Wednesday, December 4, 2024
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खतरनाक जॉम्बी बन रहे हैं हम!

हम भारत के लोग जो कि जल्दी से जल्दी विश्वगुरु बनने की फिराक में हैं, दूसरों के द्वारा थूका हुआ चाटने वाले खतरनाक जॉम्बी बनते जा रहे हैं।

हॉर्वर्ड, कैम्ब्रिज और कैलिफोर्निया आदि विदेशी यूनिवर्सिटियों द्वारा थूके गए ज्ञान, इकॉनोमिक फोरम्स द्वारा फैंके गए आंकड़े और सोरोस जैसे शक्तिशाली विदेशी एनजीओज द्वारा फैंके गए डॉलरों को चटाकर बनाए गए कुछ अत्यंत शक्तिशाली जॉम्बी विगत कुछ दशकों में बड़ी ही चालाकी से भारत में घुसाए गए हैं और कुछ खतरनाक जॉम्बी अमरीका एवं कनाडा में बैठाकर रखे गए हैं।

भारत में घुसाए गए जॉम्बी कुछ विश्वविद्यालयों, राजनीतिक पार्टियों एवं एनजीओज में छिपे हुए हैं। विदेशी ज्ञान, आर्थिक आंकड़े और डॉलरों को चाटकर जीवित रहने वाले खतरनाक जॉम्बी भारत के शांतिप्रिय एवं भोले-भाले लोगों को बड़ी तेजी से जॉम्बियों में बदल रहे हैं।

जॉम्बी उस आवेशित मनुष्य को कहते हैं जिसके शरीर में कोई खतरनाक वायरस घुसकर उस मनुष्य के मस्तिष्क को भावना-शून्य बना देता है। ऐसा आवेशित मनुष्य अर्थात् जॉम्बी बना हुआ मनुष्य दूसरे मनुष्यों को काटकर खाना चाहता है किंतु जब कोई जॉम्बी किसी मनुष्य को काटता है तो वह मनुष्य भी जॉम्बी बन जाता है और फिर वे दोनों जॉम्बी किसी नए मनुष्य की तलाश में आगे बढ़ते हैं। इस प्रकार जॉम्बियों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ जाती है।

अमेरिकन फिक्शन फिल्म जॉम्बी में मानवता के शत्रु बन चुके कुछ वैज्ञानिकों को जॉम्बी का वायरस फैलाते हुए तो दिखाया गया है किंतु जॉम्बी बने लोगों को नियंत्रित करने का कोई उपाय नहीं बताया गया है, उन्हें केवल गोली मारकर ही नियंत्रित किया जाता है।

विदेशी ज्ञान, आर्थिक आंकड़े और विदेशी डॉलर चाट चुके जॉम्बी कभी इतने अनियंत्रित नहीं होते कि उन्हें गोली मारनी पड़े क्योंकि उनके शरीर में कोई वायरस नहीं होता अपितु उनके दिमाग में कुछ खरतनाक विचार होते हैं। ऐसे जॉम्बी विदेशी ताकतों द्वारा बड़ी आसानी से नियंत्रित किए जाते हैं।

हाल ही में घटित एक उदाहरण लेते हैं! विगत लोकसभा चुनावों से पहले ऑक्सफैम इंटरनेशनल नामक संस्था ने घोषणा की कि वर्ष 2012 से 2021 के बीच देश में बनाई गई 40 प्रतिशत से अधिक संपत्ति केवल 1 प्रतिशत लोगों के पास गई। वहीं देश की निचली आधी जनसंख्या के पास कुल संपत्ति का सिर्फ 3 प्रतिशत हिस्सा है।

उसी समय वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब ने भी एक रिपोर्ट देकर कहा कि भारत के अरबपतियों की करीब 90 प्रतिशत संपत्ति उच्च जातियों के पास है।

ये बातें इतनी चालाकी से और इतनी घुमाकर बोली गईं जिनके कारण भारत की जनता में यह भ्रम पैदा हुआ कि भारत की कुल सम्पत्ति का 90 प्रतिशत हिस्सा उच्च जाति के अरबपतियों के पास है, जबकि विदेशी संस्था की रिपोर्ट में कहा यह गया था कि भारत में अरबपतियों के पास जितनी सम्पत्ति है, उसमें से 90 प्रतिशत सम्पत्ति उच्च जाति के अरबपतियों के पास है। यह नहीं कहा गया था कि देश की कुल सम्पत्ति का 90 प्रतिशत हिस्सा उच्च जातियों के पास है।

इसी प्रकार विदेशी संस्था की रिपोर्ट में यह कहा गया कि देश की निचली आधी जनसंख्या के पास कुल संपत्ति का सिर्फ 3 प्रतिशत हिस्सा है। भारत की जनता द्वारा इसका अर्थ यह लगाया गया कि भारत के गरीब लोगों के पास केवल 3 प्रतिशत सम्पत्ति बची है।

विदेशी संस्था ने हमें जॉम्बी बनाने के लिए बड़ी ही चालाकी से कहा कि देश की निचली आधी जनसंख्या के पास कुल संपत्ति का सिर्फ 3 प्रतिशत हिस्सा है। उसने यह नहीं बताया कि देश की निचली आधी जनसंख्या का मतलब क्या है?

आज की तारीख में देश में निचली गरीब आबादी कितनी है, इसके सम्बन्ध में एनएफएचएस 2019-21 की रिपोर्ट खुलासा करती है कि भारत में बहुआयामी रूप से गरीब आबादी का प्रतिशत केवल 14.96 है। इसमें से भी निचली आधी आबादी का अर्थ होता है कि देश की लगभग 8 प्रतिशत जनसंख्या।

अर्थात् विदेशी संस्था ने जो कुछ भी कहा उसका अर्थ यह होता है कि देशी की सबसे गरीब जनसंख्या में से आधी यानि कि 8 प्रतिशत लोगों के पास 3 प्रतिशत सम्पत्ति है। यह बात किसी के समझ में नहीं आई और लोगों ने समझा कि अब भारत में आधी जनसंख्या के पास केवल 3 प्रतिशत सम्पत्ति बची है।

करोड़ों भारतीय इस विदेशी ज्ञान एवं आर्थिक आंकड़ों को चाटकर वैचारिक जॉम्बी बन गए। उन्होंने भारत की जमी-जमाई सरकार को वोट न देकर कुछ ऐसी ताकतों को वोट दे दिए जो देश के लोगों को जातीय जनगणना करवाने का लालच दे रही थीं तथा कह रही थीं कि जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी।

करोड़ों लोगों को लगा कि जब विपक्षी पार्टियां सत्ता में आकर जातीय जनगणना करवाएंगी तो हमारी जाति को अधिक आरक्षण मिलेगा और हमारे बच्चों को संख्या के आधार पर अधिक नौकरियां मिलेंगी। इस कारण उन्होंने एक विशेष विचार से आवेशित होकर लोकसभा के चुनावों में भाग लिया।

जब हम योग्यता को नकार कर जाति के आधार पर ही नौकरी देने का विचार रखते हैं तो यह हमारे जॉम्बी होने की निशानी नहीं है तो क्या है! अयोग्य डॉक्टर चाहे जिस जाति का हो, पूरे समाज का नुक्सान करेगा और योग्य डॉक्टर चाहे जिस जाति का हो, पूरे समाज का अच्छा इलाज करेगा। किंतु जॉम्बी इस तरह नहीं सोचते, वे केवल अपनी जाति के बारे में सोचते हैं।

दूसरा उदाहरण लेते हैं, अमरीका में बैठे सैम पित्रोदा ने विगत लोकसभा चुनावों के दौरान चालाकी भरी भाषा में कुछ ऐसी बातें कहीं जिनका अर्थ भारत के आम आदमी ने यह लगाया कि जब हमारी सरकार आएगी तो अमीरों की सम्पत्ति लेकर गरीबों में बांटेगी।

करोड़ों गरीब लोग अमीरों की सम्पत्ति पाने के लालच से ग्रस्त होकर वोट देने गए तथा देश के मुख्य विपक्षी दल की सीटें 52 से 99 तथा दूसरे बड़े विपक्षी दल की सीटें 5 से 37 पहुंच गईं।

तीसरा उदाहरण लेते हैं, भारत सरकार ने किसानों के लिए तीन कृषि कानून बनाए किंतु अमरीका और कनाडा में बैठे उन लोगों ने जो जॉम्बियों को बनाते और पालते हैं, भारत के किसानों को भड़काया कि यदि ये तीन कृषि कानून लागू हुए तो किसान बर्बाद हो जाएगा। इसलिए किसान इन कानूनों को लागू न होने दें तथा यह मांग करें कि हमें एमएसपी पर खरीद की गारण्टी दी जाए।

एमएसपी पर खरीद की गारण्टी एक ऐसा खतरनाक विचार है जो देश को बर्बाद कर देगा। इसका अर्थ यह होता है कि सरकार अनाज का एम एस पी अर्थात् न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करेगी जो कि फसल की लागत मूल्य पर आधारित होगा। बाजार में किसान का अनाज उस समर्थन मूल्य से कम पर नहीं खरीदा जाएगा। यदि कोई व्यापारी इससे कम मूल्य पर किसान से अनाज खरीदता है तो उस व्यापारी को गिरफ्तार करके सजा दी जाएगी।

जॉम्बी बनने को आतुर किसी भी व्यक्ति ने यह नहीं सोचा कि यदि भारत सरकार इस बात को मान ले तो इसके कितने भयंकर परिणाम होंगे! मण्डियों में बैठे व्यापारी किसानों से अनाज खरीदना ही बंद कर देंगे। यदि व्यापारी नहीं खरीदे तो सरकार को वह अनाज एमएसपी पर खरीदना होगा। क्योंकि सरकार एमएसपी की गारण्टी दे चुकी होगी।

इससे सरकार का खजाना खाली हो जाएगा, व्यापारी बर्बाद हो जाएंगे और किसान के हाथ कुछ नहीं आएगा। देश का आम आदमी परेशान होगा सो अलग! सरकार ने यह सब स्पष्ट किया किंतु आंदोलन तब तक चलता रहा जब तक कि तीनों कानून रद्द नहीं कर दिए गए। सरकार किसी भी सूरत में एमएसपी की गारण्टी न तो दे सकती थी और न उसने दी किंतु आंदोलन आज भी चल रहा है।

ठीक ऐसा ही सीएए अर्थात् नागरिकता संशोधन अधिनियम के मामले में हुआ। विदेशी शक्तियों ने भारत के मुसलमानों को यह कहकर भड़काया कि इससे मुसलमानों की नागरिकता छिन जाएगी तथा उनके घर छीनकर उन्हें कैम्पों में भेज दिए जाएगा।

भारत सरकार ने लाख समझाया कि यह कानून किसी की नागरिकता नहीं छीनता, अपितु उन पड़ौसी देशों से आने वाले हिन्दू, सिक्ख, ईसाई आदि को नागरिकता देता है जो विभाजन से पहले भारत के ही नागरिक थे और अब उन देशों में प्रताड़ित किए जा रहे हैं, किंतु विदेशी ज्ञान, आर्थिक आंकड़े और अमरीकी डॉलर चाटकर आए जॉम्बियों ने आम मुसलमान को कभी भी यह बात नहीं समझने दी जिसका परिणाम शाहीन बाग जैसे आंदोलनों के रूप में सामने आया।

चीजें दूर से साफ दिखाई नहीं देतीं, निकट जाने पर ही उनका घिनौना स्वरूप स्पष्ट होता है। जाकिर नाइक, पन्नू और उनके जैसे सैंकड़ों खतरनाक जॉम्बी अमरीका और कनाडा की युनिवर्सिटियों एवं एनजीओज का सहारा पाकर पूरी दुनिया में अपने-अपने खतरनाक एजेण्डे चलाते हैं।

ऐसे सैंकड़ों उदाहरण दिए जा सकते हैं जो यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि हम आरक्षण के लिए सड़कों पर आंदोलन करने वाले, जातीय जनगणना में अपनी मुक्ति का उपाय ढूंढने वाले, फ्री का आटा खाने वाले, फ्री की बिजली लेने वाले, सरकारी जमीनों पर कब्जा करने वाले जॉम्बी बना दिए गए हैं और जो लोग अभी तक जॉम्बी नहीं बन पाए हैं, उन्हें तेजी से जॉम्बी बनाने के षड़यंत्र चलाए जा रहे हैं।

देश में बड़ी संख्या में मजहब के नाम पर गला काटने वाले जॉम्बी घूम रहे हैं। सैंकड़ों जॉम्बी रेल की पटरियों पर पत्थर और गैस के सिलिण्डर रखकर ट्रेनें गिराने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे भयानक कार्य तो जॉम्बी ही कर सकते हैं जिन्हें इंसान का खून देखकर खुशी होती है।

हजारों जॉम्बी ढाबों और होटलों में रोटियों पर थूक रहे हैं, जूस में पेशाब कर रहे हैं, समोसों में चिकन और बीफ मिला रहे हैं।

बहुत से जॉम्बी मंदिरों के प्रसाद में गाय की चर्बी से बने घी की सप्लाई कर रहे हैं। तिरुपति मंदिर के वे प्रबंधक जो तीन सौ रुपए किलो घी खरीदकर लड्डू बनवा रहे थे, वे भी जॉम्बी नहीं हैं तो क्या हैं? क्या उन्हें पता नहीं है कि यदि घर में भी घी बनाया जाए तो सात सौ रुपए किलो से कम नहीं पड़ता? मंदिर के जॉम्बियों ने पूरे हिन्दू समाज का अनादर किया और उसे धोखे से गाय की चर्बी से बना प्रसाद खिलाया।

कुछ जॉम्बी मंदिरों के प्रसाद में पशुचर्बी से बना घी सप्लाई कर रहे हैं और कुछ जॉम्बी वीआईपी लाइन के माध्यम से सबसे पहले मंदिर में घुसकर उस प्रसाद को पा रहे हैं। क्योंकि उनकी जेब में रुपए नहीं हैं, डॉलर हैं! मैंने उन्हें जॉम्बी इसलिए भी कहा कि वे स्वयं को वीआईपी समझते हैं किंतु उन्हें समझ इतनी भी नहीं है कि जो लड्डू वे खा रहे हैं उसमें से पशुचर्बी की बदबू आ रही है।

भारत के हर शहर में जॉम्बियों की भीड़ थूक लगी रोटियों को खाने के लिए रेस्टोरेंटों के बाहर कतार लगाकर खड़ी है। जब मनुष्य यात्रा पर होता है, तब तो बाहर खाना मजबूरी होती है किंतु देश में करोड़ों जॉम्बी अपने घर में खाना बनाना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं क्योंकि उनकी जेब में रुपया नहीं, डॉलर है।

कुछ जॉम्बी समोसों में मेंढक की टांग और कॉकरॉच डाल रहे हैं और बाकी के जॉम्बी मीडिया में रिपोर्टें देखकर भी ऐसे समोसों को ऑन लाइन ऑर्डर करके मंगवा रहे हैं। आजादी के बाद करोड़ों भारतीय परिवारों ने पैसा तो खूब बनाया, डिग्रियां भी हॉर्वर्ड-फार्वर्ड से ले लीं, कारें भी बड़ी-बड़ी खरीद लीं, कपड़े भी डिजाइनर पहनने शुरु कर दिए किंतु हम कब थूका हुआ चाटने वाले जॉम्बी बन गए, हमें पता ही नहीं चला!

हम इतने खतरनाक जॉम्बी हैं कि हम आज भी यह बात समझने को तैयार नहीं हैं कि केवल मंदिर में ही पशुचर्बी से बना घी सप्लाई नहीं होता होगा, भारत के न जाने कितने होटलों, रेस्टोरेंटों एवं ढाबों में पशुचर्बी से बना घी सप्लाई हो रहा होगा!

जॉम्बी बन जाने के कारण हम यह भी नहीं समझ पाते कि आज भारत के लोग जितना घी खा रहे हैं, क्या उतना घी हमें पशुओं के दूध से मिल सकता है? निश्चित रूप से बहुत सा घी पाम ऑइल और पशुचर्बी से बना हुआ है क्योंकि पशुओं से मिलने वाला अधिकांश दूध तो हम बिना घी निकाले ही दूध-दही के रूप में काम लेते हैं।

आज बहुत बड़ी संख्या में स्त्री और पुरुष दोनों ही खतरनाक जॉम्बी बनकर कमाते हैं, इसके लिए वे बहुत देरी से विवाह करते हैं, पति या पत्नी की जगह बॉयफ्रैंण्ड और गर्लफ्रैण्ड रखते हैं। ऐसे फ्रैण्ड कुछ ही सालों में एक दूसरे का मर्डर करने पर उतारू हो जाते हैं। यदि शादी कर लें तो भी बच्चा देरी से पैदा करते हैं। और पिज्जा-बर्गर खाने रेस्टोरेंट में जाते हैं, जहाँ वे पशुचर्बी से बना भोजन पाते हैं। तब भी हम समझ नहीं पाते कि हम इंसान कम और पैसे के पीछे भागने वाले जॉम्बी अधिक हैं।

कुछ ऐसे जॉम्बी भी हैं जो इंसान से अधिक कुत्ते से प्रेम करते हैं, अपने माता-पिता को साथ रखने की बजाय कुत्ते साथ में रखते हैं। जब उनका कुत्ता किसी इंसान को काटता है तो इन जॉम्बियों को दर्द नहीं होता किंतु यदि पीड़ित इंसान कुत्ते को लाठी दिखा देता है तो कुत्ता-प्रेमी खतरनाक जॉम्बी उन इंसानों के विरुद्ध पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाते हैं। इन जॉम्बियों को पड़ौसी से अच्छे सम्बन्ध नहीं चाहिए, कुत्ते से अच्छे सम्बन्ध चाहिए।

ऐसी हजारों बातें हैं जिनसे यह पता लगता है कि हम जॉम्बी बन रहे हैं, या बन चुके हैं किंतु हम समझ नहीं पाते।

हम कुछ भी समझ क्यों नहीं पाते? क्योंकि सोरोस जैसे अनगिनत लोग जो तरह-तरह के एनजीओ बनाकर आदमियों की हथेलियों पर डॉलर थूकते हैं, उस डॉलर को चाटने वाले जॉम्बियों की भीड़ अमरीका और कनाडा के हर शहर में घूम रही है। वे बड़े-बड़े जॉम्बी भारत में छोटे-छोटे खतरनाक जॉम्बी बनाने का काम करते हैं। हमें भी किसी न किसी प्रकार का जॉम्बी बनाया जा चुका है और हमें स्वयं यह बात मालूम नहीं है।

हम जॉम्बी कैसे हैं, इसे समझने के लिए यह समझना आवश्यक है कि यदि हमने स्वयं कमाकर खाने का, स्वयं मेहनत करके खाने का, घर में रोटी बनाकर खाने का, गुरु बनाओ जानकर और पानी पियो छानकर वाला पुराना सिद्धांत नहीं अपनाया तो हम खतरनाक जॉम्बी ही बने रहेंगे और सोचते रहेंगे कि एक दिन 3 प्रतिशत लोग जो भारत की 90 प्रतिशत सम्पत्ति लिए बैठे हैं, वह अमरीका और कनाडा में बैठे जॉम्बी हमें दिलवा देंगे और इस चक्कर में हम अपने देश की बची-खुची सुख शांति भी लुटा बैठेंगे! हम कभी नहीं समझ पाएंगे कि ये आंकड़े हमें खतरनाक जॉम्बी बनाने के लिए हमारे दिमागों में डाले गए हैं!

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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