राय पुरुषोत्तम अकबर का एक हिन्दू मंत्री था। उसने अकबर को हिन्दू धर्मग्रंथों का अध्ययन करवाया था। अकबर के मुसलमान मंत्री राय पुरुषोत्तम को पसंद नहीं करते थे और उसके विरुद्ध षड़यंत्र रचते रहते थे।
अकबर को सूचना मिली कि गुजरात की तरफ के कुछ बंदरगाहों पर यूरोपियन लोग हज पर जाने वाले मुसलमानों को तंग करते हैं तथा उनसे जबर्दस्ती कर वसूल करते हैं। इन बंदरगाहों पर पुर्तगाली एवं डच लोगों ने कब्जा कर रखा था। अकबर ने इन फिरंगियों के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने का निश्चय किया।
फरवरी 1580 में अकबर ने कुतुबुद्दीन खाँ नामक एक अमीर को इन बंदरगाहों पर चढ़ाई करके यूरापियन लोगों को दण्डित करने के आदेश दिए। गुजरात एवं मालवा की तरफ के अमीरों को आदेश दिए गए कि वे कुतुबुद्दीन खाँ की सहायता के लिए सेनाएं उपलब्ध करवाएं।
इस अभियान में दक्षिण भारत के शासकों द्वारा बाधा उत्पन्न किए जाने की आशंका थी। इसलिए अकबर ने दक्षिण की तरफ के शासकों को आदेश भिजवाए कि शाही सेनाएं हज पर जाने वाले लोगों को तंग करने वाले फिरंगियों के विरुद्ध भेजी जा रही हैं। अतः दक्षिण के शासक इस अवसर का लाभ उठाएं तथा शाही सेनाओं की मदद करके शहंशाह का विश्वास जीतने का प्रयास करें।
ई.1580 में अकबर ने अपनी सल्तनत में प्रशासनिक फेर बदल किया। उसने समूची सल्तनत को बारह सरकारों अथवा सूबों में विभाजित किया और प्रत्येक भाग पर एक सिपहसालार, एक दीवान, एक बख्शी, एक मीर अदल, एक सदर, एक कोतवाल, एक मीर बहर ओर वाका-नवीस नियुक्त किए।
नई सरकारों अथवा सूबों की घोषणा होते ही अकबर ने बहुत से प्रांतीय अधिकारियों के स्थानांतरण किए और बहुत से नवीन प्रांतीय अधिकारी नियुक्त किए। मासूम खाँ फरनखुदी को सरकार गाजी का तथा तारसेन मुहम्मद खाँ को सरकार जौनपुर का हाकिम अथवा सूबेदार बनाया गया। मासूम खाँ काबुली को उड़ीसा सरकार का सूबेदार नियुक्त किया गया।
मासूम खाँ फरनखुदी ने बिहार पहुंचकर बगावत कर दी। उसकी बगावत से पूरी मुगलिया सल्तनत को बेहद आश्चर्य हुआ क्योंकि वह अकबर का नजदीकी माना जाता था। अकबर ने राय पुरुषोत्तमदास को बिहार के विद्रोह का दमन करने भेजा।
पाठकों को स्मरण होगा कि अकबर ने पुरुषोत्तमदास नामक एक ब्राह्मण तथा देवी नामक एक स्त्री को लम्बे समय तक अपने महल में आमंत्रित करके उनसे हिन्दू धर्म का मर्म जानने का प्रयास किया था। बाद में अकबर पुरुषोत्तमदास से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि अकबर ने पुरुषोत्तम को राय की उपाधि देकर अपना मंत्री बना लिया।
जब राय पुरुषोत्तमदास गाजीपुर पहुंचा तो मासूम खाँ फरनखुदी पुरुषोत्तम से मिलने आया। उसने पुरुषोत्तम से कहा कि आप चौसा की थाह के पास पहुंचें, मैं बागियों को पकड़कर आपके सुपुर्द कर दूंगा। पुरुषोत्तम ने मासूम खाँ फरनखुदी की बातों पर विश्वास कर लिया तथा उसके कहने में आकर चौसा की थाह के पास पहुंचा। उस समय पुरुषोत्तम के पास बहुत कम सेना थी। मासूम खाँ फरनखुदी ने अरब बहादुर खाँ को पुरुषोत्तम को छल से मारने के लिए भेज दिया।
जिस समय राय पुरुषोत्तम गंगाजी में नहाकर पूजा कर रहा था, तब अरब बहादुर खाँ ने अचानक ही पुरुषोत्तम पर वार कर दिया जिससे पुरुषोत्तम बुरी तरह घायल होकर वहीं पर गिर पड़ा। पुरुषोत्तम के साथियों ने किसी तरह पुरुषोत्तम को अरब बहादुर खाँ से बचाया। उस समय तक पुरुषोत्तम बुरी तरह घायल हो चुका था। पुरुषोत्तम के सेवक पुरुषोत्तम को लेकर गाजीपुर चले गए जहाँ पुरुषोत्तम का सैनिक शिविर लगा हुआ था।
यहीं पर दो दिन बाद राय पुरुषोत्तम का निधन हो गया। इस प्रकार धर्म का मर्मज्ञ पुरुषोत्तम मुगलिया राजनीति की खूनी चौसर पर बलि चढ़ गया।
किसी भी तत्कालीन लेखक ने इस बात पर प्रकाश नहीं डाला है कि अकबर के सेनापतियों ने राय पुरुषोत्तम को छल से क्यों मारा किंतु हमें राय पुरुषोत्तम के सम्बन्ध में इस तथ्य का स्मरण करना चाहिए कि इसी व्यक्ति ने लम्बे समय तक अकबर के महल में जाकर अकबर को हिन्दू धर्म के बारे में बहुत सी जानकारियां दी थीं जिसके बाद अकबर ने सभी धर्मों की अच्छाइयों को अनुभव किया था और यह घोषणा की थी कि अच्छाई किसी एक मजहब तक सीमित नहीं है। सभी धर्मों में अच्छी बातें तथा अच्छे लोग हैं।
संभवतः यह बात मुल्ला-मौलवियों एवं उलेमाओं को सहन नहीं हुई थी, उन्हें लगता था कि यदि जनता अकबर की इस बात को मानेगी तो मुल्ला-मौलवियों एवं उलेमाओं का वर्चस्व समाप्त हो जाएगा। अकबर के दरबार में उस समय जिस तरह की परिस्थितियां चल रही थीं, उनके आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि राय पुरुषोत्तम की मौत के पीछे यही कारण रहा हो!
उधर अकबर के दरबारियों, सेनापतियों एवं मुल्ला-मौलवियों में अकबर के विरुद्ध नाराजगी बढ़ती जा रही थी और इधर अकबर के भीतर जीव-दया के भाव उत्पन्न होने लगे थे। अकबर के दरबारी लेखक अबुल फजल ने लिखा है कि एक दिन अकबर ने सोचा कि वर्ष में एक दिन चूहे नहीं मारने चाहिए। एक दिन बैलों को खूब खिलाना-पिलाना चाहिए। उन्हें मारने की बजाय उन्हें किसानों को दे देना चाहिए।
एक दिन चीते नहीं पकड़ने चाहिए और न ही चीते के द्वारा शिकार करना चाहिए। एक दिन न खरगोश खाना चाहिए, न उसका शिकार करना चाहिए। एक दिन मछलियों को भी नहीं मारना चाहिए, न ही उस दिन मछलियों को खाना चाहिए। एक दिन घोड़ों को नहीं खाना चाहिए, न मारना चाहिए। एक दिन सांपों को भी नहीं मारना चाहिए। एक दिनों भेड़ों को भी नहीं मारना चाहिए और न ही उस दिन भेड़ों को खाना चाहिए। बंदरों के विषय में भी ऐसा ही करना चाहिए। जो बंदर पकड़ लिए गए हैं, उन्हें छोड़ देना चाहिए।
एक दिन मुर्गे नहीं खाने चाहिए, न उन्हें लड़ाना चाहिए। एक दिन शिकार में कुत्तों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। जो लोग कुत्ते पालते हैं, उन्हें अपने कुत्तों का ढंग से ध्यान रखना चाहिए। एक दिन सुअरों को क्षति नहीं पहुंचानी चाहिए। इसी प्रकार वर्ष के प्रत्येक मास में एक न एक अच्छा काम अवश्य करना चाहिए।
अकबर ने प्रत्येक महीने में किए जाने वाले कामों की एक सूची अलग से तैयार करवाई। उसने आदेश जारी किए कि मुहर्रम के महीने में प्राणियों को नहीं मारना चाहिए। सफर महीने में कैदियों को छोड़ देना चाहिए। रवि-उल-अव्वल में 30 चुने हुए निर्धनों को भेंट देनी चाहिए। रवि-उल-आखिर में शरीर को शुद्ध करना चाहिए। विलास नहीं करना चाहिए। जमाद-उल-अव्वल महीने में बढ़िया कपड़े या रेशम नहीं पहनना चाहिए।
जमादिल आदिर में चमड़े का उपयोग नहीं करना चाहिए। रजब मास में अपनी आयु के 40 आदमियों की सहायता करनी चाहिए। शाबान महीने में किसी पर अत्याचार नहीं करना चाहिए और न किसी को करने देना चाहिए। रमजान महीने में 30 गरीब आदमियों को कपड़ा देना चाहिए और भोजन करवाना चाहिए।
शव्वाल महीने में प्रतिदिन अल्लाह के 1000 नाम लेने चाहिए। जिलकदा महीने में प्रतिदिन दूसरे धर्म वाले लोगों को भेंट देनी चाहिए। जिलहज्जा महीने में उपयोगी मकान बनवाने चाहिए। यहाँ उपयोगी मकान से आशय सराय, प्याऊ तथा स्कूल आदि से है।