Friday, November 22, 2024
spot_img

लाल किला तोड़ दो

लाल किले की दर्द भरी दास्तान का सबसे दुखद पहलू यह था कि भारत की जनता ने लाल किले को तोड़ने की मांग की तथा लाल किले के सामने खड़े होकर नारे लगाए- लाल किला तोड़ दो आजाद हिन्द फौज को छोड़ दो!

बहादुरशाह जफर की भारत से विदाई के साथ ही लाल किला भारतीय राजनीति के नेपथ्य में जा चुका था किंतु ई.1638 से लेकर 1858 तक की अवधि में लाल किला भारतीय सत्ता का प्रतीक बन चुका था। इसलिए उसमें अंग्रेजी सेना रहने लगी। लाल किले पर यूनियन जैक फहराने लगा और लाल किला अंग्रेज शक्ति का प्रतीक बन गया।

देखते ही देखते 87 वर्ष बीत गए। इस बीच अंग्रेजों ने दो विश्व युद्ध लड़े और जीते। वे अपनी राजधानी कलकत्ता से दिल्ली ले आए और उन्होंने दिल्ली में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए लुटियन्स जोन, इण्डिया गेट, पार्लियामेंट भवन, वायसराय भवन, सेक्रेटरिएट बिल्डिंग तथा तीनमूर्ति भवन बनवाए किंतु लाल किले ने सत्ता की शक्ति के प्रतीक वाली अपनी छवि कभी खोई नहीं।

5 जुलाई 1943 को सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के समक्ष जो पहला भाषण दिया उसमें उन्होंने लाल किले का उल्लेख करते हुए कहा- ‘साथियो! आपके युद्ध का नारा हो- चलो दिल्ली, चलो दिल्ली। इस स्वतन्त्रता संग्राम में हम में से कितने जीवित बचेंगे, यह मैं नहीं जानता परन्तु मैं यह जानता हूँ कि अन्त में विजय हमारी होगी और हमारा ध्येय तब तक पूरा नहीं होगा जब तक हमारे शेष जीवित साथी ब्रिटिश साम्राज्य की कब्रगाह- लाल किले पर विजयी परेड नहीं करेंगे।’

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद ई.1945-46 में भारत सरकार ने आजाद हिन्द फौज के 70 हजार सिपाहियों एवं कमाण्डारों के विरुद्ध मुकदमे चलाए। बहुत से न्यायालयों ने आजाद हिंद फौज के सिपाहियों को फांसी दे दी। पूरे देश में अंग्रेज सरकार के इस कृत्य का विरोध हुआ और आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों की रिहाई की मांग हुई।

दिल्ली के लाल किले में स्थापित सैनिक न्यायालय में आजाद हिंद फौज के कर्नल प्रेम सहगल, कर्नल गुरुबख्श सिंह तथा मेजर जनरल शाहनवाज खान पर संयुक्त रूप से मुकदमा चलाया गया। इसे लाल किला ट्रायल भी कहा जाता है। कांग्रेसी नेताओं ने आजाद हिंद फौज के सिपाहियों को फांसी दिए जाने का समर्थन किया।

लाल किले की दर्दभरी दास्तान - bharatkaitihas.com
TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

बम्बई, कराची, मद्रास, कलकत्ता आदि स्थानों पर आजाद हिंद फौज के सैनिकों के समर्थन में वायुसेना एवं नौसेना में व्यापक विद्रोह उठ खड़ा हुए। भारत की जनता दिल्ली की सड़कों पर खड़े होकर नारे लगाने लगी- लाल किले को तोड़ दो, आजाद हिंद फौज को छोड़ दे। सेना और जनसाधारण द्वारा आजाद हिंद फौज के प्रति दिखाए जा रहे अभूतपूर्व समर्थन से कांग्रेस घबरा गई और उसने आजाद हिंद फौज के सिपाहियों को फांसी दिए जाने का विरोध में डिफेंस कमेटी का गठन किया। यहाँ तक कि कांग्रेस ने देश भर में आजाद हिंद फौज के सिपाहियों के लिए राहत शिविर स्थापित किए। इस पर भी लाल किला तोड़ दो आजाद हिन्द फौज को छोड़ दो! नारा दिल्ली में गूंजता रहा।

ऐसा नहीं था कि लोगों को लाल किले से कोई सहानुभूति नहीं थी किंतु आजाद हिंद फौज का समर्थन व्यक्त करने के लिए तदलली की जनता लाल किला तोड़ दो का नारा लगा रही थी। कांग्रेस द्वारा नियुक्त की गई डिफेंस टीम का अध्यक्ष सर तेज बहादुर सप्रू को बनाया गया किंतु उनके बीमार हो जाने पर वकील भूलाभाई देसाई को अध्यक्ष बनाया गया।

सर दिलीपसिंह, आसफ अली, पण्डित जवाहरलाल नेहरू, बख्शी सर टेकचंद, कैलाशनाथ काटजू, जुगलकिशोर खन्ना, सुल्तान यार खान, राय बहादुर बद्रीदास, पी.एस. सेन और रघुनंदन सरन आदि वकीलों को इस टीम में सम्मिलित किया गया।

जब वकीलों की यह टीम लाल किले में सरकारी वकीलों से बहस करती थी तो लाल किले के बाहर हजारों नौजवान चीख-चीख कर नारे लगा रहे होते थे, वे इस मुकदमे से इतने नाराज थे कि वे सुबह से शाम तक धूप में खड़े रहकर लाल किला तोड़ दो चिल्लाते रहते थे। स्वाधीनता सेनानियों के प्रति दिल्ली की जनता का प्यार उस काल की ऐतिहासिक घटना बन गया।

पूरे देश में देशभक्ति का ज्वार उमड़ आया। 15 नवम्बर 1945 से 31 दिसम्बर 1945 तक चला यह मुकदमा भारत की आजादी के संघर्ष में एक निर्णायक मोड़ था। यह मुकदमा कई मोर्चों पर भारतीय एकता को मजबूत करने वाला सिद्ध हुआ।

अभियोग की कार्रवाई संवाददाताओं और जनता के लिए खुली हुई थी। सारे देश में सरकार के विरुद्ध धरने प्रदर्शन और सभाएं हुईं जिनमें मुकदमे के मुख्य आरोपी कर्नल प्रेम कुमार सहगल, कर्नल गुरुबख्श सिंह ढिल्लन तथा मेजर जनरल शहनवाज सहित आजाद हिंद फौज के समस्त सैनिकों की रिहाई की मांग की जाती थी।

अंग्रेज सरकार ने इन सिपाहियों पर ब्रिटिश सम्राट के विरुद्ध विद्रोह करने का आरोप लगाया किंतु सैनिकों की पैरवी करने वाले वकीलों ने कहा-

‘अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार प्रत्येक मनुष्य को अपनी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए लड़ाई लड़ने का अधिकार है। आजाद हिन्द फौज अपनी इच्छा से सम्मिलित हुए लोगों की सेना थी और उनकी निष्ठा अपने देश से थी। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए देश से बाहर एक अस्थायी सरकार बनाई थी और स्वतंत्र भारत के लिए एक संविधान तैयार किया था। इस सरकार को अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अंतर्गत विश्व के नौ देशों ने मान्यता प्रदान की थी। अतः यह विद्रोह नहीं था, भारत के लोगों द्वारा स्वतंत्रता के लिए किया गया संघर्ष था। भारत की जनता इस अधिकार को सदैव धारण करती है।’

सैनिकों की ओर से मुकदमा लड़ रहे वकीलों ने विख्यात विधि-विशेषज्ञ बीटन के कथन को उद्धृत किया-

‘अपने देश की स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए, हर परतंत्र जाति को लड़ने का अधिकार है। क्योंकि, यदि उनसे यह अधिकार छीन लिया जाए, तो इसका अर्थ यह होगा कि एक बार यदि कोई जाति परतंत्र हो जाए, तो वह सदैव परतंत्र ही रहेगी।’

लाल किला ट्रायल ने पूरी दुनिया में, स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे करोड़ों लोगों को शक्ति एवं ऊर्जा प्रदान की। 3 जनवरी 1946 को लाल किले के सैनिक न्यायालय द्वारा आजाद हिन्द फौज के सैनिकों को आजीवन कारावास का दण्ड दिया गया। लाल किला ट्रायल के निर्णय की घोषणा होते ही पूरे भारत में विद्रोह की आग भड़क गई। नौसेना और वायुसेना के सिपाहियों ने अपनी बंदूकों और तोपों के मुंह अंग्रेज सैनिक कमाण्डरों की तरफ कर दिए। कई अंग्रेज अधिकारी मार दिए गए।

दिल्ली, बम्बई और कलकत्ता की सड़कों पर जनता ने विशाल प्रदर्शन किए। अंग्रेज सरकार ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं। बहुत से लोग मारे गए। लाल किला ट्रायल के पेट से जन्मा यह आंदोलन पूरी तरह अद्भुत और विस्मयकारी था, जिसका नेतृत्व कोई राजनीतिक दल नहीं कर रहा था, जनता स्वयं ही अपना नेतृत्व कर रही थी और सड़कों पर गोलियां खा रही थी!

राईटर एसोसिएशन ऑफ अमेरिका तथा ब्रिटिश पत्रकारों ने इस मुकदमे के बारे में जमकर लिखा। इस कारण यह मुकदमा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो गया। अंग्रेज सरकार के कमाण्डर-इन-चीफ सर आचिनलेक ने वायसराय लॉर्ड वैवेल से अपील की कि आजाद हिंद फौज के सैनिकों को क्षमा कर दिया जाए। लॉर्ड वैवेल ने सर आचिनलेक का अनुरोध स्वीकर कर लिया। वह समझ चुका था कि यदि इन सैनिकों को सजा दी गई तो मुम्बई, कराची, कलकत्ता, विशाखापत्तनम सहित पूरे भारत में हो रहे भारतीय सेना एवं जनता के विद्रोह को समाप्त करना असंभव हो जाएगा।

आजाद हिंद फौज ने युद्ध के मैदान में भले ही सीमित सफलता अर्जित की हो किंतु लाल किले के मुकदमे ने आजाद हिंद फौज का बचा हुआ काम पूरा कर दिया। अब भारत की जनता को विश्व की कोई शक्ति पराधीन करके नहीं रख सकती थी!

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

1 COMMENT

  1. Hi there! Do you know if they make any plugins to help with SEO?

    I’m trying to get my blog to rank for some targeted keywords but I’m
    not seeing very good results. If you know of any please
    share. Thank you! I saw similar text here: Eco product

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source