं रखतीं।

समिति ने अनुशंसा की कि जनजाति वर्ग में आरक्षण देने के आधार की समीक्षा हो तथा इसे बदला जाये ताकि समाज के सभी वर्गों के साथ न्याय हो सके। रिपोर्ट मंे कहा गया कि गुर्जरों की एक तिहाई आबादी अर्थात् 8 लाख गुर्जर 13 तहसीलों में अत्यंत पिछड़े हाल में बसे हुए हैं।

सवाईमाधोपुर, अलवर, राजसमन्द सहित लगभग आधा दर्जन जिलों में बसे गुर्जरों में जनजातीय गुण भी पाये गये हैं। सवाईमाधोपुर जिले के खण्डार और डांग क्षेत्र के गुर्जर बहुल क्षेत्र आदिम श्रेणी के काफी निकट हैं। इसी जिले की बौंली तहसील और अलवर जिले के छिंद क्षेत्र में भी भौगोलिक एकाकीपन के लक्षण हैं।

उदयपुर संभाग में बसे ”हेरा का गुर्जर” वर्ग में जनजातियों के चिह्न मिले हैं। भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़ जिलों में जाति पंचायत का प्रचलन है। कोटा और बंूदी जिलों के देसी गुर्जर दूसरे क्षेत्रों से आये गुर्जरों से विवाह नहीं करते।

जस्टिस चौपड़ा समिति की रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में गुर्जरों के पास राज्य का 20 प्रतिशत पशुधन है तथा प्रति गुर्जर परिवार औसतन 6.45 बीघा जमीन उपलब्ध है जबकि प्रदेश में प्रति परिवार औसतन 6.67 बीघा जमीन उपलब्ध है।

गुर्जरों के पास 47 लाख 67 हजार 508 पशु हैं जिनमें से 18 लाख 28 हजार 837 बकरियां, 5 लाख 70 हजार 745 गाय एवं बैल, 13 लाख 21 हजार 465 भैंस, 10 लाख 26 हजार 803 भेड़, 16 हजार 655 ऊंट, 2 हजार 474 घोड़े तथा 529 गधे हैं।

जस्टिज जसराज चौपड़ा समिति ने माना है कि कृषि भूमि तथा पशुधन के इस विपुल स्वामित्व को देखते हुए राजस्थान के गुर्जर अधिक पिछड़ी स्थिति में नहीं हैं।

निष्कर्ष

इस प्रकार हम देखते हैं कि सामाजिक, ऐतिहासिक एवं आर्थिक आधार पर गुर्जर एक जनजाति नहीं है, गुर्जर भारत की प्राचीन काल की उच्च जाति है किंतु जब हम इस बात पर विचार करते हैं कि जिस आधार पर कुछ अन्य जातियों को जनजातीय वर्ग में सम्मिलित किया गया है तो हमें गुर्जरों की मांग न्यायसंगत जान पड़ती है।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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