रसखान पठान की बहिन दीवानी जिसे मुगलानी ताज भी कहा जाता था, ब्रजक्षेत्र में रहकर भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति के पद रचा करती थी। उसने अपने एक पद में लिखा था- हों तो मुगलानी हिंदुआनी व्है रहूंगी मैं! जब अहमदनगर की शहजादी चांद बीबी भी ताज के मार्ग पर चल पड़ी तो मुसलमानों ने चांद बीबी की हत्या कर दी!
जब पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर दिशाओं में भारत के विशाल क्षेत्र अकबर के अधीन हो गए तब अकबर ने अपनी सल्तनत के दक्षिणी छोर पर स्थित पांच शिया राज्यों को निगलने की तैयारी आरम्भ कर दी।
बहुत से इतिहासकारों ने लिखा है कि अकबर ने दक्षिण के राज्यों के साथ शान्ति-पूर्वक समझौता करने का प्रयत्न किया। ई.1591 में उसने दक्षिण के चार प्रधान राज्यों- अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुण्डा तथा खानदेश के पास प्रस्ताव भेजा कि वे अकबर की अधीनता स्वीकार कर लें।
खानदेश के शासक ने अकबर के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया किंतु शेष तीनों राज्यों ने अकबर का प्रस्ताव ठुकरा दिया। इसलिये अकबर को दक्षिण के राज्यों पर आक्रमण करने का निश्चय करना पड़ा।
अकबर ने सबसे पहले अहमदनगर राज्य पर आक्रमण करने का निश्चय किया। इस अभियान की चर्चा करने से पहले हमें अहमदनगर की राजनीतिक स्थिति पर चर्चा करनी होगी।
इन दिनों अहमदनगर अपने अमीरों की आपसी लड़ाई से अत्यंत जर्जर हो चला था। अहमदनगर के शासक बुरहान निजामशाह की मृत्यु के बाद उसका बेटा इब्राहीम निजामशाह अहमदनगर के तख्त पर बैठा। मात्र चार माह बाद ही वह बीजापुर के बादशाह आदिल खाँ द्वारा मार दिया गया।
उस समय इब्राहीम निजामशाह का बेटा बहादुर निजामशाह मात्र डेढ़ वर्ष का था। अतः इब्राहीम की बहिन चाँद बीबी राजकाज चलाने लगी किंतु मुस्लिम अमीरों को औरत का शासन स्वीकार नहीं हुआ। वे चाँद बीबी के विरुद्ध दो धड़ों में विभक्त हो गये।
पहला धड़ा दक्खिनियों का था जिनका नेता मियाँ मंझू था। दूसरा धड़ा हब्शियों का था जिनका नेता इखलास खाँ था। दक्खिनियों के नेता मियाँ मंझू ने अहमदनगर में घुसकर डेढ़ साल के शासक बहादुर निजामशाह को उसकी फूफी चाँद बीबी से छीनकर जुनेर के किले में भेज दिया और दौलताबाद में कैद अहमदशाह को बुलाकर तख्त पर बैठा दिया।
उस समय तो हब्शी भी मियाँ मंझू से सहमत हो गये किंतु बाद में जब उनके सरदार इखलास खाँ को पता लगा कि अहमदशाह शाही परिवार में से नहीं है तो हब्शियों ने अहमदशाह के स्थान पर दुबारा से डेढ़ साल के बहादुरशाह को अहमदनगर का सुल्तान बनाने के लिये अहमदनगर घेर लिया और जुनेर के किलेदार से किले में कैद शिशु सुल्तान बहादुरशाह को मांगा।
जुनेर का किलेदार मियाँ मंझू का विश्वस्त आदमी था। उसने बहादुरशाह हब्शियों को सौंपने से इन्कार कर दिया। जब हब्शी किसी भी तरह बहादुर निजामशाह को नहीं पा सके तो उन्होंने अहमदनगर के बाजार से मोतीशाह नामक एक लड़के को पकड़ लिया और घोषणा की कि यह लड़का निजाम के परिवार से है, अतः इसे बादशाह बनाया जाता है।
कुछ दक्खिनी सरदार भी हब्शियों से आ मिले। इस प्रकार दस-बारह हजार हब्शी और दक्खिनी घुड़सवार मोतीशाह के साथ हो गये।
इस पर मियाँ मंझू ने गुजरात से शहजादी मुराद को अहमदनगर बुलवाया जो बुरहान निजामशाह के परिवार से थी। अभी शहजादी मार्ग में ही थी कि हब्शियों में जागीरों के बंटवारे को लेकर आपस में तलवारें चल गईं। बहुत से हब्शी आपस में ही कटकर मर गये।
दक्खिनी सरदार, हब्शियों की यह हालत देखकर फिर से मियाँ मंझू के पास चले गये। अपने आदमियों को फिर से अपने पास आया देखकर मियाँ मंझू ने हब्शियों पर हमला कर दिया और बहुत से हब्शी मार गिराये। शेष हब्शी जान बचाकर भाग खड़े हुए।
हब्शियों से निबटकर मियाँ मंझू ने डेढ़ साल के बादशाह बहादुर निजामशाह की फूफी चाँद बीबी से निबटने की योजना निर्धारित की जो इस समय बहादुरशाह की संरक्षक की हैसियत से अहमदनगर पर शासन कर रही थी। उसी समय मियाँ मंझू ने सुना कि मुगल शहजादा मुराद और खानखाना अब्दुर्रहीम विशाल सेना लेकर अहमदनगर की ओर बढ़ रहे हैं।
मंझू जानता था कि वह मुगल सेना के सामने नहीं टिक सकेगा। इसलिये उसने अन्सार खाँ को खजानों तथा चाँद बीबी की चौकसी पर नियुक्त किया तथा स्वयं बीजापुर, बरार और गोलकुण्डा से सहायता लेने के बहाने से अहमदनगर से बाहर निकल गया।
मंझू के अहमदनगर से बाहर निकलते ही चाँद बीबी ने मुरतिजा निजामशाह के धाभाई मुहम्मद खाँ के साथ मिलकर अन्सार खाँ को मार डाला और किले में डेढ़ साल के बालक बहादुर निजामशाह की दुहाई फेर दी।
कहा जाता है कि एक दिन चांद बीबी अपनी पालकी में सवार होकर अहमदनगर के बाजार से गुजर रही थी, तब अचानक ही कहारों ने पालकी बीच मार्ग में खड़ी कर दी। इस पर चांद बीबी ने कहारों से पूछा कि तुमने पालकी क्यों रोकी है?
कहारों ने जवाब दिया कि हुजूर सामने से छोटे सरकार की पालकी आ रही है। उसे देखने के लिये सैंकड़ों बाशिंदे रास्ते के दोनों ओर जमा हैं। जब छोटे सरकार की सवारी निकल जायेगी तब हम लोग आगे बढ़ पाएंगे।
चांद बीबी ने आश्चर्य-चकित होकर पूछा कि हमारी सल्तनत में ये छोटे सरकार कौन हैं?’
पालकी के आगे चलने वाले घुड़सवार सिपाहियों ने चांद बीबी को बताया कि मथुरा के राजा किसनजी की सवारी जा रही है जिन्हें हिन्दू लोग फरिश्ता मानते हैं। उन्हीं को ये कहार छोटे सरकार कह रहे हैं। आज देवझूलनी ग्यारस है, इसलिए हिन्दू लोग किसनजी के बुत को तालाब में नहलाने के लिए ले जा रहे हैं।
चांद बीबी ने उन कहारों से पूछा कि उन्होंने हिन्दुओं के फरिश्ते किसनजी को छोटे सरकार क्यों कहा?
इस पर एक कहार ने जवाब दिया कि आप बड़ी सरकार हैं। इसलिए हमने मथुरा के राजा किसनजी को छोटे सरकार कहा। तब तक किसनजी की सवारी बिल्कुल निकट आ गई तथा उसके साथ बज रहे ढोल-बाजों और सामूहिक स्वरों में गाये जाने वाले कीर्तन की आवाजें भी स्पष्ट हो गईं।
पालकी के पर्दे के भीतर बैठी चाँद उस कीर्तन को सुनती रही। ऐसा संगीत उसने आज से पहले कभी नहीं सुना था। शब्द भी क्या थे जैसे आदमियों के कण्ठों से नहीं, आसमानी फरिश्तों के कण्ठों से निकल रहे हों! लगता था जैसे किसी ने शब्दों में सुगंध भर दी थी जिनकी महक से चारों ओर का वातावरण महकने लगा था!
कीर्तन सुनकर चाँद आपे में नहीं रही। वह अचानक पालकी का पर्दा उठाकर बाहर निकल आई। उसके शरीर पर बुर्का नहीं था। एक बिजली सी चमकी और लगा जैसे दिन में ही चाँद निकल आया।
देखने वालों की आँखें चुंधिया गयीं। पूनम का जो चाँद आसमान के रहस्यमयी पर्दों में से निकलता था आज पालकी के पर्दों में से प्रकट हुआ। कहार, चोबदार और घुड़सवार हड़बड़ाकर एक दूसरे का मुँह देखने लगे।
चांद बीबी अपनी शाही मर्यादा भुलाकर किसनजी की सवारी की तरफ दौड़ पड़ी। चोबदार और दूसरे सैनिक सुलताना के पीछे दौड़े। चाँद अपने होश में नहीं थी।
वह बदहवासों की तरह भगवान कृष्ण की सवारी की तरफ भागी। आगे-आगे कीमती कपड़ों में सजी-धजी एक मुस्लिम औरत और उसके पीछे सिपाहियों और चोबदारों को इस तरह भागकर आते हुए देख भगवान कृष्ण की शोभायात्रा में चल रहे लोग डरकर पीछे हट गये।
चाँद आगे बढ़ती रही और मार्ग स्वतः खाली होता गया! गाजे-बाजे बंद हो गये और भगवान की सवारी रुक गयी।
ठीक भगवान के झूले के सामने जाकर चाँद खड़ी हो गयी और आँखें फाड़-फाड़ कर भगवान के विग्रह को निहारने लगी। उसने पलक तक नहीं गिरायी। चाँद को लगा कि किसनजी का बुत उसे अपनी ओर खींच रहा है। उसके मन में विचारों की आंधी उमड़ पड़ी।
क्या यही है मुगलानी ताज का वह साहब सिरताज! नन्दजू का पूत? जिसने रुक्मनी और द्रौपदी की लाज रखी? मैं भी तो एक औरत हूँ, क्या यह मेरी लाज रखेगा? क्या सचमुच ही यह कोई आसमानी फरिश्ता है? ऐसी क्या बात है इसमें? यह मुझे अपनी ओर क्यों खींच रहा है?
क्या बुत किसी इंसान को खींच सकता है? क्या इसमें वाकई कोई आसमानी ताकत है?
चांद के मुख से अचानक निकल पड़ा- ‘हूँ तो मुगलानी हिंदुआनी व्है रहूंगी मैं!’
पाठकों को बताना समीचीन होगा कि रसखान पठान की बहिन दीवानी जिसे मुगलानी ताज भी कहा जाता था, ब्रजक्षेत्र में रहकर भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति के पद रचा करती थी। उसी के एक पद को लक्ष्य करके चांद ने कहा- हूँ तो मुगलानी हिंदुआनी व्है रहूंगी मैं!
जब बहुत देर तक चाँद सुलताना बुत बनी हुई, अपलक होकर भगवान की प्रतिमा को निहारती रही तो उसके सिपाहियों में बेचैनी फैल गयी। उन्होंने साहस करके पूछा- ‘यदि सुलताना का हुकुम हो तो पालकी यहीं ले आयें?’
अंगरक्षक दल के नायक की बात सुनकर सुलताना जैसे किसी अदृश्य लोक से निकल कर फिर से धरती पर आयी। क्या कमाल की बात है? अभी-अभी तो यहाँ कोई नहीं था। कहाँ चले गये थे ये लोग और फिर अचानक कहाँ से आ गये?
किसी से कुछ न कहकर चाँद फिर से पालकी की ओर मुड़ी। तब तक कहार पालकी लेकर वहीं पहुँच चुके थे। भक्तों ने चाहा कि जब सुलताना की पालकी निकल जाये तो भगवान की सवारी को आगे बढ़ायें किंतु सुलताना ने कहा कि ये बड़े सरकार हैं, पहले इनकी सवारी आगे बढ़ेगी उसके बाद छोटे सरकार यानि हमारी सवारी जायेगी।
पूरा आकाश भगवान मुरली मनोहर और सुलताना बीबी की जय-जयकार से गूंज उठा। भक्तों ने अबीर गुलाल और पुष्पों की वर्षा करके उस क्षण को सदैव के लिये स्मरणीय बना दिया। चांद के कानों में बार-बार हिंदुआनी व्है रहूंगी मैं गूंजता रहा।
आनंद में मग्न वे लोग नहीं जानते थे कि चांद के देश को ग्रहण लगाने के लिए अकबर रूपी राहू तेजी से बढ़ा चला आ रहा था!