Sunday, September 8, 2024
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सत्याग्रह का मार्ग

सरदार पटेल ने सिद्ध कर दिया कि सत्याग्रह का मार्ग प्रभावशाली है!

मोहनदास कर्मचंद गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में प्रिटोरिया सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन किया था जो बुरी तरह विफल रहा था। सत्याग्रह आंदोलन को गांधीजी सत्याग्रह का मार्ग कहते थे।

गांधीजी ने भारत में भी सत्याग्रह आंदोलन का प्रयोग दोहराना चाहा। कांग्रेसी नेता सत्याग्रह आंदोलन का पिलपिला और लिजलिजा आंदोलन मानती थी। उनका मानना था कि सत्याग्रह जैसी बातें तो नरमपंथी कांग्रेस के दौर में अंग्रेजों के समक्ष प्रस्तुत की जानी वाली अर्जियों एवं प्रार्थनाओं से भी अधिक खोखली थीं किंतु गांधीजी सत्याग्रह का प्रयोग करने की जिद ठाने हुए थे। गांधीजी के आग्रह पर सरदार पटेल ने गुजरात के खेड़ा आंदोलन में सत्याग्रह का प्रयोग किया।

खेड़ा आंदोलन चल ही रहा था कि गांधीजी को फिर से चम्पारन जाना पड़ गया। इस कारण नेतृत्व का सम्पूर्ण दायित्व वल्लभभाई पर आ गया। वल्लभभाई ने इस दायित्व को जी-जान से निभाया। वे गांव-गांव जाकर किसानों का मनोबल बढ़ाते कि वे सरकार के अत्याचारों से न घबरायें तथा उसे लगान न दें। आंदोलन लम्बा खिंचा किंतु वल्लभभाई ने उसे बीच में टूटने नहीं दिया।

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जब अंग्रेजों की सरकार ने देखा कि गांव-गांव उसके विरुद्ध वातावरण बन रहा है तो उसने घोषणा की कि जो किसान लगान देने की स्थिति में नहीं हैं, उनका लगान माफ किया जायेगा किंतु जो किसान लगान दे सकते हैं, उनसे लगान लिया जायेगा। इस घोषणा को स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं थी इसलिये आंदोलन बंद कर दिया गया। खेड़ा सत्याग्रह दो कारणों से महत्त्वपूर्ण माना जाता है। एक तो यह सिद्ध हो गया कि सत्याग्रह का मार्ग प्रभावशाली है जिससे सरकार को झुकाया जा सकता है। दूसरा महत्त्व इस बात में था कि इस आंदोलन ने वल्लभभाई को राष्ट्रीय नेता बना दिया, यद्यपि यह सरदार पटेल की पहली ही सफलता थी। खेड़ा सत्याग्रह का समापन समारोह नाडियाद में 29 जून 1918 को आयोजित किया गया जिसमें गांधीजी भी आये।

इस अवसर पर एक विशाल जुलूस निकाला गया तथा एक जनसभा आयोजित की गई। जुलूस पर पूरे रास्ते में नाडियाद के नागरिकों ने भारी पुष्प वर्षा की तथा जुलूस निकालने वालों का स्वागत किया। जनसभा में गांधीजी को एक सम्मान पत्र भेंट किया गया।

गांधीजी ने इस अवसर पर एक भाषण दिया जिसमें उन्होंने इस आंदोलन की सफलता का समस्त श्रेय वल्लभभाई को प्रदान किया। इस आंदोलन की सफलता के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल गांधीजी के पक्के चेले बन गए। एक धीर-गंभीर पुरुष जो सब तरह के ढोंग, पाखण्ड में दिखावे को नकारता था, आंखें मूंदकर गांधीजी का भक्त बन गया। आगे चलकर पटेल को और पूरे देश को इस अंधभक्ति का खामियाजा भुगतना पड़ा जब गुरु ने चेले को प्रधानमंत्री की कुर्सी से वंचित कर दिया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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