Tuesday, December 3, 2024
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मुल्ला बदायूनी के आरोप (153)

अकबर पर मुल्ला बदायूनी के आरोपों की सूची लम्बी है। मुल्ला लिखता है कि अकबर के हरम की औरतों को खुश करने के लिए लोग अपने नाम बदलने लगे!

अकबर के दरबारी इमाम मुल्ला अब्दुल कादिर बदायूनी ने अपनी पुस्तक मुंतखब उत तवारीख में अकबर पर आरोप लगाए हैं कि उसने इस्लाम के सिद्धांतों के विरुद्ध जाकर कार्य करना आरम्भ कर दिया तथा विधर्मियों की बहुत सी बातें स्वीकार कर लीं। मुल्ला बदायूनी ने अकबर पर कुछ ऐसे गंभीर आरोप भी लगाए हैं जिनका उल्लेख यहाँ नहीं किया जा सकता!

कहा नहीं जा सकता कि मुल्ला बदायूनी की पुस्तक अपनी जगह कितनी ठीक है किंतु मानव मन की भावनाएं सबसे ऊपर हैं। संसार के बहुत से मजहबों में इस बात की छूट है कि उनके मजहब में कही गई बातों की आलोचना की जा सकती है और उन आलोचनाओं का सार्वजनिक रूप से उल्लेख भी किया जा सकता है किंतु कुछ मजहबों में ऐसा करने की छूट नहीं है।

वैसे भी मजहबी मामलों में तर्क की बजाय भावनाएं अधिक काम करती हैं। यही कारण है कि मुल्ला बदायूनी ने अकबर की राजसभा में मजहब के सम्बन्ध में होने वाली जिन बातों का उल्लेख किया है, उनका उल्लेख हम यहाँ नहीं कर सकते।

हिजरी 990 अर्थात् ई.1852 में अकबर ने नया मजहब चलाने का कार्यक्रम बनाया। इसके लिए अकबर ने बुद्धिमान लोगों के साथ बैठकें आयोजित कीं। मुल्ला बदायूनी ने लिखा है कि ऐसी ही एक बैठक में राजा भगवान दास ने अकबर से पूछा कि मान लो कि आपकी बात मान ली जाए और यह स्वीकार कर लिया जाए कि हिन्दू धर्म एवं मुसलमान धर्म बुरे हैं तो आप हमें बताएं कि आपका यह नया पंथ क्या है, उसकी राय क्या है ताकि मैं विश्वास कर सकूं?

मुल्ला बदायूनी लिखता है कि शहंशाह ने कुछ सोचा तथा राजा भगवान दास को नए धर्म के लिए राजी करना छोड़ दिया किंतु हमारे ख्याति प्राप्त धर्म को बदलने का निर्णय चालू रहा। इसी समय शहंशाह ने काजी जलाल सुल्तान एवं ख्वाजगी फतह उल्लाह बक्शी जो शिया धड़े के विरोधी थे, उन्हें अपनी सल्तनत से निकालकर दक्षिण की तरफ भेज दिया। उन्होंने एक फरमान में पांच लाख टंकों की जालसाजी की थी।

शहंशाह का विचार था कि दक्षिणी राज्यों के शासक काजी जलाल सुल्तान एवं ख्वाजगी फतह उल्लाह बक्शी को यातनाएं देकर मार डालेंगे किंतु इन लोगों ने दक्षिण भारत के राज्यों में जाकर वहाँ के शासकों को यह समझा दिया कि चूंकि हमने अकबर की इस्लाम विरोधी बातों का विरोध किया था, इसलिए अकबर ने हमें दण्डित किया है। दक्षिण के लोगों ने इन लोगों की बातों का विश्वास कर लिया तथा उन्हें बड़े आदर के साथ अपने राज्यों में रखा।

जब अकबर ने काजी जलाल सुल्तान को दिल्ली से निकाल दिया तो अकबर ने उसकी जगह काजी अब्दुस्सामी को दिल्ली का काजी-उल-कुजात नियुक्त कर दिया। मुल्ला बदायूनी ने नए काजी की बुराइयां करते हुए लिखा है कि वह ट्रांसजोनिया (ट्रांसऑक्सियाना) के मियांकाल कबीले का था। वह शतरंज का बड़ा खिलाड़ी था।

उसकी दाढ़ी सफेद गुलाब की तरह एक गज लम्बी थी। उसमें बर्तन धोने वाला शैतानीपन जन्मजात था। ट्रांसजोनिया के मियांकाल कबीले में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार को कर्तव्य का हिस्सा ही माना जाता था। कर्ज से लाभ कमाना और न्यायिक आदेश को सकारात्मक आदेश माना जाता था। उस कबीले में धर्म ईमान नहीं बचा था।

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मुल्ला बदायूनी लिखता है कि उन दिनों पांच समय की नमाज के लिए अजान लगाना भी बंद हो गया था। अहमद, मुहम्मद, मुस्तफा आदि नाम शहंशाह के लिए विरोधी हो गए थे। काफिर लोग जो कि अकबर के हरम में थे और हरम के बाहर भी, हरम की बेगमों को प्रसन्न करने के लिए अपने नाम बदलने लगे और अपने नाम यार मुहम्मद, मुहम्मद खाँ आदि रखने लगे। मुल्ला बदायूनी लिखता है कि ऐसे दुष्टों को पवित्र पैगम्बर के नाम से पुकारा जाना वास्तव में गलत था।

मुंतखब उत तवारीख के विवरण से स्पष्ट है कि मुल्ला बदायूनी का यह वर्णन परस्पर विरोधाभासी है। क्योंकि एक तरफ वह लिखता है कि मुहम्मद नाम अकबर के लिए विरोधी हो गया था और दूसरी तरफ वह लिखता है कि बहुत से लोग अकबर के हरम की बेगमों को प्रसन्न करने के लिए अपने नाम यार मुहम्मद और मुहम्मद खाँ रख रहे थे! मुल्ला लिखता है कि नाम बदलने की यह आग समूचे आगरा में फैल गई जो बड़े घरों से छोटे घरों तक होती हुई कब्रों तक चली गई।

अकबर की बेगमों को खुश करने के लिए अपना नाम बदलने वालों पर लानत भेजते हुए मुल्ला ने लिखा है-

तुम ऐ आदमी! शब्दों को चाहने वाले,

बेकार की मुट्ठी भर चीजों के लिए

अल्लाह का ईमान बर्बाद कर देते हो

विश्वास करके कुतर्क में अपने

कथनों में क्या कमजोरी देखी उन्होंने

कि तुम चल पड़े नास्तिकता की ओर!

तुमने क्या गलती देखी कुरान में

कि तुमने चुना वह तरीका आधुनिक जगत् का?

बदायूनी ने लिखा है कि हिजरी 990 अर्थात् ई.1582 में शीराज का रहने वाला सैयद मीर फतहउल्लाह फतहपुर आया। वह अपने समय का ख्यातिप्राप्त शिया विद्वान था। अकबर ने खानखाना अब्दुर्रहीम तथा हकीम अबुल फतह को सैयद मीर फतह-उल्लाह के पास भेजा तथा सैयद को अपने महल में आमंत्रित किया। वह अपने पंथ में इतना अधिक विश्वास करता था कि उसने अकबर के महल में ही शिया पद्धति से इबादत की। अकबर उसके इस व्यवहार से इतना खुश हुआ कि अकबर ने उसका निकाह मुजफ्फर खाँ की छोटी बेटी से करवा दिया।

बदायूनी ने लिखा है कि शहंशाह ने सैयद मीर फतह-उल्लाह को अपना दरबारी बना लिया तथा उसे अमीरों के सात-आठ साल के पुत्रों को पढ़ाने का काम सौंपा ताकि वह अमीरों के लड़कों के उन परम्परागत सुन्नी विश्वासों को बदल सके जिन विश्वासों के बीच वे बड़े हुए हैं। सैयद मीर फतह-उल्लाह ने बच्चों को बिंदु लगाना, सरल रेखाएं बनाना, वक्र बनाना सिखाया तथा अक्षर बनाने भी सिखाए।

अमीरों के बच्चों की पढ़ाई का विरोध करते हुए बदायूनी ने लिखा है कि नए सीखने वाले बच्चों के हाथ में ज्योतिषीय गणनाओं के लेख मत रखो। एक घोड़ा जो अरबी नस्ल का है, उस पर यूनानी ठप्पा मत लगाओ।

मुल्ला ने लिखा है कि सैयद मीर फतह-उल्लाह अपने कंधे पर बंदूक रखे, कमर पर कारतूस की पेटी पहने, अक्सर शहंशाह के घोड़े की रकाब के पास दौड़ता हुआ दिखाई देता। अपनी बेइमानियों के कारण उसने अपनी ख्याति खो दी। फिर भी अकबर ने उसे संतों के ईमाम की उपाधि दी।

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