Friday, December 27, 2024
spot_img

133. बेहोशी

– ‘बेटी जाना!’

– ‘हाँ अब्बा हुजूर।’

– ‘देखो तो कमरे में कितना अंधेरा घिर आया है, जरा रौशनी करो बेटी।’  खानखाना ने छटपटा कर कहा।

आज पूरे चार दिन बाद वह होश में आया था। जाने कहाँ-कहाँ से ढूंढ कर लायी थी जाना उसे। तीन दिनों की भागम भाग के बाद खानखाना दिल्ली के बाहर जंगलों में बेसुध पड़ा हुआ मिला था। तब से हकीम का इलाज चल रहा था किंतु उसकी बेहोशी टूटती ही नहीं थी। आज अचानक शाम के समय खानखाना ने आँखें खोलीं।

– ‘यह शमां आपके पलंग के पास ही रौशन है पिताजी।’ जाना वृद्ध पिता की यह दशा देखकर चौंक पड़ी।

– ‘हाँ-हाँ! यह शमां और यह फानूस भी तो रौशन है। जाने क्यों मुझे दिखायी नहीं दिया लेकिन वह कहाँ गया?’

– ‘वह कौन अब्बा हुजूर?’

– ‘वह जो बालक बन कर मेरे साथ खेल रहा था?’

– ‘कौन अब्बा हुजूर, कौन खेल रहा था बालक बनकर?’

– ‘अरे वही, मधुसूदन! देवकी नंदन…………..!’ अचानक ही खानखाना अपनी बात अधूरी छोड़कर छत की ओर देखकर चिल्ला उठता है- ‘मेरी ओर देखो परमात्मन्! हे कृपा निधान! फिर से बोलो दयानिधान! मुझे इस तरह जंगल में छोड़कर कहाँ जा छिपे हो? कब से तो आपको ढूंढ रहा हूँ!’ खानखाना ने अत्यंत बेचैन होकर कहा तो जाना बाप के सीने पर झुक कर उसकी मालिश करने लगी। खानखाना बेहोश हो गया।

कुछ ही देर में खानखाना को फिर होश आया। उसने देखा कि न तो जंगल है और न करील के वे विशाल कुंज। मुरली मनोहर का कोई पता नहीं है। जाने कब तक वह बूढे़ रहीम के साथ आँख-मिचौनी खेलता रहा था और अचानक ही जाने कहाँ जाकर गायब हो गया था। मुरली मनोहर के स्थान पर जाना उसके पास थी।

– ‘जाना!’

– ‘हाँ अब्बा हुजूर।’

– ‘हम कहाँ हैं बेटी?’

– ‘आप बाबा हुजूर बैरामखाँ वाली हवेली में हैं।’

– ‘हम यहाँ कब आये?’

– ‘आप आये नहीं अब्बा हुजूर! आपको लाया गया है।’

– ‘कब?’

– ‘आज हवेली में आये हुए आपको चार दिन हो गये।’

– ‘हम कहाँ थे?’

– ‘आप दिल्ली के बाहर जंगलों में बेहोश पड़े हुए थे। आप वहाँ क्यों गये थे अब्बा हुजूर?’

– ‘वही तो हम सोच रहे हैं बेटी कि वह हमें मथुरा से दिल्ली की सरहद तक तो लाया किंतु जंगल में ही छोड़कर गायब क्यों हो गया?’

– ‘कौन कहाँ पहुँचा कर गायब हो गया?’

– ‘तू नहीं जानेगी।’

– ‘कुछ तो बताइये अब्बा हुजूर, आप अचानक कहाँ चले गये थे और फिर पूरे तीन दिन बाद आप जंगल में बेहोशी की हालत में क्यों मिले? किसने की आपकी ऐसी दशा?’

– ‘कुछ खाने को दो जाना। बहुत भूख लग रही है। उसने हमें भगा-भगा कर थका ही डाला।’ खानखाना ने जाना की बातों का उत्तर न देकर कहा।

जाना खानखाना के लिये कुछ खाने को लाने के लिये चली गयी। जब वह अपने हाथों में समां के चावल और दूध लेकर लौटी तो उसने देखा वृद्ध पिता फिर से बेसुध हो गया है। उसने चावल एक ओर रखकर अपना माथा पीट लिया।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source