देश भर में हिन्दू राजाओं ने दिल्ली सल्तनत के विरुद्ध विद्रोह करके अपने राज्यों को स्वतंत्र करवा लिया जिसके कारण दिल्ली सल्तनत की सीमाएं फिर से संकुचित हो गईं।
इसके बाद दक्षिण भारत में स्वतंत्र मुस्लिम राज्यों की स्थापना के लिए नए सिरे से विद्रोह आरम्भ हुए। इनमें ‘सादा अमीर’ अर्थात् विदेशी मुसलमान सबसे आगे थे। उन्होंने ई.1347 में दौलताबाद के किले पर अधिकार कर लिया तथा इस्माइल अफगान नामक एक वृद्ध अमीर को दक्कन अर्थात् दक्षिण भारत का सुल्तान घोषित कर दिया। इस्माइल अफगान अय्याश किस्म का आदमी था।
उन्हीं दिनों हसन गंगू नामक एक विदेशी अमीर कुछ विद्रोहियों के साथ राजधानी दिल्ली छोड़कर दक्षिण भारत की ओर भाग गया। उसने इस्माइल अफगान को सुल्तान के पद से हटा दिया और 3 अगस्त 1347 को स्वयं दक्कन का सुल्तान बन गया। हसन गंगू ने गुलबर्गा को अपनी राजधानी बनाया। उसने जफर खाँ की उपाधि धारण की तथा अल्लाउद्दीन बहमनशाह के नाम से सुल्तान की गद्दी पर बैठा। उसके राज्य को बहमनी सल्तनत कहा गया। वह स्वयं को ईरान के शाह बहमन बिन असफन्द यार का वंशज बताता था।
फरिश्ता के अनुसार अल्लाउद्दीन बहमनशाह का असली नाम हसन था और वह दिल्ली के गंगू नामक ब्राह्मण ज्योतिषी का नौकर था। इस ज्योतिषी का सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के पास आना-जाना था। एक बार हसन को ब्राह्मण गंगू के खेत में स्वर्ण मुद्राओं से भरा कलश प्राप्त हुआ। हसन ने वह कलश खेत के स्वामी अर्थात् गंगू ब्राह्मण को सौंप दिया।
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हसन की इस ईमानदारी से प्रसन्न होकर गंगू ब्राह्मण ने हसन को आशीर्वाद दिया कि एक दिन वह राजा बनेगा। कहा जाता है कि ब्राह्मण ने उससे वचन भी लिया कि जब वह राजा बने तो मुझे अपना प्रधानमंत्री नियुक्त करे।
गंगू ब्राह्मण ने हसन की ईमानदारी का उल्लेख सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक से भी किया। इस पर सुल्तान ने हसन को अपनी सेना में बड़ा पद दे दिया। हसन ने उस ब्राह्मण के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए अपना नाम हसन गंगू रख लिया। उस ब्राह्मण की कृपा और सुल्तान के स्नेह के कारण हसन गंगू दिल्ली सल्तनत की राजनीति में ऊँचा चढ़ने लगा।
फरिश्ता के अनुसार जब हसन दक्कन का सुल्तान बन गया तो उसने अपने पुराने स्वामी गंगू ब्राह्मण के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए बहमनशाह की उपाधि धारण की तथा अपने राज्य का नाम ‘ब्राह्मणी’ अथवा बहमनी रखा।
कुछ इतिहासकार फरिश्ता द्वारा दिए गए इस मत को स्वीकार नहीं करते। उनके अनुसार हसन गंगू एक धर्मांध सुल्तान था, हिन्दुओं के प्रति उसका व्यवहार असहिष्णुतापूर्ण था इसलिये यह संभव नहीं है कि उसने अपने राज्य का नाम ब्राह्मणी राज्य रखा हो।
मेजर हेग ने फरिश्ता द्वारा दिए गए इस मत को अस्वीकार करते हुए लिखा है कि हसन ने कभी अपना नाम ब्राह्मणी नहीं रखा। उसकी मुद्राओं, मस्जिद के शिलालेखों तथा ग्रन्थों में भी उसका नाम बहमनशाह मिलता है। आधुनिक इतिहासकारों की धारणा है कि हसन गंगू फारस के शाह बहमन बिन असफन्द यार का वंशज था। इस कारण उसका वंश बहमनी कहलाया। यह अवधारणा ही अधिक सही प्रतीत होती है।
बहमनी सल्तनत दक्षिण भारत का पहला स्वतंत्र मुस्लिम राज्य था। हसन गंगू ने गुलबर्गा को अपनी राजधानी बनाया तथा उसका नाम बदलकर अहसानाबाद कर दिया। वह एक धर्मांध शासक सिद्ध हुआ और सुल्तान बनते ही उसने विजयनगर साम्राज्य से शत्रुता कर ली।
उसने अपने पड़ौसी राज्यों पर आक्रमण करके उत्तर में बाणगंगा से लेकर दक्षिण में कृष्णा नदी तक अपने राज्य का विस्तार कर लिया तथा राज्य को गुलबर्गा, दौलताबाद, बरार और बीदर नामक चार प्रांतों में विभक्त किया जिन्हें अतरफ कहा जाता था। प्रत्येक अतरफ में एक सूबेदार की नियुक्ति की गई।
4 फरवरी 1358 को हसन गंगू की मृत्यु हो गयी। वह एक कट्टर मुस्लिम एवं धर्मान्ध शासक सिद्ध हुआ। उसके उत्तराधिकारी भी दक्षिण के हिन्दू राज्यों के साथ प्रेमभाव से नहीं रह सके और विजयनगर साम्राज्य से निरंतर युद्ध करके उसे नष्ट करने का प्रयास करते रहे।
ई.1347 से ई.1527 तक बहमनी सल्तनत में 14 शासक हुए। इनमें से मुहम्मद (द्वितीय) नामक सुल्तान को छोड़कर शेष समस्त सुल्तान क्रूर और धर्मान्ध थे। इस कारण सल्तनत में हिंसा, क्रूरता और षड़यंत्र अपने चरम पर रहते थे।
अन्त में बहमनी राज्य पाँच शिया राज्यों- बीजापुर, गोलकुण्डा, बरार, बीदर और अहमदनगर में विभाजित हो गया। ये पाँचों राज्य पारस्परिक द्वेष एवं संघर्ष के कारण कमजोर होते चले गए। ये पांचों मुस्लिम राज्य हमेशा लड़ते रहते थे किंतु विजयनगर साम्राज्य को नष्ट करने के लिए एक साथ होकर लड़े और इन्होंने विजयनगर साम्राज्य नष्ट कर दिया।
ई.1526 में मुगल आक्रांता बाबर के भारत पर आक्रमण के समय दक्षिण भारत के इन पांचों मुस्लिम राज्यों में भारी अराजकता व्याप्त थी। अकबर के शासन काल में अहमद नगर तथा बरार को और औरंगजेब के समय में बीदर, बीजापुर तथा गोलकुण्डा को मुगल सल्तनत में मिला लिया गया।
मुगलों ने इन पांचों मुस्लिम राज्यों को क्यों नष्ट किया? इसकी भी एक रोचक पहेली है! बहमनी राज्य का संस्थापक गंगू हसन बहमनशाह ईरान से आया हुआ शिया मुसलमान था। इस कारण बहमनी राज्य के टूटने पर बने ये पांचों राज्य भी शिया राज्य थे। जबकि मुगल बादशाह सुन्नी मुसलमान थे। वे नहीं चाहते थे कि भारत में एक भी शिया राज्य अस्तित्व में रहे। इस कारण मुगल सल्तनत इन पांचों शिया राज्यों को निगल गई।
ई.1351 में मुहमद बिन तुगलक को गुजरात में तगी नामक अमीर द्वारा विद्रोह किए जाने की सूचना मिली। उसके विद्रोह को दबाने के लिए सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने स्वयं एक सेना के साथ गुजरात के लिए प्रस्थान किया।
जब तगी ने सुना कि सुल्तान स्वयं एक सेना लेकर आ रहा है तो तगी जूनागढ़ से सिन्ध की ओर भाग गया। जूनागढ़ का पुराना नाम गिरिनार था। मुहम्मद बिन तुगलक उसका पीछा करते हुए थट्टा पहुँचा। 20 मार्च 1351 को मुहम्मद बिन तुगलक की अचानक मृत्यु हो गई। बदायूनी ने लिखा है- ‘सुल्तान को उसकी प्रजा से तथा प्रजा को सुल्तान से मुक्ति मिल गई।’
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता